आनंद कॉलेज में पढ़ता था। जहां हर तरह का नया फैशन था। जिनमे से एक नशाखोरी था। कुछ युवा इसमें डूबते ही जाते है। कुछ पहले इसे शौंकिया तौर पर लेते है। फिर बाद में इस दलदल में फस ही जाते है। आनंद भी उनमें से एक था। पहले वो दोस्तो के कहने पर शराब और फिर ड्रग्स लेने लगा। फिर धीरे-धीरे इतना आदी हो गया कि दिनभर नशे में चूर रहता।
मां बाप के समझाने के बावजूद भी कुछ नहीं हुआ। वो हर तरह से कोशिश करके हार गए। रिश्तेदारों ने कहा कि कोई अच्छी लड़की देख के इसकी शादी कर दो। जिम्मेदारी आएगी तो खुद ही सुधर जाएगा। पर आनंद को कोई अपनी लड़की क्यू देता।
फिर देख भाल कर एक गरीब घर की लड़की वंदना से उसकी शादी कर दी गई। वंदना बहुत अच्छी और समझदार लड़की थी। वो पूरी कोशिश करती कि आनंद और उसके घरवालों का ध्यान रख सके। वो दिनभर आनंद को संभालती। आनंद पूरा दिन नशे में चूर रहता था। कभी वंदना की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखता।
वंदना बार-बार उसे नशा करने से रोकती। पर वो झगड़ा करता और कई बार उसे मारता पीटता भी। आनंद के मां बाप बस लाचार बनकर तमाशा देखते रहते। ऐसे ही एक साल बीत गया। पर आनंद में कोई बदलाव नहीं आया। उसकी हालत और खराब होने लगी।
एक दिन आनंद जब नशे के लिए पागल होने लगा और वंदना ने उसे रोकना चाहा तो आनंद ने गुस्से में वंदना को धक्का दे दिया। मेज का एक कोना वंदना की आंख में चुभ गया। अब वंदना को एक आंख से दिखाई देना बंद हो गया। पर आनंद पर अब भी कोई असर नहीं हुआ। वो पहले से भी और ज्यादा नशा करने लगा। लड़ झगड़ कर। घर से पैसा चुरा कर। यहां तक कि वंदना के जेवर भी बेच डाले।
एक दिन वंदना ने रोते हुए अपनी सास से कहा। जब आप मां होकर अपने बेटे को नहीं सुधार पाई। तो कैसे सोच लिया कि कोई पराई लड़की आपके बेटे को सुधार देगी। इस चक्कर में आपने मेरी जिंदगी भी बरबाद कर दी। अब सारी जिंदगी मुझे ये सब झेलना पड़ेगा। मुझे सामाजिक तौर पर इस शादी को निभाना ही पड़ेगा। ना आनंद कभी नशे से मुक्त होगा और ना ही मुझे कभी इससे मुक्ति मिलेगी। पर उसकी सास के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था।
"क्यों बरबाद करे, जीवन एक कली का
क्यों खिलने से, पहले ही नोच ले
क्यों ना संभाले खुद को
कि कली को भी खिलने का मौका दे"