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सामाजिक विवशताएं

Sangeeta

4 अध्याय
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11 पाठक
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हमारे समाज में कुछ भ्रांतियां फैली हुई है। जिन्हें मैं इन लघु कहानियों के रूप में बयां करना चाहती हूं। बहुत से लोगों ने कहीं न कहीं ऐसी विवशता का सामना किया होगा। और वो अपने आप को इनसे जुड़ा पाएंगे।  

samajik vivashtaen

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बहुत मार्मिक और सोचने पर विवश करतीं बेहद खूबसूरत शैली और शानदार प्रस्तुतिकरण कहानियों का किया गया है जिसके लिए लेखिका प्रशंसा की पात्र है 👍👍👍🏆🏆🏆🏆🏆

पुस्तक के भाग

1

विवेक

22 अगस्त 2024
4
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1

विवेक और मैं प्रियंका। हम बचपन से स्कूल में साथ पड़ते थे। ज्यादा समय एक दूसरे के साथ बिताते थे। इतनी गहरी दोस्ती की एक दूसरे के दिल की हर बात समझते थे। विवेक जनता था कि जब मैं उदास होती हूं तो मुझे हं

2

नई मां

22 अगस्त 2024
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एक दिन मैं बाज़ार में खड़ी थी। अचानक एक प्यारी सी आवाज़ मां-मां कहती हुए मुझसे लिपट गई। देखा तो एक चार साल की बच्ची थी। तभी एक और आवाज़ आई। माफ कीजिएगा! कुछ महीने पहले इसकी मां गुजर गई। आपका चेहरा उसस

3

मुक्ति

23 अगस्त 2024
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आनंद कॉलेज में पढ़ता था। जहां हर तरह का नया फैशन था। जिनमे से एक नशाखोरी था। कुछ युवा इसमें डूबते ही जाते है। कुछ पहले इसे शौंकिया तौर पर लेते है। फिर बाद में इस दलदल में फस ही जाते है। आनंद भी उनमें

4

परिवार

13 सितम्बर 2024
1
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अंकिता की शादी को कुछ साल ही हुए थे। उसने सोचा क्यों ना इस बार दिवाली का त्यौहार अपने मायके में मनाए। उसके पति ने भी उसे इस बात की इजाज़त दे दी। और उसने जाने की सब तैयारियां भी कर ली। जब उसकी सास

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