इस शरीर में आंखों की गहराई,मन की गहराई से ज्यादा
हृदय की गहराई है।ये गहराई इतनी गहरी हैं कि
इसकी गहराई किसी को पता नही
चाहे तीन लोक की सम्पत्ति भी मिल जाए तो भी हम इसकी गहराई को भर नहीं सकते
न किसी पद से,न प्रतिष्ठा से,न धन से ,न स्त्री से,न ही कोई खजाने से
इसे तो केवल प्रेम से भर सकते हैं।हृदय में केवल प्रेम रूपी आनंद रस हैं।वो आनंद ही परमात्मा है।
परमात्मा तो केवल प्रेम का भूखा है।