कहते हैः- जैसे तिल में तेल समाया रहता है,
वैसे ही इस जड़ शरीर में चैतन्य का वास है।
चैतन्य की शक्ति से ही ये जड़ शरीर,
हिलता-डुलता, चलता, और बोलता है।
फिर जब जड़ और चैतन्य का तादात्मय टूटता है,
तब आप अपने को इस शरीर से अलग हवा में तैरता पाते हो!
एक अनजान यात्रा शुरू हो जाती है...
ये सब अजीब लगता है पर सच है,
जो आप सब बचपन से ही चाहते हैः-
कि आप उड़े पक्षिंयों की तरह,
या दीवार के भी पार निकल जायें,
या अद्रश्य हो जाने की शक्ति,
ये सब आपको सूक्ष्म शरीर में मिल जाती है।
फिर भी आप उस जीवन में उदासी अनुभव करते है।
वायु जैसी वह सूक्ष्म देह आपको तृप्त नहीं कर पाती,
शायद आप कुछ ठोस चाहते है,
जो पार्थिव् देह में ही सम्भव है।
आप फिर पैदा हो जायेगें!
यही आप जन्मों-जन्मों से कर रहे है।
मन