जशोदा को दुकान खोलने की जल्दी है। सुबह सबसे पहले दुकान यदि खुल जाये तो दुकान खोलते ही अच्छी खासी बिक्री हो जाती है। उसे मालूम है, अस्पतालों में रात कैसे कटती है, मरीज के साथ आये लोग सुबह का जैसे इंतजार ही करते रहते हैं। अस्पताल में रात भर जगे कर्मचारी भी सुबह होते ही चाय की तलाश शुरू कर देते हैं। जनवरी का महीना है। इस इलाके में कुछ ज़्यादा सर्दी पड़ रही है, कई दिनों से धूप नहीं निकली है। ऐसे में सुबह-सुबह दुकान खोलना अपने आप में कठिन काम है। जशोदा का पति अक्सर नाईट ड्यूटी करके आता है। वह यदि दिन में दारू ना पिये तो शाम को दुकान में जशोदा की थोड़ी-बहुत मदद करता है। रात दुकान की चौकीदारी में अम्बे ही ठेले पर सोता है इसलिए वह दुकान पर सुबह मौजूद मिलता है। This is hindi literary story . To read more moral stories in hindi, please visit this - best moral stories for class 8, 9, 10
सुबह जब जशोदा दुकान पर आई तो देखा, अम्बे ठेले पर रजाई में सिकुड़ा लेटा सो रहा है। पास जलाई आग की राख अब तक ओस में भीग चुकी है। इतनी सर्दी में खुले में सोना अपने आप में किसी तपस्या से कम नहीं है, उसे बेटे पर तरस आया। अम्बे को दुकान पर काम करते जब भी वह देखती है, उसका मन भर आता है पर वह क्या करे, कोई दूसरा चार भी उसके पास नहीं है।
दुकान पर आते ही उसने अम्बे को जगाने की कोशिश की पर वह कुनमुना कर फिर सो गया। ठेले के पास पड़े खाली शराब के पौव्वे पर उसकी नज़र गई तो पल भर के लिए जशोदा विचलित हो गई। पति को वह जिन्दगी भर शराब से दूर नहीं रख पायी, सोचती थी कि लड़के को बुराइयों से दूर रखेगी पर अब लगता है कि लड़का भी उन्हीं बुराइयों में ही पलेगा। शुरू में अम्बे पढ़ने में बहुत अच्छा था। आठ क्लास तक अम्बे की पढ़ाई पर से मन हटने लगा। जशोदा सोचती है, अगर अम्बे को दुकान के काम में ना लगाती तो शायद पढ़ लेता पर अब क्या कर सकती है। दुकान भी तो उसने अम्बे की पढ़ाई के लिए ही खोली थी, उसे कैसे बंद कर सकती थी। दुकान पर काम से अम्बे को पढ़ाई के लिए कम फुर्सत, पैसा और आस-पास के अवारा छोकरों की संगत में अम्बे की पढ़ाई ठप्प हो गई। वह हाई स्कूल पास नहीं कर पाया।
कई लोगों ने जशोदा को अम्बे की गतिविधियों के बारे में आगाह किया पर जशोदा ने अपने लड़के की तरफदारी की, दूसरों के मुंह से वह अपने लड़के की बुराई नहीं सुन सकती है। उसकी मजबूरी यह भी है कि अम्बे जिन आवारा छोकरों की वजह से बिगड़ा था, उसकी वजह से ही उसकी दुकान में ग्राहकी बढ़ी है जिससे जीना आसान हो गया है।
अम्बे के दोस्त, मिलने वाले, अब उसकी दुकान के ग्राहक हो गये हैं। इससे भी ज्यादा फायदा यह हुआ कि आस-पास के आवारा छोकरे जिनसे दुकान को हमेशा खतरा रहता था, वे अम्बे की दोस्ती के कारण दुकान को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोचते भी नहीं है उल्टे सामान इसी दुकान से खरीदते हैं।
जशोदा ने लड़के के लिए सरकारी नौकरी का सपना अभी तक नहीं छोड़ा था। जशोदा दुकान पर आते साहब लोगों से पूछमाछ करती सलाह देती है, उसे मालूम हो गया कि लड़के को अभी भी चपरासी, ड्राईवर की नौकरी किसी सरकारी विभाग में मिल सकती है। वह अभी भी इस उम्मीद में थी कि अम्बे हाई स्कूल पास कर लेगा और आगे बढ़ेगा, इसलिए वह अम्बे को हर साल स्कूल में दाखिल भी दिला देती थी।
जब दो-चार मिनट अम्बे नहीं उठा तो जशोदा ने अम्बे की रजाई खींच ली। अम्बे हड़बड़ा कर आँखें मलता हुआ उठा और खींचकर बोला -'इतेक भुन्सारे से दुकान काय खों आ खोल रईं?'
'हल्ला न करौ‘ जशोदा ने प्यार से झिड़कते हुए कहा- 'जाके मुंह धो ले।'
'हओ- कहकर अम्बे मुंह धोने जाने लगा तो जशोदा ने कहा- ‘दो बाल्टी पानी सोई भरत लाइयो।' अम्बे ने गुस्से से जशोदा की ओर देखा और बाल्टी उठाकर हैंडपम्प की ओर चला गया।
यह कहानी अनुपम श्रीवास्तव ‘निरूपम‘ द्वारा लिखी गई है। इस कहानी का दूसरा भाग आगे के दिनों में पढ़े।