दूर नदी मे एक पत्थर बहकर मेरे घर के पास आ गया
रंग बिरंगा अजीब सा यह पत्थर मेरे दिल को भा गया।
मुझे दिखा इसमे अपार शिल्प की संभावनाओ का सागर
गहराई से देखा तो पाया चंचल मन से छलकता गागर
पत्थर की स्थिरता करती है शिल्प का सपना साकार
इधर उधर गुड़कता पत्थर नहीं लेता निश्चित आकार
शिल्पी के मन मे बसता है अपने शिल्प का परम रूप
पत्थर नहीं जान सकता है, भाग्य मे धड़ा चरम स्वरूप
मैंने सोचा घर लेजा इसे अपने साँचे मे उतार लूँगा
छेनी हथोड़े की कला से संभावनाओ को उभार लूँगा
पत्थर यह देख घबराया और उसने मेरे मन को बाँचा
एक तरफ स्वतन्त्रता और दूसरी तरफ शिल्पी का साँचा
बहना,भटकना लगता अच्छा ,स्वतन्त्रता इसे प्यारी
यह जान मैंने छोड़ा छैनी हतोड़ा और शिल्प की तैयारी
जानता हूँ एक दिन तेज़ नदी की धार इसे बहा देगी
नीयति देगी कोइ रूप या फिर युही किनारे लगा देगी
क्या, समय की धार मेरा इस पत्थर से प्यार मिटा देगी
गजेंद्र कुमार व्यास