क्या हुआ जो मैं स्त्री हूँ,
सम्मान के लिए जीती हूँ।
आजादी का बिगुल बजाने दे,
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।
पत्थर बन के मैं क्यों रहूँ,
अन्याय तुम्हारा मैं क्यों सहूँ।
चल, दो-दो बातें करने दे,
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।
तुम्हारा हक है अहंकार,
तो मेरा भी वजूद नहीं निराकार।
अस्तित्व के लिए मुझे लड़ने दे,
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।
परदे से बाहर आना होगा,
दुःशासन से भी लड़ना होगा।
चल, दो-दो हाथ करने दे,
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।
तू झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन,
तू फूल नहीं, चिंगारी बन।
परिवर्तन की लहर आने दे,
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।