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पिता का संदेश

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आसमान में उड़ते पक्षी,अपना भोजन लाने को,पशु भी देखो टहल रहे हैं,अपना चारा खाने को।मानव भी अब निकल चुका है,अपना कर्म निभाने को,इधर उधर वो भटक रहा है,पैसे चार कमाने को।भरी दुपहरी तपता खपता,पेट की आग बुझा

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