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#आजादी का अमृत महोत्सव व यह कैसी मिशन शक्ति?

24 जुलाई 2022

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एक ओर सरकार जोर-शोर से महिलाओं की सुरक्षा , स्वावलंबन व सुरक्षा के लिए कटिबद्ध होकर 'मिशन  शक्ति ' कार्यक्रम चला रही है वहीं दूसरी ओर समाज में स्थित  कुत्सित विचारधारा  के लोग, आज भी महिलाओं को एक वस्तु और पुरुषों को संपत्ति मानते हैं। दुःख का विषय है कि आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, 75 वर्षों की विकास की इस अंधी दौड़ में हमने क्या खोया? क्या पाया? मंथन व गहन चिंतन - मनन का विषय है । कोई भी विचार देश-काल-परिस्थिति में निरपेक्ष नहीं होता। समय-काल-परिस्थितियों  में परिवर्तनके साथ ही  कुत्सित मौलिक विचारों में भी परिवर्तन की आवश्यकता होनी चाहिए। यदि  हम सर्वेक्षण करें तो यह सहज अनुभूति होती है कि पुरुषों को समाज द्वारा प्रदत्त अघोषित अधिकार यथा;, स्त्रियों को मारना-पीटना , स्त्रियों के दिल-दिमाग से खेलना , स्त्रियों के मनोबल को तोड़ना आज भी  उनके राक्षसी शक्ति की ओर इशारा करता है जो समाज की निम्न मानसिकता का परिचायक है । ऐसे में सवाल यह है कि 21 वी सदी के कहलाये जाने वाले तथाकथित समाज का लिंग को लेकर दोहरे चरित्र के साथ  विकास की गाथा का गुणगान करना कहाँ तक उचित है? क्या यह 'मिशन शक्ति'है ? यदि है  तो फिर  यह कैसी मिशन शक्ति? स्त्रियों के जन्मजात नैसर्गिक गुण, आंतरिक शक्ति, स्थिरता, धैर्यता, त्याग, सहनशीलता आदि का क्या यह परिणाम है या फिर देश की आधी आबादी के इस आधे -अधूरे स्वातंत्र्य को भी झेलने की शक्ति भी अब इस समाज को नहीं।  कभी-कभी लंबे समय तक कही जाने वाली निरर्थक और औचित्य हीन बातें व्यक्ति के मनोबल को चकनाचूर कर उसे अवसाद की ओर धकेलने का कार्य करती है । एक तरह की घुटन और मनः प्रहार की स्थिति का जन्म होता है । कहते हैं कि  एक छोटा  बिंदु  एक बड़े वाक्य पर विराम लगा देता है । ऐसे ही  एक छोटे परन्तु सशक्त 'स्व' से परिपूर्ण बिंदु की आवश्यकता है ।

समस्याओं को गिनाना कदाचित मेरा उद्देश्य नहीं वरन समस्याओं का तार्किक समाधान खोजना है । सकारात्मकता के साथ पुरुष प्रधान समाज द्वारा आधी आबादी को यदि उनके सशक्त प्रतिबिंब को निहारने और निखारने की स्वीकृति बिना किसी आंतरिक व बाह्य संघर्ष के दे दी जाए तो  फिर इस समस्या का तार्किक समाधान संभव है अन्यथा नहीं।

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