मेरे मन को झंकृत कर दे ,
आज लिखू मै ऐसा गीत |
फिर गाकर जिसको मेरा मन कहे ,
ये ही है वो संगीत |
पीने वाले रस को पीकर ,
न हो कभी भी भयभीत |
तभी मेरा मन कहे मुझसे ,
ये ही है वो संगीत |
और गाकर जिसको बंध जाये ,
मुझसे मेरा मनमीत |
क्यों न गाउ मै आज कोई ,
ऐसा संगीत |
नदिओं के बहती धारा के ,
कल - कल मै छिपा है एक संगीत |
जो किसी नई नवेली दुल्हन के ,
मन को दे नवगीत |
इस कविता को पढ़ने का तभी है मज़ा ,
जब तक की न मिले मुझे तेरी रज़ा |
आज एक भारतीय संगीत समारोह को देखकर ये कविता स्वयं ही बन गई |
' नीरज अग्रहरि '