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प्रभु तुम मेरे मन की जानो

17 फरवरी 2016

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मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है।

किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥

प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी।

यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी॥


इसीलिए इस अंधकार में, मैं छिपती-छिपती आई हूँ।

तेरे चरणों में खो जाऊँ, इतना व्याकुल मन लाई हूँ॥

तुम देखो पहिचान सको तो तुम मेरे मन को पहिचानो।

जग न भले ही समझे, मेरे प्रभु! मेरे मन की जानो॥


मेरा भी मन होता है, मैं पूजूँ तुमको, फूल चढ़ाऊँ।

और चरण-रज लेने को मैं चरणों के नीचे बिछ जाऊँ॥

मुझको भी अधिकार मिले वह, जो सबको अधिकार मिला है।

मुझको प्यार मिले, जो सबको देव! तुम्हारा प्यार मिला है॥


तुम सबके भगवान, कहो मंदिर में भेद-भाव कैसा?

हे मेरे पाषाण! पसीजो, बोलो क्यों होता ऐसा?

मैं गरीबिनी, किसी तरह से पूजा का सामान जुटाती।

बड़ी साध से तुझे पूजने, मंदिर के द्वारे तक आती॥


कह देता है किंतु पुजारी, यह तेरा भगवान नहीं है।

दूर कहीं मंदिर अछूत का और दूर भगवान कहीं है॥

मैं सुनती हूँ, जल उठती हूँ, मन में यह विद्रोही ज्वाला।

यह कठोरता, ईश्वर को भी जिसने टूक-टूक कर डाला॥


यह निर्मम समाज का बंधन, और अधिक अब सह न सकूँगी।

यह झूठा विश्वास, प्रतिष्ठा झूठी, इसमें रह न सकूँगी॥

ईश्वर भी दो हैं, यह मानूँ, मन मेरा तैयार नहीं है।

किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥


मेरा भी मन है जिसमें अनुराग भरा है, प्यार भरा है।

जग में कहीं बरस जाने को स्नेह और सत्कार भरा है॥

वही स्नेह, सत्कार, प्यार मैं आज तुम्हें देने आई हूँ।

और इतना तुमसे आश्वासन, मेरे प्रभु! लेने आई हूँ॥


तुम कह दो, तुमको उनकी इन बातों पर विश्वास नहीं है।

छुत-अछूत, धनी-निर्धन का भेद तुम्हारे पास नहीं है॥

-सुभद्राकुमारी चौहान

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मेरा नया बचपन

16 फरवरी 2016
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बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥ चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद। कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद? ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी? बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥ किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठ

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ठुकरा दो या प्यार करो

16 फरवरी 2016
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देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झ

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यह कदम्ब का पेड़

16 फरवरी 2016
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यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥ तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता। उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥ वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता। अम

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तुम

17 फरवरी 2016
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जब तक मैं मैं हूँ, तुम तुम हो, है जीवन में जीवन।कोई नहीं छीन सकता तुमको मुझसे मेरे धन॥आओ मेरे हृदय-कुंज में निर्भय करो विहार।सदा बंद रखूँगी मैं अपने अंतर का द्वार॥नहीं लांछना की लपटें प्रिय तुम तक जाने पाएँगीं।पीड़ित करने तुम्हें वेदनाएं न वहाँ आएँगीं॥अपने उच्छ्वासों से मिश्रित कर आँसू की बूँद।शीतल

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मेरा गीत

17 फरवरी 2016
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जब अंतस्तल रोता है, कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ?इन टूटे से तारों पर, मैं कौन तराना गाऊँ??सुन लो संगीत सलोने, मेरे हिय की धड़कन में।कितना मधु-मिश्रित रस है, देखो मेरी तड़पन में॥यदि एक बार सुन लोगे, तुम मेरा करुण तराना।हे रसिक! सुनोगे कैसे?फिर और किसी का गाना॥कितना उन्माद भरा है, कितना सुख इस रोने में?उनक

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प्रभु तुम मेरे मन की जानो

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स्मृतियाँ

17 फरवरी 2016
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क्या कहते हो? किसी तरह भी भूलूँ और भुलाने दूँ?गत जीवन को तरल मेघ-सा स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ?शान्ति और सुख से ये जीवन के दिन शेष बिताने दूँ?कोई निश्चित मार्ग बनाकर चलूँ तुम्हें भी जाने दूँ?कैसा निश्चित मार्ग? ह्रदय-धन समझ नहीं पाती हूँ मैं वही समझने एक बार फिर क्षमा करो आती हूँ मैं।जहाँ तुम्हारे च

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स्वदेश के प्रति

17 फरवरी 2016
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आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,स्वागत करती हूँ तेरा।तुझे देखकर आज हो रहा,दूना प्रमुदित मन मेरा॥आ, उस बालक के समानजो है गुरुता का अधिकारी।आ, उस युवक-वीर सा जिसकोविपदाएं ही हैं प्यारी॥आ, उस सेवक के समान तूविनय-शील अनुगामी सा।अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र मेंकीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥आशा की सूखी लतिकाएंतुझको पा

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परिचय

17 फरवरी 2016
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क्या कहते हो कुछ लिख दूँ मैं ललित-कलित कविताएं।चाहो तो चित्रित कर दूँ जीवन की करुण कथाएं॥सूना कवि-हृदय पड़ा है, इसमें साहित्य नहीं है।इस लुटे हुए जीवन में, अब तो लालित्य नहीं है॥मेरे प्राणों का सौदा, करती अंतर की ज्वाला।बेसुध-सी करती जाती, क्षण-क्षण वियोग की हाला॥नीरस-सा होता जाता, जाने क्यों मेरा ज

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आराधना

17 फरवरी 2016
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जब मैं आँगन में पहुँची, पूजा का थाल सजाए।शिवजी की तरह दिखे वे, बैठे थे ध्यान लगाए॥जिन चरणों के पूजन को यह हृदय विकल हो जाता।मैं समझ न पाई, वह भी है किसका ध्यान लगाता?मैं सन्मुख ही जा बैठी, कुछ चिंतित सी घबराई।यह किसके आराधक हैं, मन में व्याकुलता छाई॥मैं इन्हें पूजती निशि-दिन, ये किसका ध्यान लगाते?हे

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