"प्रकृति"
प्रकृति भी माँ की गोद-सी होती,
इसके आँचल में पूरी क़ायनात पलती,
तेरा संग बीता हर पल बड़ा सकून देते,
तेरी गोंद में जीवन के अनेक रूप फलते,
तुमनें मानव को दिया भरपूर प्यार,
इसकी झोली में भर दी खुशियाँ हजार,
लालची बन आप पर किए बड़े अत्याचार,
नदी पर अतिक्रमण कर नाले बना डाले,
पहाड़ की कटाई कर संतुलन बिगाड़ डाले,
झरने की कल-कल कम सुनाई देती,
पशु-पक्षियों के अस्तित्व पर आँच आती,
वनों का दोहन निरन्तर जारी,
एक -एक लकड़ी की होती मारामारी,
बाग-बगीचे भी अब कहाँ देखने को मिलते,
तालाब का भी स्वरूप मानव बिगाड़ते,
करते रहें अगर ऐसे प्रकृति से खिलवाड़,
प्रकृति माँ भी पल्लू से लेगी जकड़,
प्रकृति माँ जब अपना रौद्र रूप दिखाती,
बीमारी,भूकम्प,तूफान,जलजले से ताण्डव मचाती,
अब भी समय है मानुष बनकर रह
जीवन यापन प्रकृति के नियमबद्ध रह,
अपनी हदों में रहने की सीख प्रकृति देती,
हद से गुजरने वालों को प्रताड़ित करती,
रे मानव ना कर प्रकृति पर अत्याचार,
नही तो प्रकृति बनाकर रख देगी तेरा आचार।।
📖✍️नीरज खटूमरा