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प्रकृति (कविता)

14 नवम्बर 2021

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     "प्रकृति"


प्रकृति भी माँ की गोद-सी होती,

इसके आँचल में पूरी क़ायनात पलती,

तेरा संग बीता हर पल बड़ा सकून देते,

तेरी गोंद में जीवन के अनेक रूप फलते,

तुमनें मानव को दिया भरपूर प्यार,

इसकी झोली में भर दी खुशियाँ हजार,

लालची बन आप पर किए बड़े अत्याचार,

नदी पर अतिक्रमण कर नाले बना डाले,

पहाड़ की कटाई कर संतुलन बिगाड़ डाले,

झरने की कल-कल कम सुनाई देती,

पशु-पक्षियों के अस्तित्व पर आँच आती,

वनों का दोहन निरन्तर जारी,

एक -एक लकड़ी की होती मारामारी,

बाग-बगीचे भी अब कहाँ देखने को मिलते,

तालाब का भी  स्वरूप मानव बिगाड़ते,

करते रहें अगर ऐसे प्रकृति से खिलवाड़,

प्रकृति माँ भी पल्लू से लेगी जकड़,

प्रकृति माँ जब अपना रौद्र रूप दिखाती,

बीमारी,भूकम्प,तूफान,जलजले से ताण्डव मचाती,

अब भी समय है मानुष बनकर रह

जीवन यापन प्रकृति के नियमबद्ध रह,

अपनी हदों में  रहने की सीख प्रकृति देती,

हद से गुजरने वालों को प्रताड़ित करती,

रे मानव ना कर प्रकृति पर अत्याचार,

नही तो प्रकृति  बनाकर रख देगी तेरा आचार।।


📖✍️नीरज खटूमरा

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रचनाएँ
Neeraj khatumara की डायरी
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कविता:- लड़की होना क्या एक अभिशाप मुझे भी जीना है। पल -पल की ख़ुशी नहीं, मुझे हर पल जीना है। बेड़िया क्यों हैं मेरे आगे-पीछे, मुझे भी पैरों पर खड़ा होना है। घर से निकलना दूभर हुआ, गिद्धों से बचना मुश्किल हुआ, कभी बढ़ने से रोका, कभी पहने से टोका, कब तक घुटके जीना, कब तक मुँह छिपाए रोना, कभी सती बनाकर जलाया, कभी दरिंदों के हाथ लुटाया, कभी बीच बाज़ार बेची गई, मेरी साँसे ही मुझसे छीनी गई, कभी शरीर रूपी माँस को रौंदा गया, कइयों के द्वारा इससे खेला गया, कभी एसिड से जलाई गयी, कभी सिगरेट,मोम से दागी गयी, मैं भी तुम जैसी ही हूँ, हाड़ माँस की बनी हूँ, क्यों मुझे गिद्ध जैसी नजरों से देखते, मेरी राँहो में अड़चने डालते, मुझे भी जीना है। पल -पल की ख़ुशी नहीं, मुझे हर पल जीना है। - 2 मुझे भी बेधड़क सड़कों पर चलना है, मन पसंद पहनावा धारण करना है। रोको न मुझे टोको ना मुझे, अपनी जिद्द को पूरा करना है मुझे, अपने अरमानों को पाना है, पंख फैलाये दूर गगन में उड़ना है, कभी जवान बन रक्षा करना है, पायलेट बन आकाश को छूना है, वकील बन बेगुनाह को बचाना है। रेपिस्ट, बदमाश, एसिड अटेकर, दहेज लोभी, हत्यारों को सख़्त सजा दिलाना है, पुलिस बन इनको धर दबोचना है, नेवी ऑफिसर बन समुन्द्र की अथाह गहराई नापनी है। मुझे भी जीना है। पल -पल की ख़ुशी नहीं, मुझे हर पल जीना है। - 2 स्वरचित रचना 📖✍️ नीरज खटूमरा
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14 नवम्बर 2021
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<p> रक्तदान</p> <p><br> </p> <p>रास्ते पर तड़पते कोई </p> <p>अन

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गरीबी बनाम लालची

14 नवम्बर 2021
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<h3><br></h3> <p><br></p> <p> गरीब</p> <p>गरीबी ईमान नही बेचती,<br>

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प्रकृति (कविता)

14 नवम्बर 2021
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<p> "प्रकृति"</p> <p><br> </p> <p>प्रकृति भी माँ की गोद-सी होती,</p> <p>इसके आँचल

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सत्य

14 नवम्बर 2021
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<p>मिलजुल कर रहलों भैया क्यों करते हो बैर,</p> <p>सरकारे आती जाती इनका नाहीं कोई ठौर।</p> <p>आपस में

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