भारत में कोविड – 19 टीकाकरण अभियान आशाजनक है।
पक्ष:-
कोरोना एक बिन बुलाया मेहमान है।
बेवक्त कभी भी आकर बैठ जाता है।
ख़ुशहाल जिंदगी में अड़चन डाल देता है।
उठते बैठते चलते बस तेरा डर सताता है।
हाय! ये कैसी मजबूरी गले मे पड़ गई है।
अब तुम्हे बर्दास्त करना मजबूरी हो गई है।
तुम्हें घर से एक दिन जरूर निकालूँगा/गी।
सेनेटाइज से तुम्हें रगड़ रगड़ कर नहलाऊंगा/गी।
फेस मास्क लगाकर तेरे चपत लगाऊँगा/गी।
कोविड टिका लगवा लात मार घर से भगाऊँगा/गी।
फिर वापिस ख़ुशहाल जिंदगी जीयेंगे।
नई भौर में अपनी-अपनी मर्जी से रहेंगे।
📖✍️नीरज खटूमरा
भारत ही नही पूरा विश्व कोविड महामारी से थरथर काँपने लगा था। अपने आपको विश्व के सबसे ताकतवर समझने वाले देश अमेरिका,चीन भी नतमस्तक नजर आ रहे थे।खेर सभी देश एकजूट होकर कोविड का टीका बनाने में जूट गए। भारत ने भी कोविड का टीका बनाने में जी जान लगा दी। भारत ने टिका बनाने में सफलता भी हासिल की।
भारत में पहला मामला आने के लगभग एक वर्ष बाद, 16 जनवरी को भारत में सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई, जिससे जीवन अस्त-व्यस्त करने वाली एवं जानलेवा इस महामारी से उबरने की राह पर चलने की शुरुआत हुई।
दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के 34 वर्षीय सफाई कर्मी मनीष कुमार भारत में कोविड - 19 की वैक्सीन लेने वाले पहले व्यक्ति बने थे |
भारत में विकसित दो वैक्सीन लोगों के लिए उपलब्ध रही।- कोवैक्सीन और कोविशील्ड.। कोवैक्सीन को भारत बायोटेक ने तैयार करके उत्पादन जारी है। जबकि कोविशील्ड को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की लैब से तैयार किया जा रहा है। इसके साथ ही स्पुतनिक V भी लगाई जा रही है।
30 नवंबर 2021 तक , भारत ने वर्तमान में स्वीकृत टीकों की पहली और दूसरी खुराक सहित कुल मिलाकर 1.24 बिलियन से अधिक खुराक दी हैं। भारत में, 80% आबादी को कम से कम एक खुराक मिल गई है।
भारत की यह सबसे महत्वाकांक्षी योजना है | लेकिन 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में ऐसा होना भी चाहिए | और इसकी सफलता के लिए बहुत कुछ ऐसा हो भी रहा है | भारत विश्व में वैक्सीन का सबसे बड़ा उत्पादक है |
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इस टीकाकरण अभियान को तीन चरणों में चलाएगा।
1. पहले चरण में देश के सारे फ़्रंटलाइन कार्यकर्ता / आवश्यक सेवाकर्मी को वैक्सीन लगाई गई थी.
2. वैक्सीन का दूसरा चरण 1 मार्च, 2021 से शुरू किया गया था जिसमें 60 साल से ऊपर के लोगों को टीका लगाया गया था.
3. तीसरे चरण में पहले 45 साल और उससे ऊपर की आयु के लोग वैक्सीन लगवा सकते थे । फिर इसे बढ़ाकर 18+ कर दिया जाता है।
हमारे देश के वैज्ञानिक, डॉक्टर्स , नर्स, अध्यापक, पुलिश, सफाई कर्मचारी और फ्रंट लाइन वर्क्स सभी की मदद से भारत ने सफलता हासिल की। 19 टीकाकरण के समय एक नई आशा और ऊर्जा देखी गई |
लेकिन हमें अभी सावधानी रखनी है। क्योंकि कोरोना का नया वेरियंट ओमिक्रोन बहुत तेजी से फैलता है।इससे पूरी दुनिया भयभीत है।
“मास्क ,सेनिटाइजर और दूरी
कोरोना को भगाने में है जरूरी।
पहला डॉज वायरस को पहचाने में मददगार।
दूसरा डॉज वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी से वार।।
विपक्ष:-
कोविड-19 टीकाकरण अभियान आशाजनक है
विपक्ष :-
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने केंद्र और राज्यों के मंत्रालयों में तालमेल के साथ महामारी की भीषण चुनौती से निपटने को एक नियंत्रण योजना जारी की थी। लेकिन तालमेल नही होने के कारण उसका खामयाजा लोगों को उठाना पड़ा। हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी। सड़को पर एक एक सांस के लिए तड़पते लोगों के वीडियो देख मन पसीज जाता है। वह हालात ईश्वर दोबारा किसी को नही दिखाए। भारत सरकार ने कोविड वैक्सीन को लेकर जो दिशा निर्देश दिए उनका पालन ही नही किया गया। वैक्सीन सेंटर पर शुरुआत में तो लोग जाना ही नही चाहते थे। क्योंकि वह अफवाहों से इतने भयभीत थे। कि किसकी बात पर यकीन करें। किसकी बात पर नही। यह बात स्पष्ट ही नही कर सकें।
कोविड-19 वैक्सीन के प्रति लोगों में भरोसा जगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य पत्रकारों, वैज्ञानिक, सरकारी कर्मचारियों बहुत प्रयास किए। टिके के प्रभाव और लाभ के बारे में लोगों को समझाने का भरसक प्रयास किया। मगर लोगों का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी वैक्सीन को लेकर भ्रांति में ही है। लोगों के मन हमेशा डर सताता है। कि वैक्सीन लगने के बाद मुझे कुछ हो तो नही जायेगा। वैक्सीन लगने के बाद लगभग 80% लोगों को बुखार आता है। जिससे भी लोग डर जाते है। कोवाक्सिन को दी गई मंजूरी की भाषा भी भ्रामक थी, जिसमें उसे क्लिनिकल ट्रायल के तौर पर मंजूरी दी गई थी। इससे सार्वजनिक विमर्श में टीके के प्रति एक प्रकार का भ्रम पैदा हुआ। अतीत में भी भारत में टीके के प्रति अविश्वास एवं संकोच देखा गया है।
वैक्सीन केन्द्र पर कहीं तो लंबी लंबी लाइन देखी जाती थी। तो कहीं पर एक व्यक्ति की आशा में तरश रहा था। भले ही योग्य आबादी के 80% लोगों को वैक्सीन लग गई हो। मगर पहला डोज़ लगने के बाद दूसरा डोज़ लगवाना ही नही चाहते है। डॉक्टर्स,फ्रंटलाइन वर्कर ,टीचर्स, पुलिस ने अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों की सेवा की। मगर आज भी लोग लापरवाही में कमी नही छोड़ते है। सामाजिक दूरी, मास्क लगाना, हाथों को बार-बार साबुन से धोना या सेनिटाइजर करना । ये सब भूल गए। अभी आप कही भी चले जाओ। चारों तरह भीड़ ही दिखाई देती है। बस, रेल, पार्क, मॉल आदि में लोग बेधड़क घूमते नजर आ जाएंगे। अब ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें कीसी बात का डर ही नही है। वैक्सीन लगाना तो दूर की बात है। मुझे तो कभी कभी लगता है। लोगों को मौत का डर ही नही है। पर जब दूसरा ख्याल आता है। ख्याल में वही कोविड के भयावह समय की बातयाद आ जाती है। जिस परिवार ने अपना खोया है। उस परिवार से जाकर पता करें। तब अहसास होता है। कोविड कैसी बीमारी है। और लापरवाही हमें क्या नुकशान पहुँचा सकते है।
कोविड वैक्सीन के बारे में कई लोग कहते या बोलते हुए मिल जाएंगे। " कुछ ना होता वैक्सीन लगवाने से, लगवाने वाला भी ऐसे है जैसा मैं हूँ।" कोरोना तो कमजोर लोगों को होता है। "
वैक्सीन लगाव चुके लोगों को ऐसा कहते हुए देखा गया है।वैक्सीन से हाथ पैर में दर्द रहता है।
कमजोरी आती है। कुछ दिन बुखार रहता है। सुनने में तो यह भी आया है कि वैक्सीन लगने के बाद मृत्यु भी हो गई थी। खैर भारत जैसे विशाल देश मे वैक्सीन वितरण पर भी सवाल उठते रहे है। अभी भी 12+ को वैक्सीन लगाना शेष है।
कोविड-19 से है बचना,
वैक्सीन को है लगवाना ।
धन्यवाद
📖✍️नीरज खटूमरा