कविता:-
लड़की होना क्या एक अभिशाप
मुझे भी जीना है।
पल -पल की ख़ुशी नहीं,
मुझे हर पल जीना है।
बेड़िया क्यों हैं मेरे आगे-पीछे,
मुझे भी पैरों पर खड़ा होना है।
घर से निकलना दूभर हुआ,
गिद्धों से बचना मुश्किल हुआ,
कभी बढ़ने से रोका,
कभी पहने से टोका,
कब तक घुटके जीना,
कब तक मुँह छिपाए रोना,
कभी सती बनाकर जलाया,
कभी दरिंदों के हाथ लुटाया,
कभी बीच बाज़ार बेची गई,
मेरी साँसे ही मुझसे छीनी गई,
कभी शरीर रूपी माँस को रौंदा गया,
कइयों के द्वारा इससे खेला गया,
कभी एसिड से जलाई गयी,
कभी सिगरेट,मोम से दागी गयी,
मैं भी तुम जैसी ही हूँ,
हाड़ माँस की बनी हूँ,
क्यों मुझे गिद्ध जैसी नजरों से देखते,
मेरी राँहो में अड़चने डालते,
मुझे भी जीना है।
पल -पल की ख़ुशी नहीं,
मुझे हर पल जीना है। - 2
मुझे भी बेधड़क सड़कों पर चलना है,
मन पसंद पहनावा धारण करना है।
रोको न मुझे टोको ना मुझे,
अपनी जिद्द को पूरा करना है मुझे,
अपने अरमानों को पाना है,
पंख फैलाये दूर गगन में उड़ना है,
कभी जवान बन रक्षा करना है,
पायलेट बन आकाश को छूना है,
वकील बन बेगुनाह को बचाना है।
रेपिस्ट, बदमाश, एसिड अटेकर,
दहेज लोभी, हत्यारों
को सख़्त सजा दिलाना है,
पुलिस बन इनको धर दबोचना है,
नेवी ऑफिसर बन समुन्द्र की अथाह गहराई नापनी है।
मुझे भी जीना है।
पल -पल की ख़ुशी नहीं,
मुझे हर पल जीना है। - 2
स्वरचित रचना
📖✍️ नीरज खटूमरा