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प्रथम सर्ग

4 जून 2022

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नृप विराट की दुहिता वह, 

निश्छल थी सुकुमारी थी l

कली खिले ज्यों डाली में, 

वह कली पिता को प्यारी थी ll 1 ll


नित नए-नए रंगों से ज्यों, 

नारी मन पुलकित होता है l

मृग शावक सी भरती पग-पग, 

क्या ज्ञात उसे क्या खोता है ll 2 ll


तितली सी उड़ती इधर-उधर, 

पल भर में ही खो जाती थी l

सखियों को व्याकुल देख तुरत, 

पल भर को वह सुख पाती थी ll 3 ll


दिग-दिगन्त से भरे हूक, 

जिस तरह मेघ छा जाते थे l

ऋतुराज उसे कुछ सिखलाकर, 

अपने ही में सुख पाते थे ll 4 ll


विचरण करती थी अल्हण सी, 

ज़ब हँसती थी, इठलाती थी l

जीवन के इस उदगम में वह, 

रश्मि-तेज़ सी आती थी ll 5 ll


श्वेत नगों की विपुल धरा, 

मोती चुगते हैं हंस सदा l

रूप कामिनी की आभा, 

अव्यक्त यदा आकृष्ट कदा ll 6 ll


प्रावृट की उमड़-घुमड़ प्रतिपल, 

नयनों के नीर हँसे चंचल l

सुख पावन अमृतमय होकर, 

पग धोकर के होते निश्छल ll 7 ll


स्वर राग विहार भरे स्वर्णिम, 

नित नई-नई कलियाँ चटकीं l

वर्तुलाकार नभ की सखियाँ, 

अलसाई सी अविचल लटकीं ll 8 ll


इक दिवस प्राण था शोक युक्त, 

मन में विचित्र सा भाव उठा, 

कुछ मधुरोक्ति सी वाणी थी, 

नयनों में अद्भुत स्वप्न जगा ll 9 ll


कुछ देख रहे थे चक्षु दृश्य, 

मन व्याकुल है किन बातों से? 

सुख में दुःख मिल जाते ही, 

आँसू गिरते जिन बातों से ll 10 ll


उपवन में संध्या को निकली, 

मन बार-बार कुछ आकुल था l

वृक्षों के आसव शांत शेष, 

सब ओर बड़ा शोकाकुल था ll 11 ll


शाखाएं कंपित हुईं तभी, 

तरु व्याकुल हुआ उसी क्षण ही l

इक वाण विद्ध पक्षी आहत, 

आ गिरा पैर के पास वही ll 12 ll


विकल हुई निरुपाय हुई, 

हत्या-हत्या किसने की है? 

किस रक्त पिपासू दानव ने, 

अंजुलि भरकर इसको पी है ll 13 ll


सोचा फिर दौड़ पड़ी थी वह, 

जल भरने को अति आतुर थी l

सुकुमारी कन्या रक्त देख, 

घबराई थी शोकातुर थी ll 14 ll 


लौटी थी ज्यों ही जल लेकर, 

पक्षी समेत शर लुप्त हुआ l

अवयव थे जो, सब बिखर गए, 

नयनों का अंजन सुप्त हुआ ll 15 ll


सखियों को आते देख तुरत, 

भावों में परिवर्तन आया l

किन्तु कहीं पर किंचित सी, 

चिंतित थी उसकी काया ll 16 ll 


......शेष अगले सर्ग में l


स्वरचित 

✍️अजय श्रीवास्तव 'विकल' 


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रचनाएँ
उत्तरा : एक खंडकाव्य l
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उत्तरा : एक खंडकाव्य उत्तरा विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत का एक उपेक्षित स्त्री पात्र है l इस खंडकाव्य में उसके जीवन चरित्र के संबंध में कुछ उपेक्षित तत्वों को उकेरा गया है l उत्तरा महापराक्रमी अर्जुन की शिष्या के रूप में प्रस्तुत की गई l किन्तु महाभारत के युद्ध में पांडवो की विजय में उसका कितना योगदान था यह कोई नहीं जानता l इस खंडकाव्य में इसी तथ्य को बताने का अथक प्रयास किया गया है l इसके अतिरिक्त उसका विवाह जब अभिमन्यु के सँग हो जाता है तत्पश्चात अभिमन्यु की निर्मम हत्या पर उसके असीम दुःख को कौन सोचने वाला था, वह स्वयं l मानव के दुखों का संताप केवल उसी को होता है शेष तो सहानुभूति के आने जाने वाले पथिक की भांति होता है l आपके सम्मुख एक प्रयास है l ✍️ रचनाकार l अजय श्रीवास्तव 'विकल'
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प्रथम सर्ग

4 जून 2022
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नृप विराट की दुहिता वह,  निश्छल थी सुकुमारी थी l कली खिले ज्यों डाली में,  वह कली पिता को प्यारी थी ll 1 ll नित नए-नए रंगों से ज्यों,  नारी मन पुलकित होता है l मृग शावक सी भरती पग-पग,  क्या ज्ञात उ

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द्वितीय सर्ग

5 जून 2022
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सुरसरिता सी पावन कुटिया  तेज पुंज से ज्यों दमके l सौम्य वेश में वह तनया  भारत के मस्तक पर चमके ll 17 ll कुरु समाज में दुखी सभी  भीष्म द्रोण औ' कृप भी थे l किंतु द्रौपदी वस्त्र हरण  इन लोगों ने भी देख

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तृतीय सर्ग

9 जून 2022
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नृप विराट के यहाँ एक कीचक अभिमानी रहता था l हर नारी में मन रमता था व्यभिचारी जैसा दिखता था ll 48 ll आँखों में उसके प्रतिपल वासना ही नाचा करती थी l भोजन, निद्रा औ' व्यर्थ युद्ध जीवन में उसकी करनी थी ll

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चतुर्थ एवं पंचम सर्ग

10 जून 2022
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पांच गांव का सन्धिपत्र कौरव दल में विफल हुआ l युद्ध विकल्प ही शेष रहे पांडव दल में सफल हुआ ll 112 ll युद्ध भूमि में अर्जुन का रथ वासुदेव जब ले आए l संबंधों के उस मोह जाल से आँखों में जल भर लाए ll 113

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