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उत्तरा : एक खंडकाव्य l

अजय श्रीवास्तव

4 अध्याय
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उत्तरा : एक खंडकाव्य उत्तरा विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत का एक उपेक्षित स्त्री पात्र है l इस खंडकाव्य में उसके जीवन चरित्र के संबंध में कुछ उपेक्षित तत्वों को उकेरा गया है l उत्तरा महापराक्रमी अर्जुन की शिष्या के रूप में प्रस्तुत की गई l किन्तु महाभारत के युद्ध में पांडवो की विजय में उसका कितना योगदान था यह कोई नहीं जानता l इस खंडकाव्य में इसी तथ्य को बताने का अथक प्रयास किया गया है l इसके अतिरिक्त उसका विवाह जब अभिमन्यु के सँग हो जाता है तत्पश्चात अभिमन्यु की निर्मम हत्या पर उसके असीम दुःख को कौन सोचने वाला था, वह स्वयं l मानव के दुखों का संताप केवल उसी को होता है शेष तो सहानुभूति के आने जाने वाले पथिक की भांति होता है l आपके सम्मुख एक प्रयास है l ✍️ रचनाकार l अजय श्रीवास्तव 'विकल'  

uttara ek khandkavya l

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पुस्तक के भाग

1

प्रथम सर्ग

4 जून 2022
3
1
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नृप विराट की दुहिता वह,  निश्छल थी सुकुमारी थी l कली खिले ज्यों डाली में,  वह कली पिता को प्यारी थी ll 1 ll नित नए-नए रंगों से ज्यों,  नारी मन पुलकित होता है l मृग शावक सी भरती पग-पग,  क्या ज्ञात उ

2

द्वितीय सर्ग

5 जून 2022
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सुरसरिता सी पावन कुटिया  तेज पुंज से ज्यों दमके l सौम्य वेश में वह तनया  भारत के मस्तक पर चमके ll 17 ll कुरु समाज में दुखी सभी  भीष्म द्रोण औ' कृप भी थे l किंतु द्रौपदी वस्त्र हरण  इन लोगों ने भी देख

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तृतीय सर्ग

9 जून 2022
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नृप विराट के यहाँ एक कीचक अभिमानी रहता था l हर नारी में मन रमता था व्यभिचारी जैसा दिखता था ll 48 ll आँखों में उसके प्रतिपल वासना ही नाचा करती थी l भोजन, निद्रा औ' व्यर्थ युद्ध जीवन में उसकी करनी थी ll

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चतुर्थ एवं पंचम सर्ग

10 जून 2022
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पांच गांव का सन्धिपत्र कौरव दल में विफल हुआ l युद्ध विकल्प ही शेष रहे पांडव दल में सफल हुआ ll 112 ll युद्ध भूमि में अर्जुन का रथ वासुदेव जब ले आए l संबंधों के उस मोह जाल से आँखों में जल भर लाए ll 113

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