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प्रेम पथिक

28 अप्रैल 2022

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प्रेम पथिक 

मैं प्रेम पथिक 
संवर के चला 
उस गली 
जहां उसका घर था , 

खंगालता रहा 
उनकी खिडकियों को ,
लहराते परदे को ,
जिसके पीछे 
मेरा शहर था |

मैं प्रेम पथिक 
पर अनभिग्य थी  वह ,
उसकी सरलता के 
समन्दर में डूबता ,
तैरता , उतराता 
बस देखता रहा  
निशा तक 
जहां उसका घर था |

बसंत आये कितने 
और  चले गए ,
वह विदा हो रही थी 
औरों की डोली में ,
मैं दिल में 
बिठाये  उसे 
उस डगर से मुड चला ,
उस गली   में 
जहां मेरे  मंदिर में 
उसका एक घर था |
रचनाकार

डॉ वासु देव यादव

डा . वासु देव यादव , रायगढ , छ.ग.
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रचनाएँ
शब्दो का जादू ( काब्य पुस्तक)
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समाज की सकारात्मक, नाकारात्मक सोच के परिणामताः हो रही घटनाओं, दुर्घटनाओं की शब्दों के द्वारा प्रत्यक्ष गवाही
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राजनीति

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लाशों पर आशियाना

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धुंध

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मन पाखी.... अनंत आकाशबिन मनके की सुंदर मालानहीं है कहीं...कोई मधुशाला,निश्छल निर्मल रहती प्रस्तुतिप्रकृति तुल्य इनकी स्तुति।कवि _डॉ वासु देव यादव

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मां शारदे तेरे चरणों में मेरा नमन दैनिक प्रतियोगिता

6 फरवरी 2022
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मां तेरी वीणापल पल हृदय कोनिर्मल करती जाए,क्षण क्षण के छंद तेरे उपवन के, मन पुलकितसजल नयन श्रद्धानवत हर पल । कवि , डॉ वासु देव यादव

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टूटे हुए सपने

7 फरवरी 2022
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ईर्ष्या दैनिक प्रतियोगिता

8 फरवरी 2022
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वह रोज नये रूपों में आती रही "नि:शब्द"।साधनारत था मैं,वो कहती हैं उसके रुप सेजलते रहे हम।कवि, डॉ वासु देव यादव

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जख्म

9 फरवरी 2022
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जख्म दिया उन्होंने अब टांके लगा रहे या कुरेद रहे हैं ,दर्द ए हालात पे वे चुप , गमों की बिछी चादरपर लिख रहे मैं रहनुमामैं रहनुमा । कवि** डॉ वासु देव यादव

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भ्रमरी

10 फरवरी 2022
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भ्रमर कर गया कानों में गुंजनगुलाब खिल जाते, करते पग वंदन बस एक मुस्कुराहट दे जाती भ्रमरी कविडॉ वासु देव यादव

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उम्मीद का दीया दैनिक प्रतियोगिता

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विदा होती बेटी से किलकारी की आसउनका मातृत्व , हमें पुनः मिलाएंगीजब वह मासूम को आशीर्वाद दिलवाने बेसब्र सी पुनःअपनी देहलीज पर आयेगीइसी आस में हम अपना गुलश

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नारी शक्ति में बिखराव , दिशाएं दिग्भ्रमित मुझसे दोस्ती करोगे , *समझ*काल कवलित रिश्ते बदहवास, बस नेट पर दोस्त है खास। कलम तो हाथियार है, ममता तो निष्क

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मेरे घर की सिसकियांमेरी बेबसी पर विचलित,अपनी बेबसी की गवाह मुझे बनाती,कुछ न कर पाने की मेरी असमर्थता पर उसका रूदन दीवारों पर अंकित हो रहा है दरारें बन कर ।कविडॉ वासु देव

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दोस्ती में "कमीने" शब्द भी अलंकृत हो गए ,अपनापन भर गया दिल में शब्द सुसंस्कृत हो गए,जब कहा दोस्त नेआओ *कमीने* !बहुत दिनो बाद मेरी याद आई,न जाने क्या सोच कर .. मेरे दोस्त की आंख भ

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प्रेम पुंज ज्वाला( दैनिक प्रतियोगिता)

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__________________ शीर्षक_प्रेम ज्वाला___________________ मैं पुंज प्रेम ज्वाला में प्रखर हर पल की सांसों में तेजाब हूं ।होश में भी रहती मदहोश सी उफन गई , यौवन की किता

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सुशांत राजपूत

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दैनिक प्रतियोगिता_____________सुशांत राजपूत_____________यह तो सच है ना.........,!एक सुशांत का अंत......एक प्रेम का अंत है ।दर्शकों के स्नेह काउनके धड़कनों के सुरताल में अनंत है

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शीर्षक_शिवमय शिव जी, कुछ यूं चढ़ी खुमारी, कि आप ही आप नज़र आते हैं।चहल पहल से भरे पनघट , क्या सांझ क्या सवेरे बस आप हर कहीं दिख जाते हैं,भ

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बरसते ओले___________बरसते ओले_ पत्थरतेज हवा भयंकर तुफान था मर्मान्तक साअंत था ।दस वर्ष का मासूमशायद निष्पंदित थापर देख रहा था उस ओर एक पत्थर की ओट से अटल था आँ

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गूढ़ अर्थ_______मानव मानव एक समान,तो क्यों न करे "जग" सब धर्मों का सम्मान।धर्मांतरण के रास्ते,बेबस जाने न पाए,अपनो को परदेश ,और भरमाने न पाए।जग को हम,सब धर्मों का राज समझाएं,आओ, सबको कहें अ

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भागवत , बायबल और कुरान_______________________रामायण,गुरु ग्रंथ, चर्च और कुरानसबके उपदेश एक, तो क्यूं धर्म अनेक?उनका धर्म....हम रास्ते जाने न पाए,उनका प्रसाद....एक खाने न पाए। वैमनस्यता&nbsp

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दुर्गा महागौरी , है जग कल्याणी, मेरा हर सांस तुझको अर्पणहै महा गौरी, अष्टम दिन कर जोरी करता तुझको नमनमाँ तू भावना में हैं सागर।। अप्रतिम सौन्दर्य स्वामिनी माँ&nb

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प्रेम पथिक

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प्रेम पथिक मैं प्रेम पथिक संवर के चला उस गली जहां उसका घर था , खंगालता रहा उनकी खिडकियों को ,लहराते परदे को ,जिसके पीछे मेरा शहर था |मैं प्रेम पथिक पर अनभिग्य थ

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जल रही है धरती (दैनिक प्रतियोगिता के लिए) डॉ वासु देव यादव

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युद्ध राजनैतिक बुलबुला, अनसुलझे सपनों की खेप । रॉकेट लॉन्चर सब निगल गए, इच्छायें रही अशेष।। रक्त चिंगारी में तब्दील, लपटें धधकती&nb

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