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शिवमय दैनिक प्रतियोगिता

2 मार्च 2022

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शीर्षक_शिवमय 
शिव जी, कुछ यूं चढ़ी खुमारी, 
कि आप ही  आप नज़र आते हैं।
चहल पहल से  भरे पनघट  , क्या सांझ   क्या सवेरे
 बस आप  हर कहीं दिख  जाते  हैं,
भटका हुआ यह मन... सम्मोहित करते  अंतर्मन, सबको  महकाते  हैं।

आपकी  भक्ति की मस्ती  में चूर ,  
बस आपके  नाम से  चिलम पिए जाते हैं।
 इस लोक के नहीं हैं हम , शिव लोक के एहसास पर जिए जाते हैं।

 इस जहां में रिश्तों से ही तो घात होता है,
 आहत भावनाओं का मोल नहीं,
यहां तो सब बकवास होता है,
इस दुनिया में तो प्रभु, बस अपनों से ही तो  व्यवसाय  होता है ।

हम तो बस अब आपके दीवाने,
वात्सल्य से भरपूर  आपका ही तो
 समर्पित व्यवहार होता है।

इस वीरान ज़िंदगी में आप प्रेम की  महक फैलाते है।
संघर्ष आपका युगों_युगों से
 आपके  स्मरण से ही याद वे आते हैं।
 सृष्टि को थामे रखने आप नीलकंठ बन जाते हैं,

 भक्त की इच्छा पूर्ति करने
  काल को भी  ठहरने विवश कर जाते हैं।
तभी तो आप महाकाल कहलाते है
प्रेम सदा ही  अक्षय आपका,  भक्तों के लिए कुछ भी कर जाते हैं ।

आत्मा मेरी व्यग्र अब  .. बस आपमें मिल जाना है
आपकी सांसों में समाहित , मुझे अब चरण पादुका शिव जी की कहलाना है ।
 द्वारा_ डॉ वासु देव यादव
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शब्दो का जादू ( काब्य पुस्तक)
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दैनिक प्रतियोगिता_____________सुशांत राजपूत_____________यह तो सच है ना.........,!एक सुशांत का अंत......एक प्रेम का अंत है ।दर्शकों के स्नेह काउनके धड़कनों के सुरताल में अनंत है

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शिवमय दैनिक प्रतियोगिता

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