युद्ध राजनैतिक बुलबुला,
अनसुलझे सपनों की खेप ।
रॉकेट लॉन्चर सब निगल गए,
इच्छायें रही अशेष।।
रक्त चिंगारी में तब्दील,
लपटें धधकती विश्व की ओर ।
कोयल अब कोमा में,
मूर्छित हुईं है भोर।।
विश्व पृथ्वी दिवस क्यूं श्रापित,
पृथ्वी का क्यूं चीरहरण ।
वृक्ष भी अब लहूलुहान,
हरियाली का क्षरण।।
अग्नि रोपित वन आंगन में,
झुलसी धरा आंचल।
श्रृष्टि हित क्यूं दरकिनार,
अस्त्र शस्त्र अब बाहुबल।।
युद्ध भीषण पर्यावरणीय आहुति,
हुई अक्षम्य भूल।
प्रदूषण पोषित धरा,
मनुष्य आतुरता प्रतिकूल।।
क्षण क्षण पिघलता हिम शिखर,
तापमान का क्लेश।
ग्रह तारे नक्षत्र व्याकुल,
पनप रहे विद्वेष।।
शतरंज की शकुनी बिसात,
युक्रेन है अक्रांत।
विध्वंस से भयभीत जग,
मनुष्य बहुत क्लांत ।।
खेलता कौन किस राष्ट्र से,
कौन किसकीअस्मिता से दुष्टता।
देश से ऊपर श्रृष्टि सत्य,
संवादीय प्रस्फुटन आवश्यकता ।।
पर्यावरण की फूटी तकदीर,
युक्रेन रूस से निकली शमशीर।
यौन भक्षी मनुष्य मुखौटे,
रेप हथियार ज़हर बुझी है तीर।।
जंगल शहर अग्नि शिखा,
बेबस मानव अंतरराष्ट्रीय कानून।
धधक रही हैं अट्टालिकाएं,
मृत्यु तांडव है जुनून।।
अब चालीस देश एक साथ,
ताइवान पर भड़का चीन।
संभावित है बड़ा प्रहार,
शायद नजदीक विश्व युद्व के दिन।
ह्वदय कंपित करती विस्फोटक,
क्रंदन करता मासुम।
पिता हुये शहीद बॉर्डर पे,
मां की चित्कार रही है गूंज ।।
क्षत विक्षत दुर्गन्धित मालिक,
दुर्गन्धित कुत्ते बैठे दूर।
झर झर बहते नीर नयन से,
भूख से हैं व्याकुल।।
श्रृष्टि को हम रखें समक्ष,
श्रृष्टि रहे अक्षुण।
राग द्वेष सब पाप जनक,
सामंजस्य है पुण्य।।
फसलों की व हथियारों की,
कौन जीवन हमें है देता।
सत्य निकट है पर लालसा भारी,
मन भ्रमित है रहता।।
है प्रचंड बुझा उसे,
भीतर अंगार जो प्रज्वल्लित।
बहती तेरी रक्त शिराओं में,
दिव्य प्रकाश है आलोकित।।
अश्रुकुंड विधवा महल,
लाशों से विस्फरित शमशान।
हलाहल की राजनीति में,
मिट गया सब अपनापन।।
विध्वंस के बाद का सूनापन,
शून्य में है कुछ बोलता।
जमीर की जड़ें हिली या नही,
तानाशाह है टटोलता।।
पा कर एक मासूम लावारिस,
उसका मातृत्व है लौटा।
उजड़े हुए आशियाने में,
नवजीवन का झौंका।।
सहे तनाव विश्व यह,
जनमानस में हाहाकार।
क्या यह अंतिम युग,
नवयुग लेगा आकार।।