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प्रेमासक्ति

15 जुलाई 2022

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सवैया


प्रान वही जू रहैं रिझि वा पर रूप वही जिहि वाहि रिझायौ।

सीस वही जिन वे परसे पर अंक वही जिन वा परसायौ।।

दूध वही जु दुहायौ री वाही दही सु सही जु वही ढरकायौ।=

और कहाँ लौं कहौं रसखानि री भाव वही जु वही मन भायौ।।125।।


देखन कौं सखी नैन भए न सबै बन आवत गाइन पाछैं।

कान भए प्रति रोम नहीं सुनिबे कौं अमीनिधि बोलनि आछैं।।

ए सजनी न सम्‍हारि भरै वह बाँकी बिलोकनि कोर कटाछै।

भूमि भयौ न हियो मेरी आली जहाँ हरि खेलत काछनी काछै।।126।।


मोरपखा मुरली बनमाल लखें हिय कों हियरा उमह्यौ री,

ता दिन ते इन बैरिनि को कहि कौन न बोल कुबोल सह्यौ री।।

तौ रसखानि सनेह लग्‍यौ कोउ एक कह्यौ कोउ लाख कह्यौ री।।

और तो रंग रह्यौ न रह्यौ इक रंग रँगी सोह रंग रह्यौरी।।127।।


बन बाग तड़ागनि कुंजगली अँखियाँ मुख पाइहैं देखि दई।

अब गोकुल माँझ बिलोकियैगी बह गोप सभाग-सुभाय रई।।

मिलिहै हँसि गाइ कबै रसखानि कबै ब्रजबालनि प्रेम भई।

वह नील निचोल के घूँघट की छबि देखबी देखन लाज लई।।128।।


काल्हि पर्यौ मुरली-धन मैं रसखानि जू कानन नाम हमारो।

ता दिन तें नहिं धीर रखौ जग जानि लयौ अति कीनौ पँवारो।।

गाँवन गाँवन मैं अब तौ बदनाम भई सब सों कै किनारो।

तौ सजनी फिरि फेरि कहौं पिय मेरो वही जग ठोंकि नगारो।।129।।


देखि हौं आँखिन सों पिय कों अरु कानन सों उन बैन को प्‍यारी।

बाँके अनंगनि रंगनि की सुरभीनी सुगंधनि नाक मैं डारी।

त्‍यौं रसखानि हिये मैं धरौं वहि साँवरी मूरति मैन उजारी।

गाँव भरौ कोउ नाँव धरौं पुनि साँवरी हों बनिहों सुकुमारी।।130।।


तुम चाहो सो कहौ हम तो नंदवारै के संग ठईं सो ठईं।

तुम ही कुलबीने प्रवीने सबै हम ही कुछ छाँड़ि गईं सो गईं।

रसखान यों प्रीत की रीत नई सुकलंक की मोटैं लईं सो लईं।

यह गाँव के बासी हँसे सो हँसे हम स्‍याम की दासी भईं सो भईं।।131।।


मोर पखा धरे चारिक चारु बिराजत कोटि अमेठनि फैंटो।

गुंज छरा रसखान बिसाल अनंग लजावत अंग करैटो।

ऊँचे अटा चढ़ि एड़ी ऊँचाइ हितौ हुलसाय कै हौंस लपेटो।

हौं कब के लखि हौं भरि आँखिन आवत गोधन धूरि धूरैटो।।132।।


कुंजनि कुंजनि गुंज के पुंजनि मंजु लतानि सौं माल बनैबो।

मालती मल्लिका कुंद सौं गूंदि हरा हरि के हियरा पहिरैबौ।

आली कबै इन भावने भाइन आपुन रीझि कै प्‍यारे रिझैबो।

माइ झकै हरि हाँकरिबो रसखानि तकै फिरि के मुसकेबो।।133।।


सब धीरज क्‍यों न धरौं सजनी पिय तो तुम सों अनुरागइगौ।

जब जोग संजोग को आन बनै तब जोग विजोग को मानेइगौ।

निसचै निरधार धरौ जिय में रसखान सबै रस पावेइगौ।

जिनके मन सो मन लागि रहै तिनके तन सौं तन लागेइगो।।134।।


उनहीं के सनेहन सानी रहैं उनहीं के जु नेह दिवानी रहैं।

उनहीं की सुनै न औ बैन त्‍यौं सैंन सों चैन अनेकन ठानी रहैं।

उनहीं संग डोलन मैं रसखान सबै सुखसिंध अघानी रहैं।

उनहीं बिन ज्‍यों जलहीन ह्वै मीन सी आँखि अंसुधानी रहैं।।135।।

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रचनाएँ
रसखान की प्रसिद्ध कविताएँ
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रसखान का जन्म सन् 1548 में हुआ माना जाता है। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था और वे दिल्ली के आस-पास के रहने वाले थे। कृष्ण-भक्ति ने उन्हें ऐसा मुग्ध कर दिया कि गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में जा बसे। सन् 1628 के लगभग उनकी मृत्यु हुई। रसखान एक मुस्लिम कवि होते हुए भी एक सच्चे कृष्णभक्त थे. उनके द्वारा रचित सवैये में कृष्ण एवं उनकी लीला-भूमि वृन्दावन की प्रत्येक वस्तु के प्रति उनका लगाव प्रकट हुआ है। प्रथम सवैये में कवि रसखान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति का उदाहरण पेश करते हैं। रसखान कृष्ण से प्रेम करते हैं साथ ही कृष्ण से जुड़ी ब्रजभूमि के वन, बाग, तालाबों आदि के प्रति भी अपना प्रेम प्रकट करते हैं। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें भी अपनी मातृभूमि के एक-एक तत्त्व से प्रेम करना चाहिए।
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भक्ति-भावना

15 जुलाई 2022
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मानुष हों तौ वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्‍वारन। जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन। पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन। जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिं

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कृष्‍ण का अलौकिकत्‍व

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सवैया संकर से सुर जाहि भजैं चतुरानन ध्‍यानन धर्म बढ़ावैं। नैंक हियें जिहि आनत ही जड़ मूढ़ महा रसखान कहावैं। जा पर देव अदेव भू-अंगना वारत प्रानन प्रानन पावैं। ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ

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अनन्‍य भाव

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सवैया सेष सुरेस दिनेस गनेस अजेस धनेस महेस मनावौ। कोऊ भवानी भजौ मन की सब आस सबै विधि जोई पुरावौ। कोऊ रमा भजि लेहु महाधन कोऊ कहूँ मन वाँछित पावौ।\ पै रसखानि वही मेरा साधन और त्रिलौक रहौ कि बसावौ।।

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मिलन

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सवैया मोर के चंदन मौर बन्‍यौ दिन दूलह है अली नंद को नंदन। श्री वृषभानुसुता दुलही दिन जोरि बनी बिधना सुखकंदन। आवै कह्यौ न कछू रसखानि हो दोऊ बंधे छबि प्रेम के फंदन। जाहि बिलोकें सबै सुख पावत ये ब्रज

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रूप-माधुरी

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सवैया मोतिन लाल बनी नट के, लटकी लटवा लट घूँघरवारी। अंग ही अंग जराव लसै अरु सीस लसै पगिया जरतारी। पूरब पुन्‍यनि तें रसखानि सु मोहिनी मूरति आनि निहारी। चारयौ दिसानि की लै छबि आनि के झाँकै झरोखे मै

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प्रेम लीला

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कवित्‍त कदम करीर तरि पूछनि अधीर गोपी           आनन रुखोर गरों खरोई भरोहों सो। चोर हो हमारो प्रेम-चौंतरा मैं हार्यौ           गराविन में निकसि भाज्‍यौ है करि लजैरौं सो। ऐसे रूप ऐसो भेष हमैहूं दि

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बंक बिलोचन

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सवैया मैन मनोहर नैन बड़े सखि सैननि ही मनु मेरो हर्यौ है। गेह को काज तज्‍यौ रसखानि हिये ब्रजराजकुमार अर्यौ है।। आसन-बासन सास के आसन पाने न सासन रंग पर्यौ है। नैननि बंक बिसाल की जोहनि मत्‍त महा मन

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मुस्‍कान माधुरी

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सवैया वा मुख की मुसकान भटू अँखियानि तें नेकु टरै नहिं टारी। जौ पलकैं पल लागति हैं पल ही पल माँझ पुकारैं पुकारी। दूसरी ओर तें नेकु चितै इन नैनन नेम गह्यौ बजमारी। प्रेम की बानि की जोग कलानि गही रस

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कृष्‍ण सौंदर्य

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दोहा जोहन नंदकुमार कों, गई नंद के गेह। मोहिं देखि मुसकाइ कै, बरस्‍यौ मेह सनेह।।83।। सवैया मोरपखा सिर कानन कुंडल कुंतल सों छबि गंडनि छाई। बंक बिसाल रसाल बिलोचन हैं दुखमौचन मोहन माई। आली नवी

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रूप प्रभाव

15 जुलाई 2022
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सवैया नवरंग अनंग भरी छवि सौं वह मूरति आँखि गड़ी ही रहैं बतिया मन की मन ही मैं रहे घतिया उर बीच अड़ी ही रहैं। तबहूँ रसखानि सुजान अली नलिनी दल बूँद पड़ी ही रहै। जिय की नहिं जानत हौं सजनी रजनी अँसु

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कुंज लीला

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सवैया कुंजगली मैं अली निकसी तहाँ साँकरे ढोटा कियौ भटभेरो। माई री वा मुख की मुसकान गयौ मन बूढ़ि फिरै नहिं फेरो।। डोरि लियौ दृग चोरि लियौ चित डार्यौ है प्रेम को फंद घनेरो। कैसा करौं अब क्‍यों निकस

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नटखट कृष्‍ण

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कवित अंत ते न आयौ याही गाँवरे को जायौ,           माई बाप रे जिवायौ प्‍याइ दूध बारे बारे को। सोई रसखानि पहिचानि कानि छांड़ि चाहे,           लोचन नचावत नचया द्वारे द्वारे को। मैया की सौं सोच कछू

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मुरली प्रभाव

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कवित्‍त दूध दुह्यौ सीरो पर्यौ तातो न जमायौ कर्यौ,          जामन दयौ सो धर्यौ, धर्यौई खटाइगौ। आन हाथ आन पाइ सबही के तब ही तें,           जब ही तें रसखानि ताननि सुनाइगौ। ज्‍यौं ही नर त्‍यौंहों ना

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कालिय दमन

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कवित्‍त आपनो सो ढोटा हम सब ही को जानत हैं,            दोऊ प्रानी सब ही के काज नित धावहीं। ते तौ रसखानि जब दूर तें तमासो देखैं,           तरनितनूजा के निकट नहिं आवहीं आन दिन बात अनहितुन सों कहौं

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चीर हरण

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सवैया एक समै जमुना-जल मैं सब मज्‍जन हेत धसीं ब्रज-गोरी। त्‍यौं रसखानि गयौ मनमोहन लै कर चीर कदंब की छोरी।। न्‍हाइ जबै निकसी बनिता चहुँ ओर चितै चित रोष करो री। हार हियें भरि भावन सों पट दीने लला ब

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प्रेमासक्ति

15 जुलाई 2022
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सवैया प्रान वही जू रहैं रिझि वा पर रूप वही जिहि वाहि रिझायौ। सीस वही जिन वे परसे पर अंक वही जिन वा परसायौ।। दूध वही जु दुहायौ री वाही दही सु सही जु वही ढरकायौ।= और कहाँ लौं कहौं रसखानि री भाव वह

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प्रेम बंधन

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सवैया चंदन खोर पै चित्‍त लगाय कै कुंजन तें निकस्‍यौ मुसकातो। राजत है बनमाल गले अरु मोरपखा सिर पै फहरातो। मैं जब तें रसखान बिलोकति हो कजु और न मोहि सुहातो। प्रीति की रीति में लाज कहा सखि है सब सो

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नेत्रोपालंभ

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सवैया आली पग रंगे जे रंग साँवरे मो पै न आवत लालची नैना। धावत हैं उतहीं जित मोहन रोके रुके नहिं घूँघट रोना। काननि कौं कल नाहिं परै सखी प्रेम सों भीजे सुनैं बिन नैना। रसखानि भई मधु की मछियाँ अब ने

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प्रेम-वेदन

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सवैया वह गोधन गावत गोधन मैं जब तें इहि मारग ह्वै निकस्‍यौ। तब ते कुलकानि कितीय करौ यह पापी हियो हुलस्‍यौ हुलस्‍यौ। अब तौ जू भईसु भई नहिं होत है लोग अजान हँस्‍यौ सुहँस्‍यौ। कोउ पीर न जानत सो तिनक

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रास लीला

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कवित्‍त अधर लगाइ रस प्‍याइ बाँसुरी बजाइ,             मेरो नाम गाइ हाइ जादू कियौ मन मैं। नटखट नवल सुधर नंदनंदन ने,            करि कै अचेत चेत हरि कै जतन मैं। झटपट उलट पुलट पट परिधान,           

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फाग-लीला

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सवैया खेलत फाग लख्‍यौ पिय प्‍यारी को ता मुख की उपमा किहिं दीजै। देखत ही बनि आवै भलै रसखान कहा है जो बार न कीजै।। ज्‍यौं ज्‍यौं छबीली कहै पिचकारी लै एक लई यह दूसरी लीजै। त्‍यौं त्‍यौं छबीलो छकै छ

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राधा का सौंदर्य

15 जुलाई 2022
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कवित्‍त आजु बरसाने बरसाने सब आनंद सों,              लाड़िली बरस गाँठि आई छबि छाई है। कौतुक अपार घर घर रंग बिसतार,               रहत निहारि सुध बुध बिसराई है। आये ब्रजराज ब्रजरानी दधि दानी संग,

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मानवती राधा

15 जुलाई 2022
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सवैया वारति जा पर ज्‍यौ न थकै चहुँ ओर जिती नृप ती धरती है। मान सखै धरती सों कहाँ जिहि रूप लखै रति सी रती है। जा रसखान‍ बिलोकन काजू सदाई सदा हरती बरती है। तो लगि ता मन मोहन कौं अँखियाँ निसि द्यौस ह

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सखी शिक्षा

15 जुलाई 2022
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सवैया सोई है रास मैं नैसुक नाच कै नाच नचायौ कितौ सबकों जिन। सोई है री रसखानि किते मनुहारिन सूँघे चितौत न हो छिन।। तौ मैं धौं कौन मनोहर भाव बिलोकि भयौ बस हाहा करी तिन। औसर ऐसौ मिलै न मिलै फिर लगर

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संयोग-वर्णन

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सवैया बिहरैं पिय प्‍यारी सनेह सने छहरैं चुनरी के फवा कहरैं। सिहरैं नव जोबन रंग अनंग सुभंग अपांगनि की गहरैं। बहरें रसखानि नदी रस की लहरैं बनिता कुल हू भहरैं। कहरैं बिरही जन आतप सों लहरैं लली लाल

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वियोग-वर्णन

15 जुलाई 2022
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सवैया फूलत फूल सवै बन बागन बोलत मौर बसंत के आवत। कोयल की किलकारी सुनै सब कंत बिदेहन तें सब धावत। ऐसे कठोर महा रसखान जु नेकुह मोरी ये पीर न पावत। हक ही सालत है हिय में जब बैरिन कोयल कूक सुनावत।।2

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सपत्‍नी-भाव

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सवैया वा रसखानि गुनौं सुनि के हियरा अत टूक ह्वै फाटि गयौ है। जानति हैं न कछू हम ह्याँ उनवाँ पढ़ि मंत्र कहा धौं दयौ है। साँची कहैं जिय मैं निज जानि कै जानति हैं जस जैसो लयौ है। लोग लुगाई सबै ब्रज

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कुबलियापीड़-वध

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सवैया कंस के क्रोध की फैलि रही सिगरे ब्रजमंडल माँझ फुकार सी। आइ गए कछनी कछिकै तबहीं नट-नागरे नंद कुमार-सी।। द्वैरद को रद खैंचि लियौ रसखान हिये माहि लाई विमार-सी। लीनी कुठौर लगी लखि तोरि कलंक तमा

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उद्धव-उपदेश

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सवैया जोग सिखावत आवत है वह कौन कहावत को है कहाँ को। जानति हैं बर नागर है पर नेकहु भेद लख्‍यौ नहिं ह्याँ को। जानति ना हम और कछू मुख देखि जियै नित नंदलला को। जात नहीं रसखानि हमैं तजि राखनहारी है म

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ब्रज-प्रेम

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सवैया या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहुँ परु को तजि डारौं। आठहु सिद्ध निवौ निधि को सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं। ए रसखानि जबैं इन नैनन ते ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं। कोटिक ये कलधौत के धाम करील क

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गंगा महिमा

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सवैया इक ओर किरीट लसै दुसरी दिसि नागन के गन गाजत री। मुरली मधुरी धुनि आधिक ओठ पै आधिक नंद से बाजत री। रसखानि पितंबर एक कंधा पर एक वाघंबर राजत री। कोउ देखउ संगम लै बुड़की निकसे यहि मेख सों छाजत र

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शिव-महिमा

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सवैया यह देखि धतूरे के पात चबात औ गात सों धूलि लगावत है।। चहुँ ओर जटा अटकै लटके फनि सों कफनी फहरावत हैं।। रसखानि सोई चितवै चित दै तिनके दुखदंद भजावत हैं। गज खाल की माल विसाल सो गाल बजावत आवत हैं

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मानुस हौं तो वही

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मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन। जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि क

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या लकुटी अरु कामरिया

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या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥ रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं। कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के

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सेस गनेस महेस दिनेस

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सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै। जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥ नारद से सुक व्यास रटें, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं। ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं

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धूरि भरे अति सोहत स्याम जू

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धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी। खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।। वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो

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कानन दै अँगुरी रहिहौं

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कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै। मोहिनि तानन सों रसखान, अटा चढ़ि गोधुन गैहै पै गैहै॥ टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै। माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जै

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मोरपखा मुरली बनमाल

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मोरपखा मुरली बनमाल, लख्यौ हिय मै हियरा उमह्यो री। ता दिन तें इन बैरिन कों, कहि कौन न बोलकुबोल सह्यो री॥ अब तौ रसखान सनेह लग्यौ, कौउ एक कह्यो कोउ लाख कह्यो री। और सो रंग रह्यो न रह्यो, इक रंग

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कर कानन कुंडल मोरपखा

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कर कानन कुंडल मोरपखा उर पै बनमाल बिराजती है मुरली कर में अधरा मुस्कानी तरंग महाछबि छाजती है रसखानी लखै तन पीतपटा सत दामिनी कि दुति लाजती है वह बाँसुरी की धुनी कानि परे कुलकानी हियो तजि भाजती है

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मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं

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मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी। ओढ़ि पितम्बर लै लकुटी, बन गोधन ग्वारन संग फिरौंगी।। भावतो मोहि मेरो रसखान, सो तेरे कहे सब स्वाँग भरौंगी। या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा

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कर कानन कुंडल मोरपखा

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कर कानन कुंडल मोरपखा उर पै बनमाल बिराजती है मुरली कर में अधरा मुस्कानी तरंग महाछबि छाजती है रसखानी लखै तन पीतपटा सत दामिनी कि दुति लाजती है वह बाँसुरी की धुनी कानि परे कुलकानी हियो तजि भाजती है

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गावैं गुनी गनिका गन्धर्व

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गावैं गुनी गनिका गन्धर्व औ सारद सेस सबै गुण गावैं। नाम अनन्त गनन्त गनेस जो ब्रह्मा त्रिलोचन पार न पावैं।। जोगी जती तपसी अरु सिद्ध निरन्तर जाहिं समाधि लगावैं। ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि

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प्रान वही जु रहैं रिझि वापर

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प्रान वही जु रहैं रिझि वापर, रूप वही जिहिं वाहि रिझायो। सीस वही जिहिं वे परसे पग, अंग वही जिहीं वा परसायो दूध वही जु दुहायो वही सों, दही सु सही जु वहीं ढुरकायो। और कहाँ लौं कहौं 'रसखान री भाव वही ज

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संकर से सुर जाहिं जपैं

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संकर से सुर जाहिं जपैं चतुरानन ध्यानन धर्म बढ़ावैं। नेक हिये में जो आवत ही जड़ मूढ़ महा रसखान कहावै।। जा पर देव अदेव भुअंगन वारत प्रानन प्रानन पावैं। ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचा

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प्रान वही जु रहैं रिझि वापर

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प्रान वही जु रहैं रिझि वापर, रूप वही जिहिं वाहि रिझायो। सीस वही जिहिं वे परसे पग, अंग वही जिहीं वा परसायो दूध वही जु दुहायो वही सों, दही सु सही जु वहीं ढुरकायो। और कहाँ लौं कहौं 'रसखान री भाव वही ज

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रसखान के दोहे

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प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ। जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥ कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार। अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥ काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मा

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आवत है वन ते मनमोहन

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आवत है वन ते मनमोहन, गाइन संग लसै ब्रज-ग्वाला । बेनु बजावत गावत गीत, अभीत इतै करिगौ कछु रत्याना । हेरत हेरित चकै चहुँ ओर ते झाँकी झरोखन तै ब्रजबाला । देखि सुआनन को रसखनि तज्यौ सब द्योस को ताप

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जा दिनतें निरख्यौ नँद-नंदन

15 जुलाई 2022
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जा दिनतें निरख्यौ नँद-नंदन, कानि तजी घर बन्धन छूट्यो॥ चारु बिलोकनिकी निसि मार, सँभार गयी मन मारने लूट्यो॥ सागरकौं सरिता जिमि धावति रोकि रहे कुलकौ पुल टूट्यो। मत्त भयो मन संग फिरै, रसखानि सुरूप सुधा

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बैन वही उनकौ गुन गाइ

15 जुलाई 2022
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बैन वही उनकौ गुन गाइ, औ कान वही उन बैन सों सानी। हाथ वही उन गात सरैं, अरु पाइ वही जु वही अनुजानी॥ जान वही उन प्रानके संग, औ मान वही जु करै मनमानी। त्यों रसखानि वही रसखानि, जु है रसखानि, सो है रसखान

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सोहत है चँदवा सिर मोर को

15 जुलाई 2022
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सोहत है चँदवा सिर मोर को, तैसिय सुन्दर पाग कसी है। तैसिय गोरज भाल विराजत, तैसी हिये बनमाल लसी है। 'रसखानि' बिलोकत बौरी भई, दृग, मूंदि कै ग्वालि पुकार हँसी है। खोलि री घूंघट, खौलौं कहा, वह मूरति नैन

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कान्ह भये बस बाँसुरी के

15 जुलाई 2022
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कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हमको चहिहै। निसि द्यौस रहे यह आस लगी, यह सौतिन सांसत को सहिहै। जिन मोहि लियो मनमोहन को, 'रसखानि' सु क्यों न हमैं दहिहै। मिलि आवो सबै कहुं भाग चलैं, अब तो ब्रज मे

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नैन लख्यो जब कुंजन तैं

15 जुलाई 2022
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नैन लख्यो जब कुंजन तैं, बनि कै निकस्यो मटक्यो री। सोहत कैसे हरा टटकौ, सिर तैसो किरीट लसै लटक्यो री। को 'रसखान कहै अटक्यो, हटक्यो ब्रजलोग फिरैं भटक्यो री। रूप अनूपम वा नट को, हियरे अटक्यो, अटक्यो, अ

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फागुन लाग्यौ सखि जब तें

15 जुलाई 2022
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फागुन लाग्यौ सखि जब तें, तब तें ब्रजमंडल धूम मच्यौ है । नारि नवेली बचै नहीं एक, विसेष इहैं सबै प्रेम अँच्यौ है ॥ साँझ-सकारे कही रसखान सुरंग गुलाल लै खेल रच्यौ है । को सजनी निलजी न भई, अरु कौन

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मोहन हो-हो, हो-हो होरी

15 जुलाई 2022
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मोहन हो-हो, हो-हो होरी । काल्ह हमारे आँगन गारी दै आयौ, सो को री ॥ अब क्यों दुर बैठे जसुदा ढिंग, निकसो कुंजबिहारी । उमँगि-उमँगि आई गोकुल की , वे सब भई धन बारी ॥ तबहिं लला ललकारि निकारे, रूप सुधा की

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गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि

15 जुलाई 2022
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गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि  तानि कै चपल चली आनँद-उठान सों । वाँए पानि घूँघट की गहनि चहनि ओट, चोटन करति अति तीखे नैन-बान सों ॥ कोटि दामिनीन के दलन दलि-मलि पाँय, दाय जीत आई, झुंडमिली है स

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खेलत फाग सुहाग भरी

15 जुलाई 2022
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खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै । भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥ गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै । जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥

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ब्रह्म मैं ढूँढयो पुराण गानन

15 जुलाई 2022
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ब्रह्म मैं ढूँढयो पुरानन-गानन बेद रिचा सुनि चौगुने गायन देख्यो सुन्यो कबहूँ न कहूँ वह कैसे सरूप औ कैसे सुभायन टेरत हेरत हारि परयो रसखानि बतायो न लोग लुगायन. देख्यो दुरो वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटत

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जेहि बिनु जाने कछुहि नहिं

15 जुलाई 2022
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जेहि बिनु जाने कछुहि नहिं जान्यों जात बिसेस सोई प्रेम जेहि आन कै रही जात न कछु सेस प्रेम फाँस सो फँसि मरै सोई जियै सदाहिं  प्रेम मरम जाने बिना मरि कोउ जीवत नाहिं.

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आयो हुतो नियरे रसखानि

15 जुलाई 2022
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आयो हुतो नियरे रसखानि कहा कहुं तू न गई वहि ठैयाँ. या ब्रज में सिगरी बनिता सब बारति प्राननि लेति बलैया. कोऊ न काहु की कानि करै कछु चेटक सी जु करयो जदुरैया. गाइगो तान जमाइगो नेह रिझाइगो प्रान चराइगो

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आवत है बन ते मनमोहन

15 जुलाई 2022
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आवत है बन ते मनमोहन, गाइन संग लसै ब्रज-ग्वाला। बेनु बजावत गावत गीत, अभीत इतै करिगौ कछु ख्याला। हेरत हेरि चकै चहुँ ओर ते झाँकी झरोखन तै ब्रजबाला। देखि सुआनन को रसखानि तज्यौ सब द्योस को ताप कसाला।

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आगु गई हुति भोर ही हों रसखानि

15 जुलाई 2022
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आगु गई हुति भोर ही हों रसखानि, रई बहि नंद के भौनंहि। बाको जियों जुगल लाख करोर जसोमति, को सुख जात कहमों नहिं। तेल लगाई लगाई के अजन भौहिं बनाई बनाई डिठौनहिं। डालि हमेलिन हार निहारत बारात ज्यों,

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गाई दहाई न या पे कहूँ

15 जुलाई 2022
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गाई दहाई न या पे कहूँ, नकहूँ यह मेरी गरी, निकस्थौ है। धीर समीर कालिंदी के तीर, टूखरयो रहे आजु ही डीठि परयो है। जा रसखानि विलोकत ही सरसा ढरि, रांग सो आग दरयो है। गाइन घेरत हेरत सो पंट फेरत टेरत

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एक समै जमुना-जल में सब मज्जन हेत

15 जुलाई 2022
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एक समै जमुना- जल में सब मज्जन हेत, धंसी ब्रज-गोरी। त्यौं रसखानि गयौ मन मोहन लेकर चीर, कदंब की छोरी। न्हाई जबै निकसीं बनिता चहुँ ओर चित, रोष करो री। हार हियें भरि भखन सौ पट दीने लाला, वचनामृत बो

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अधर लगाइ रस प्याइ बाँसुरी बजाई

15 जुलाई 2022
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अधर लगाइ रस प्याइ बाँसुरी बजाई मेरो नाम गाइ हाइ जादू कियो मन में। नटखट नवल सुघर नंदनंदन ने, करि के अचैत चेत हरि कै जतन में। झटपट उलट पुलट पर परिधान, जान लागीं लालन पै सबै बाम बन में। रस रास सर

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कीगै कहा जुपै लोग चवाब सदा

15 जुलाई 2022
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कीगै कहा जुपै लोग चवाब सदा करिबो करि हैं बृज मारो। सीत न रोकत राखत कागु सुगावत ताहिरी गाँव हारो। आवरी सीरी करै अंतियां रसखान धनै धन भाग हमारौ। आवत हे फिरि आज बन्यो वह राति के रास को नायन हारौ

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आज भटू मुरली बट के तट

15 जुलाई 2022
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आज भटू मुरली बट के तट के नंद के साँवरे रास रच्योरी। नैननि सैननि बैननि सो नहिं कोऊ मनोहर भाव बच्योरी। जद्यपि राखन कों कुलकानि सबैं ब्रजबालन प्रान पच्योरी। तथापि वा रसखानि के हाथ बिकानि कों अंत लच्यो

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आई सबै ब्रज गोपालजी ठिठकी

15 जुलाई 2022
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आई सबै ब्रज गोपालजी ठिठकी ह्मवै गली जमुना जल नहाने। ओचक आइ मिले रसखानि बजावत बेनू सुनावत ताने। हा हा करी सिसको सिगरी मति मैन हरी हियरा हुलसाने। घूमैं दिवानी अमानी चकोर सौं और दोऊ चलै दग बाने।

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दानी नए भए माँबन दान सुनै

15 जुलाई 2022
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दानी नए भए माँबन दान सुनै गुपै कंस तो बांधे नगैहो रोकत हीं बन में रसखानि पसारत हाथ महा दुख पैहो। टूटें धरा बछरदिक गोधन जोधन हे सु सबै पुनि दहो। जेहै जो भूषण काहू तिया कौ तो मोल छला के लाला न विके

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नो लख गाय सुनी हम नंद के

15 जुलाई 2022
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नो लख गाय सुनी हम नंद के, तापर दूध दही न अघाने। माँगत भीख फिरौ बन ही बन, झूठि ही बातन के मन मान। और की नारिज के मुख जोवत, लाज गहो कछू होइ सयाने। जाहु भले जु भले घर जाहु, चले बस जाहु वृंदावन जान

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लाडली लाल लर्तृ लखिसै अलि

15 जुलाई 2022
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लाडली लाल लर्तृ लखिसै अलि, पुन्जनि कुन्जनी में छवि गाढ़ी। उपजी ज्यौं बिजुरी सो जुरी चहुँ, गूजरी केलिकलासम काढ़ी। त्यौं रसखानि न जानि परै सुखमा तिहुँ, लोकन की अति बाढ़ी। बालन लाल लिये बिहरें, छह

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मोर के चंदन मोर बन्यौ दिन दूलह हे अली

15 जुलाई 2022
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मोर के चंदन मोर बन्यौ दिन दूलह हे अली नंद को नंद। श्री कृषयानुसुता दुलही दिन जोरी बनी विधवा सुखकंदन। आवै कहयो न कुछु रसखानि री दोऊ फंदे छवि प्रेम के फंदन। जाहि बिलोकैं सबै सुख पावत ये ब्रज जीवन हैं

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आवत लाल गुलाल लिए मग

15 जुलाई 2022
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आवत लाल गुलाल लिए मग सुने मिली इक नार नवीनी। त्यों रसखानि जगाइ हिये यटू मोज कियो मन माहि अधीनी। सारी फटी सुकुमारी हटी, अंगिया दरकी सरकी रंग भीनी। लाल गुलाल लगाइ के अंक रिझाइ बिदा करि दीनी।

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इक और किरीट बसे दुसरी दिसि

15 जुलाई 2022
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इक और किरीट बसे दुसरी दिसि लागन के गन गाजत री। मुरली मधुरी धुनि अधिक ओठ पे अधिक नाद से बाजत री। रसखानि पितंबर एक कंधा पर वघंबर राजत री। कोड देखड संगम ले बुड़की निकस याह भेख सों छाजत री।

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यह देखि धतूरे के पात चबात

15 जुलाई 2022
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यह देखि धतूरे के पात चबात औ गात सों धूलि लगावत है। चहुँ ओर जटा अंटकै लटके फनि सों कफनी पहरावत हैं। रसखानि गेई चितवैं चित दे तिनके दुखदुंद भाजावत हैं। गजखाल कपाल की माल विसाल सोगाल बजावत आवत है।

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बेद की औषद खाइ कछु न करै

15 जुलाई 2022
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बेद की औषद खाइ कछु न करै बहु संजम री सुनि मोसें। तो जलापान कियौ रसखानि सजीवन जानि लियो रस तेर्तृ। एरी सुघामई भागीरथी नित पथ्य अपथ्य बने तोहिं पोसे। आक धतूरो चाबत फिरे विष खात फिरै सिव तेऐ भरोसें।

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कंचन मंदिर ऊँचे बनाई के

15 जुलाई 2022
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कंचन मंदिर ऊँचे बनाई के मानिक लाइ सदा झलकेयत। प्रात ही ते सगरी नगरी नाग-मोतिन ही की तुलानि तलेयत। जद्यपि दीन प्रजान प्रजापति की प्रभुता मधवा ललचेयत। ऐसी भए तो कहा रसखानि जो सँवारे गवार सों नेह न ले

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प्रेम अगम अनुपम अमित

15 जुलाई 2022
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प्रेम अगम अनुपम अमित सागर सरिस बखान। जो आवत यहि ढिग बहुरि जात नाहिं रसखान। आनंद-अनुभव होत नहिं बिना प्रेम जग जान। के वह विषयानंद के ब्राह्मानंद बखान। ज्ञान कर्म रु उपासना सब अहमिति को मूल। दृढ़

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प्रेमवाटिका

15 जुलाई 2022
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प्रेम-अयनि श्रीराधिका, प्रेम-बरन नँदनंद। प्रेमवाटिका के दोऊ, माली मालिन द्वंद्व।।1।। प्रेम-प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोय। जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्‍यौं रोय।।2।। प्रेम अगम अनुपम अमित

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