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प्यार की आजमाईश

2 जनवरी 2022

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" आपको कंहा उतरना है मैडम?"
ऑटोवाले ने दो तीन बार पुकारा।
"ओह......!!!!"
अचानक जैसे नींद से जागी थी वो।  जनवरी के महीने में भी उसके माथे पर पसीना छल छला आया था । एक दम बदहवास सी चलते ऑटो से ही शायद उतर जाना चाहती थी वो ।
"रोक दो भैया। यंही रोक दो। मुझे तो पीछे उतरना था।"
ऑटोवाले को अचानक से ब्रेक लगाने पड़े। तेज चरमराहट के साथ ऑटो रुका। पीछे से आती लंबी BMW भी उसी चरमराहट के साथ बिल्कुल ऑटो के पीछे रुकी। गनीमत थी कि कुछ नही हुआ। कारवाले ने तीन चार भद्दी सी गालियां निकली और तेज़ी से कट मारकर ऑटोवाले पे चिल्लाया।
"#$@#$#@@ %$$&$ अपने बाप की सड़क समझ रखी है क्या !!! " ऑटोवाला भी कम नही था। दोनो में बहस चल रही थी। लेकिन वह इन सब से बेखबर ऑटोवाले के हाथ मे दस रुपए का नोट थमा कर उतर गई।
दरमियाना कद, गोरा रंग, तीखे नयन नक्श, काले रंग की trouser ओर ऊपर से सफेद रंग की गले तक ज़िप लगी हुई जैकेट,खूबसूरत चेहरा लेकिन आज चेहरे की रंगत उड़ी हुई सी लग रही थी। कंधे पर अपना पर्स लटकाये उसने इधर उधर देखा और फिर से ऑटो में बैठ गयी।
" भैया मुझे थोड़ा आगे उतरना है। ध्यान से देखा नही।"
"अरे जा यार क्यों जाम लगा रहा हैं" ऑटोवाला अभी भी उस BMW वाले से उलझा हुआ था।
"अरे भैया जल्दी करो मुझे आगे उतरना है। बाद में लड़ लेना।"
ऑटोवाले ने बिना कुछ कहे ऑटो आगे बढ़ा दिया। कार वाला भी अपने रास्ते निकल गया।
"सड़क मेरे बाप की नही....... तो उसके बाप की भी नही मैडम जी। बड़ी गाड़ी की धौंस जमा रहा था। दो मिनट ओर रुकता तो बताता उसे "
ऑटोवाला अपनी ही धुन में बोले जा रहा था। लेकिन वो इन सब बातों से बेखबर किन्ही ऒर ही सोचों में डूबी हुई थी।
अगले स्टॉप पर उतरते ही उसने पर्स से मोबाइल निकाला और किसी को मिलाने की कोशिश करने लगीं।
लेकिन दो तीन रिंग जाने के बाद उसने काल काट दी। अजीब सी कश्मकश से गुजर रही थी वो। फिर दोबारा मिलाने की कोशिश की लेकिन फिर काट दिया। सुबह से कई बार वो यह कर चुकी थी।
फिर जल्दी से उसने मोबाइल पर्स में रखा और तेज कदमो से चलते हुए एक ज्वेलरी के शोरूम में घुस गई।
मैनेजर ने तिरछी नज़रों से उसे घूरा ओर फिर से अपने हिसाब किताब में व्यस्त हो गया।
"अरे शिखा ! क्या हुआ। बहुत लेट हो गई। आज मैनेजर भी काफी भन्नाया हुआ है। तेरा काउंटर मेने लगा दिया है।" नीरू ने उसे देखते ही कहा औऱ बालों को सहेजते हुए अपने काउंटर पर जाकर खड़ी हो गई।
" कुछ नही यार......... आज कुछ भी करने का मन नही। ये अनु अगर आज छुट्टी पर न होती तो मै  नही आती आज।श्याम को चार बजे छुट्टी लेकर घर भी जाना है। मां ने कहा है कोई जरूरी काम है।" उसने कनखियों से मैनेजर को देखा और पर्स से मोबाइल निकाल कर उसे गोर से देखने लगी। " नही ... अब कॉल नही करूँगी। "और यही सोच कर उसने मोबाइल पर्स के हवाले कर दिया। एक उड़ती सी नजर उसने उस काउंटर पर डाली जंहा रोज वो उसे देखा करती थी। आज वंहा रोहन खड़ा था। उस ने मुस्कराते हुए उसे हाय कहा। उसने भी जबरदस्ती की मुस्कान से हाय की ओर अपने काम मे व्यस्त हो गई।
ग्राहकों का आना शुरू हो गया था। अनमने भाव से चेहरे पर नकली मुस्कान लिये उसने ग्राहकों को निपटाना शुरू किया।
"आज लड़की देखने जाना है ना उसने.....हम्म्म्म। अरे यार ये मर्दजात भी बड़ी कमीनी होती है। तू भी पागल है.....। जो अभी भी मरे जा रही है उसके लिए।.... चल उदास मत हो औऱ खाना खा ले"
नीरू ने अपना लंच बॉक्स खोलते हुए बड़ी बहन की तरह समझाना शुरू किया। शिखा ने कोई उत्तर नही दिया। उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था ऒर न ही कुछ सुनाई पड़ रहा था। उसका दिल और दिमाग एक अजीब सी कशमकश से गुजर रहे थे। आंसुओं की दो बूंदे उसके गालों से होते हुए नीचे टपक पड़ीं।
"नही....... वो... वो... कमीना नही हो सकता। नही.. नही...ऐसा नही हो सकता। मेरे प्यार में ही शायद कंही कोई कमी रह गयी हो।"
वो मन ही मन सोचे जा रही थी। और फिर वो अतीत के पन्नों में खो गयी।
बलराज ....!! हाँ यही नाम था उसका । 23-24 साल का नौजवान, औसत कद काठी लेकिन आकर्षक चेहरा ।एक ज्वेलरी शोरूम में  सेल्समेन था। एक साल पहले की ही तो बात है। शिखा सेल्सगर्ल के लिए इंटरव्यू देने आयी थी इसी ज्वेलरी शोरूम में । शोरूम के ओनर अभी आये नही थे इसलिए मैनेजर ने काउंटर पर लगी कुर्सियों में से एक पर बैठने के लिए कह दिया। कुर्सी पर बैठ कर शोरूम का जायजा लेनी लगी। जैसे ही उसकी नज़र बलराज पड़ी, तो बस उसे ही देखती ही रह गयी। एक अजीब सा आकर्षण था उसमें ओर वो बंधती चली गई। आज तक किसी लड़के को देखकर उसे ऐसा महसूस नही हुआ। वह खुद हैरान थी। न चाह कर भी नज़रें बार बार उसकी तरफ उठ जाती थीं। और वंहा बलराज था जिसे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ रहा था।
इंटरवियू हुआ और अगले दिन से जोइनिंग थी। साथ मे काम करते करते वह बलराज के नज़दीक आती चली गयी। बलराज काफी हंसमुख नोजवान था, जिंदगी से भरपूर, जिंदादिल इंसान। लेकिन लड़कियों के मामले में बेहद शर्मिला।
"ये प्यार व्यार सब बकवास है...... दोस्तों को , मातापिता को, भाई बहन को , रिश्तेदारों को पराया कर देता है। ये सिर्फ शारीरिक आकर्षण है........"
एक मंझे हुए इंसान की तरह वह अक्सर कहता।
" अच्छा बाबा जी !!! ठीक है.....तुम मत करो किसी से प्यार । लेकिन कम से कम दूसरों को करने दो.... मुझे तो हो गया है तुमसे। तुम कहो या न कहो लेकिन कंही न कंही तुम्हे भी मुझसे प्यार हो गया है। नही ..... हम्म्म्म। बोलो चुप क्यों हो गए।" शिखा ने कोहनी से उसके पेट पर हल्के से मारते हुये कहा ।
"यार प्लीज .... मुझे ये सब पसंद नहीं। प्लीज....तुम अच्छी हो, खूबसूरत हो .....लेकिन में इस प्यार व्यार के चक्कर मे नही पड़ना चाहता। तुम प्लीज मेरी तरफ से ये ......"
" ओहहह हो.... डोंट बी सो सीरियस यार। में तो मज़ाक कर रही थी। इट वाज़ जस्ट आ जोक...." शिखा ने उसकी बात काटते हुए बड़े प्यार से कहा।
शिखा उसे ये बात कह तो दी लेकिन उसे पता था कि उसने झूठ कहा था। वो तो उससे पहली नज़र में प्यार कर बैठी थी।
ये एक तरफा प्यार भी अजीब होता है। औऱ ये दर्दनाक हो जाता है जब तुम्हे पता हो कि जिससे तुम प्यार करते हो वो तुमसे प्यार नही करता। क्या बिना शर्त किसी से प्यार किया जा सकता है?  यदि हां, तो यही तो है सच्चा प्यार, शुद्ध प्यार, जो शिखा ने किया था। उसने अपने दिल की बगिया में एक ऐसा पौधा उगाया था जिस पर शायद फूलों के उगने की कोई गुंजाईश ही नही थी। लेकिन फिर भी उसे वो प्यारा था।एक आस थी उसे, उस पौधे में फूल उगने की।
"आज मै तुम्हारे लिए खाना लायी हूँ। "शिखा ने चहकते हुए कहा।
"लेकिन मेरा टिफ़िन..... उसका क्या करूँ?"
"उसे मैं खा लूंगी।"
"यार शिखा मैं  आज टिफ़िन नही लाया तो थोड़ा मैं भी टैस्ट कर लूंगा।" रोहन ने शिखा का टिफ़िन हाथ मे लेकर खोलने की कोशिश की।
"नही...ये सिर्फ राज के लिए है।" शिखा ने टिफ़िन उसके हाथों से छीनते हुए कहा और बलराज को पकड़ा दिया।
"सॉरी... राज ये तुम्हारे लिए है ,और प्लीज किसी ओर के साथ शेयर मत करना। " और पैर पटकती हुई पैंट्री से बाहर चली गई।
"साले उसे प्यार है तुझसे । औऱ एक तू है उसे घास भी नही डालता।अबे प्यार न सही टाइम पास ही कर ले। नही तो हमे ही करने दे" रोहन ने आंख मारते हुए बलराज से कहा।
"यार रोहन प्लीज..... वो ऐसी लड़की नही है। औऱ मैं अपने सामने दोबारा उसके बारे में कोई ग़लत बात नही सुनूंगा। तुझे अगर खाना खाना है तो आजा।" बलराज ने शिखा का टिफ़िन खोलते हुए कहा।
शिखा पैंट्री के दरवाजे पर ही खड़ी हुई थी। पहली बार उसे इस बात की खुशी थी कि बलराज के दिल के किसी कोने में वो थी। उसे अपने मन की बगिया में उगाये उस पौधे पर एक कली के खिलने का एहसास होने लगा था।
उसे समझ आ गयी थी आखिर बलराज भी तो एक इंसान है।
आज नही तो कल वो उससे कहेगा
"शिखा... I love You"
अभी तो शुरू हुई थी उसके प्यार की आजमाईश।
शिखा हर सुबह एक नई आस के साथ घर से निकलती थी औऱ रोज रात एक आस के साथ सोती थी।
मगर बलराज पता नही किस मिट्टी का बना था।
"क्या सचमुच तुम्हारे दिल मे मेरे लिए कुछ नही।"
बड़ी आशा के साथ उसने बलराज से पूछा था।
"शिखा... देखो...यार प्लीज  में तुम्हे कई बार कह चुका हूं।हम अच्छे दोस्त हैँ बस।मुझसे बेहतर और अच्छे लड़के भरें पड़े हैं इस दुनिया मे।" बड़ी गंभीरता से बलराज ने शिखा को समझाने की कोशिश करते हुए कहा।
"लेकिन पूरी दुनिया मे मुझे सिर्फ तुम से ही प्यार हो गया तो क्या करुं। और फिर.... मैंने तुमसे कभी नही कहा कि तुम भी मुझसे प्यार करो। मै तुमसे प्यार करती हूं ये हक़ तुम मुझसे नही छीन सकते।" बड़ी दृढ़ता से शिखा ने जवाब दिया था।
"तुम्हे इस बात से परेशानी है तो बताओ। मै तुम्हारी खुशी के लिए जॉब भी छोड़ सकती हूं।" कहते कहते गला भर आया था शिखा का।
" अरे ... नही नही प्लीज् यार । ऐसा मत कहो, मुझे भला क्या परेशानी। अब ....मै क्या कहूँ.....।" कुछ कहते कहते रुक गया था वो जैसे शायद बहुत कुछ कहना चाहता हो शिखा से।
बलराज को भी उसका साथ भाने लगा था। लेकिन मर्द पता नही कैसे अपने भावों को कभी बयां नही करते। शायद वो कमजोर नही दिखना चाहते।
"कल......संडे है, ओर अक्षय कुमार की मूवी लगी है। चलोगे...... देखने। अब ये मत कहना कि तुम मेरे साथ मूवी भी नही देख सकते। " शिखा ने थोड़ा माहौल को हल्का करते हुए कहा।
"अरे नही में नही जा पाऊंगा। घर पे काम है मुझे।"
"ठीक है मत जाओ। में तो वैसे भी मजाक कर रही थी। मुझे पता था तुम नही जाओगे। रोहन ओर मै ही जा रहे हैं मूवी देखने।"
"रोहन..... "
"क्यों ? नही जा सकती उसके साथ क्या ?"
"अरे .... नही ऐसी कोई बात नही। यू आर फ्री टू गो विद एनीवन"
बलराज ने कोई और प्रतिक्रिया तो नही की लेकिन उसके दिल मे कांटे की चुभन का एहसास जरुर शिखा को ही गया था, जो मन ही मन शिखा को गुदगुदा रहा था।
अगले दिन संडे को सिनेमा हॉल के बाहर शिखा को इंतज़ार था बलराज का।
"हाय।....। रोहन नही आया अभी तक।"
ये बलराज की आवाज़ थी। जो उसके पीछे से प्रकट हुआ।
"लेकिन तुम कैसे आ गए। तुम्हे तो घर पर काम था।"
शिखा ने अपनी खुशी को छुपाते हुए पूछा।
नवंबर का महीना था। बड़ी ही सुहावनी हवा चल रही थी। बलराज को अपने सामने देखकर उसे मौसम और ख़ुशगवार लग रहा था।
"काम जल्दी खत्म हो गया था...... तो....फिर मैंने सोचा मूवी ही देखी जाए" बड़े नपे तुले शब्दों में बलराज ने जवाब दिया।
"हम्म्म्म.......तो जनाब प्यार-व्यार के चक्करों में नही पड़ते।"
मन ही मन शिखा को हंसी भी आ रही थी।
लेकिन अपने भावों को छुपाते हुए उसने कहा,"शो तो फुल चल रहा है। हाँ,पहले से बुकिंग की होती तो शायद
देख पाते। "
"तो"
"क्या तो ?"
"मतलब अब क्या करें?"
"क्या करें मतलब ? मैं तो घर जा रही हूं .... मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है । खाना भी बनाना है। वैसे भी अगर तुम ज्यादा देर मेरे साथ रहे ....तो ये बीमारी तुम्हे भी लग सकती है।"
"बीमारी ......कौन सी बीमारी.....,?"
"प्यार की बीमारी.... ओर कौन सी ।"
"हा हा हा..हा हा हा हा........." खिल खिलाकर हंस दिया था बलराज।
शिखा के लिए उसकी हंसी दूर बज रही किसी शहनाई की तरह थी। जिसकी मधुर धुन उसके कानों में रस घोल रही थी। वह बस उसकी बातों को सुनते रहना चाहती थी।
"दिलों जान से चाहते थे हम एक दूसरे को..........नासमझी का प्यार समझो या कच्ची उम्र का प्यार। एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खाई थी हमने। जाहिदा.....जाहिदा खान नाम था उसका। बात तब की है जब हम दोनों ने अपना कॉलेज खत्म किया। कॉलेज खत्म होते ही उसके घरवालों ने उसकी शादी तय कर दी......."
बलराज ने एक लंबी सांस ली । शिखा को समझ नही आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया करे। शायद उसके दिल का गुबार आज बाहर निकल रहा था।अपने दिल में दबी हर बात वो आज कह देना चाहता था।
" वो मुसलमान थी और मै हिन्दू। कहते हैं दिल का रिश्ता अगर गहरा हो तो मजहब की दीवार भी गिर जाती है। लेकिन हमारी दीवार न गिरी। उसने बताया था उसके घरवाले बहुत अधिक धार्मिक प्रवर्ति के थे। हमारे पास दो ही रास्ते थे...... या तो भाग कर शादी कर लेते या ........फिर साथ मे जान दे देते। हमारी बातचीत का जरिया उसकी एक सहेली थी। दो दिन बाद की मिलने की जगह तय हुई। मै तो पहुंच गया लेकिन जाहिदा नही आई।"
"मन मे कई आशंकाएँ जन्म ले रही थी, तरह तरह के ख्यालों से मन बैठा जा रहा था। उसका इंतजार करते करते न जाने कब रात हुई ......कब सुबह..... पता ही नही चला। अगले दिन उसकी सहेली से मिला तो उसने मेरे हाथ मे एक खत थमा दिया । जाहिदा का ही था, आखरी खत....। उसकी खुशबू महसूस कर सकता था मैं उस खत में।"
बलराज की आंखे नम हो चली थी। काँपते हाथों से उसने जेब से निकाल कर एक पुराना लेकिन करीने से संभाल कर रखा हुआ खत मुझे दिया।
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प्यारे राज 
            जब तुम ये खत पढ़ रहे होंगे तो मैं इस दुनिया से जा चुकी होंगी। न....न...... न......रोना मत राज। मुझे मालूम है कि तुम मुझ से कितना प्यार करते हो। और तुम्हे मेरी कसम है, इस खत को पढ़ने के बाद तुम ऐसा वैसा कोई कदम नही उठाओगे। मुझे माफ़ करना राज, मैं मजबूर हूँ । जब तुम्हारा msg मिला तो मैंने इतना बड़ा कदम उठाने से पहले एक बार अम्मीजान और अब्बूजान से बात की। लेकिन उन्होंने गैर मजहब में शादी करने से साफ इन्कार कर दिया और और धमकी दी कि अगर भाग कर शादी करने के बारे में सोचा भी तो, हम दोनों को जिंदा नही छोड़ेंगे। मेरे भाई मुझसे तुम्हारा नाम पूछते रहे लेकिन मेने नही बताया। राज मेरे भाईयों के इरादे सही नही हैं। हम भाग कर कंही भी जाते तो हमें ढूंढ ही लेते और अंजाम बहुत बुरा होता। तुम से प्यार किया है तो तुम्हें एक भी खरोंच कैसे आने देती। बस, ये जिंदगी तुम्हारे नाम करके जा रही हूँ।अपना ध्यान रखना राज.............


जीते जी तुम्हारे ना हो सके तो क्या,
मर कर ये वादा निभाएंगे।
तुमसे मिलने के लिए,
रोज तुम्हारे ख्वाबों में चले आएंगे।


अलविदा राज
तुम्हारी केवल तुम्हारी
.......जाहिदा
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खत पढ़ कर शिखा की आँखों से झरझर आंसुओं की धारा बह निकली। सच मे बहुत गहरा जख्म दिया था जिंदगी ने उसे। काफी देर तक दोनों पार्क के बैंच पर यूँ ही खामोश बैठे रहे।
"तीन.......पूरे तीन साल हो चुके हैं इस बात को। बस..... उसकी यादोँ के सहारे जी रहा हूँ। घरवाले पीछे पड़े हैं शादी के लिये। पहले तो टालता रहा। अब वो जिससे कहेगें मैं शादी कर लूंगा। घरवाले लड़की देख चुकें हैं उनकी जिद है कि में भी एक बार उससे मिल लूं।" कह कर बलराज ने उस खत को दोबारा करीने से अपनी जेब मे रख लिया।
"सॉरी राज....। मैं.....में सच मे नही जानती कि क्या कहना चाहिए। मेने तुम्हें बहुत सताया उसके लिए माफी चाहती हूं। "
कहते कहते दो मोती जैसे आंसूँ उसकी आँखों के कोर से निकल कर गालों पर आ गए।
"अरे नहीं..... प्लीज... ऐसा मत कहो।"
बलराज ने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसे दिया।
बलराज अपने दिल मे दबे दर्द को बयां कर जंहा काफी हल्का महसूस कर रहा था वंही शिखा के मन की बगिया में कली खिलने की आस जैसे दम तोड़ रही थी।
दस पंद्रह मिनट दोनों फिर खामोश बैठे रहे और फिर चुपचाप अपनी अपनी राह चल दिये।
सारी रात शिखा करवटें बदलती रही। ये कैसी आजमाईश थी उसके प्यार की। बलराज के साथ उसका रिश्ता एक नई करवट लेने जा रहा था।
अगले कुछ रोज़ यूँ ही खामोशी में निकल गए। बलराज के लिए शिखा के मन मे चाहत ओर बढ़ गयी थी।
बलराज भी शिखा के ओर करीब आता चला गया। लेकिन अचानक एक दिन बलराज ने बताया कि घरवालों के साथ उसे अगले दिन लड़की देखने जाना है। शिखा के लिए ये किसी सदमे से कम न था। वो चीख चीख कर बलराज से पूछना चाहती थी कि क्या कमी थी उसमें, क्या वो उसके प्यार के काबिल नही।
अचानक फोन बजने की आवाज उसे अतीत से वर्तमान में ले आयी। उसने झटपट पर्स से फ़ोन निकाला कि शायद बलराज का होगा, क्योंकि सुबह से वह उसे कई बार फ़ोन कर चुकी थी औऱ उसने एक भी बार फ़ोन नही उठाया था।लेकिन माँ का फ़ोन था।
"हाँजी माँ........ बोलो.......हम्म्म्म .....ठीक है मैं आ जाउंगी टाइम पर।"
चार बजते ही मैनेजर से छुट्टी ले कर वह घर के लिए रवाना हो गयी। लेकिन बलराज के ख्यालों में ग़ुम शिखा घर नही जाना चाहती थी। उसने कंही पढ़ा था कि अगर आप किसी से प्रेम करते हैं तो उसे जाने दें क्योंकि यदि वह लौटता है, तो आपका है और यदि नहीं आता तो फिर आपका था ही नहीं ।
बलराज के बारे में सोच सोच कर पता ही नही चला कब घर आ गया। उसने डोरबेल बजाई तो माँ ने दरवाजा खोला।
"क्या माँ........ क्यूँ बुलाया .....कम से कम अब तो बता दो.................." कहते कहते जैसे ही वह ड्राइंग रूम में आई तो जैसे जड़ हो गयी। सामने बलराज अपने माता पिता के साथ बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था। और शिखा को देख कर मंद मंद मुस्करा रहा था।
"तुम.!!!!!!!......तुम यंहा......तुम तो....तुम तो लड़की देखने गए थे।"
"लड़की देखने ही तो आये हैं बेटी............" इससे पहले की बलराज कुछ कहता, बलराज की मां सोफे से कहते हुए उठी और शिखा का माथा चूमते हुए बोली," .......औऱ देख कर पसंद भी कर ली। "
शिखा मानो अभी भी सपनोँ की दुनिया मे थी। उसे बिल्कुल भी यकीन नही हो रहा था कि ये सच है। चेहरे पर आश्चर्य के भाव लिए वह बस बलराज को ही देखे जा रही थी, जो आँखों से उसे पैर छूने का इशारा कर रहा था।
झटपट उसने बलराज के माता पिता के पैर छुए ओर अपने कमरे की ओर भाग गयी। उसके आँखों से आंसुओं का दरिया निकलने को बेकरार था।लेकिन इस बार ये आँसू गम के नही खुशी के थे। उसके लिए ये एक सरप्राइज था जिसमे उसकी माँ भी शामिल थी। आज वो खुशी से बस झूम जाना चाहती थी। उसके मन की बगिया में एक कली खिल चुकी थी। उसके प्यार की आजमाईश रंग लाई थी।
थोड़ी देर में राज उसके कमरे में आया।
" आई लव यू शिखा.....!!! तुम्हारे प्यार की आजमाईश अब खत्म होती है।"
"राज तुमने तो.....मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी दी है......."
शिखा की आँखों से आंसूओं की अविरल धारा बह निकली।
और बलराज ने उसे गले से लगा लिया।
"हम्म्म्म........ तो तुमने मुझे भी लगा ही दी"
"क्या......"
"बीमारी....."
"मतलब......"
"मतलब..... प्यार की बीमारी।"
"हा...हहह... हाहह... हाहहह....हाहहहह..... हहहह....."और दोनों हंस पड़ते हैं ।
और उधर राज के माता पिता और शिखा की माँ की भी जोरों से हँसने की आवाज आती है।

...............समाप्त

---राज कोहली

 

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प्यार की आजमाईश
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यह कहानी प्रेम की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इस कहानी का किसी जीवित व मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नही है। यह कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसे अपने प्यार की आजमाइश से गुजरना पड़ा लेकिन क्या वह उस प्यार को जीत पाएगी? जानने के लिए पढ़े प्यार की आजमाईश।

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