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भूमिका संध्या, प्रभात को प्रेयासी,संध्या जीवन को दो भागों में बांट लेने वाली संध्या सुदृढ़ सव्ठोनी संध्या, पर नियति ऐसी कि प्रेमी के उपस्थित होते ही स्वंय को तिरोहित कर देती है,जो क्योंकि प्रभात और सं
आदरणीय, दहेज महोदय, सादर दण्डवत् प्रणाम्। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है, कि आप में वह सभी गुण व्याव्त है, जो कि एक महात्मा, मानवता साधतु, इंसानियत में होना चाहिए। खेद है, आप को कुछ लोग अभिशाप कह