राम उद्देश्य कुमार
मैं बस खोज में हूॅं कि मैं क्या हूॅं और क्यों हूॅं ? तत्काल मुझे पता है कि मैं कौन हूॅं और जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता जायेगा,मेरी 'कौन' की दृष्टि और अवस्था बदलती जायेगी और शाय़द दायरा भी बढ़ता-घटता जायेगा। लेकिन तब भी शाय़द ही समझ और दृष्टि पैदा हो सके कि मैं क्या हूॅं ?और इसलिए,सतत् खोज और सतत् सृजन ही शाश्वत गतिशीलता है और ऐसी गति ही शाश्वत हो सकती है.....!
बेतरतीब आशायें.....
अक्सर हमारे रुख और गति में आंतरिक तीव्रता होती है।हम आंतरिक भराव के एहसास के साथ किसी कार्य को अंजाम देने में बेहतरी का अनुभव करते हैं।यहीं कारण है कि व्यर्थता हमारी दृष्टि का स्वाभाविक हिस्सा हो जाता है और 'सरलता' एक आदर्श हिस्सा।'सरलता' का जो प्रचल
बेतरतीब आशायें.....
अक्सर हमारे रुख और गति में आंतरिक तीव्रता होती है।हम आंतरिक भराव के एहसास के साथ किसी कार्य को अंजाम देने में बेहतरी का अनुभव करते हैं।यहीं कारण है कि व्यर्थता हमारी दृष्टि का स्वाभाविक हिस्सा हो जाता है और 'सरलता' एक आदर्श हिस्सा।'सरलता' का जो प्रचल