मैं जो लिखू सदा उसकी तुम जुबा बनो ख़त्म ना हो वो मेरी निशानी गढ़ो तुम बनो हा तुम मेरी भार्या बनो अमर प्रेम की एक नयी तुम कहानी गढ़ो
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सुगंध
मैं जो लिखू सदा उसकी तुम जुबा बनो ख़त्म ना हो वो मेरी निशानी गढ़ोतुम बनो हा तुम मेरी भार्या बनो अमर प्रेम की एक नयी तुम कहानी गढ़ो
हिम पर्वत सा जमा हुआ था मैंतेरे छुने से एक गर्माहट हुईसोई हुई तितलियों के पंख मेंफिर से कोई अकूलाहट हुईदिल में फिर से मस्त बयार का झरना फूटा हैतेरे छुने से बरसो बाद मेरा मौन टूटा है
सुंदरता वो सुगंध है जिसे कोई भी सूंघ सकता है यंहा तक की एक दृस्टि हीन देख सकता है और मंद बुद्धि का महसूस कर सकता है