रांची नगर की कोई भी गाथा स्वर्णरेखा नदी के पुण्यधर्मी प्रवाह को भूलकर नहीं लिखी जा सकती | हम रांची नगर वासी जीवन की प्रवाह को जीवनदायिनी स्वर्णरेखा नदी के प्रवाह से जोड़कर देखते है, कारण हमारा इतिहास नदियों के प्रवाह से रचा गया इतिहास है और इनके तट हमारी परंपरा के विकास की कहानी बताते है| लेकिन रांची नगर की जीवन रेखा व आस्था का केंद्र रही स्वर्णरेखा आज स्वयं मृत्युगामिनी होकर अस्तित्वहीन हो गयी हैं | सफाई न होने से गाद, गन्दगी और पॉलीथिन नदी में हर तरफ जमा हो गई है जिससे कारण स्वर्णरेखा काफी उथली हो गयी है| इसीलिये नदी में बरसात का पानी एकत्र नहीं हो पता हैं और स्वर्णरेखा अपने उद्गम स्थल से लेकर सम्पूर्ण मार्ग में सूखती जा रही है| सदानीरा रहने वाली कलकल करती यह नदी आज गन्दी नाली के रूप में परिवर्तित हो चुकी है| भौगोलिक और भू भौतिक दृस्टि से स्वर्णरेखा नदी के सूखने से आस पास के छेत्रो में भू जल स्तर की समस्या गहराती जा रही हैं| संछेप में कहा जाय तो सम्पूर्ण स्थिति गम्भीर है| हम उन लोगों को ह्रदय की अनन्त गहराइयों से धन्यवाद देते हैं जिन्होंने कुछ व्यक्तित्वसंपन्न युग शिल्पियों के साथ मिलकर, नगर के ह्रदय से होकर बहने वाली गन्दी, काली नदी को साफ़ करने का बीड़ा उठाया हैं जो हमारी संस्कृति, स्वछता और निर्मलता का प्रतीक हैं| जीवनदायिनी स्वर्णरेखा नदी को गतिशील बनाने के लिए जिस उर्ज़ा की आवश्यकता हैं वह तो इन प्राणवान व्यक्तियों से ही उत्पन्न हुई हैं| हम आशा करते हैं कि राज्य की सरकार इस बिषय पर गम्भीरतापूर्वक विचार करते हुए स्वर्णरेखा नदी को अविरल एवं निर्मल बनाने हेतु प्रभावी कदम उठाएंगी और गंगा को माँ कहकर सत्ता में आई केंद्र की सरकार भी इसकी महत्ता को समझते गए इसे नवीनीकरण कर इसे प्रदुषण मुक्त बनाएगी| हमारी संस्कृति एवं दर्शन में नदी को माँ के सामान माना गया हैं जो हमारे खेतों को, हमारे फसलों को अमृत रूपी जल देती हैं| ऐसे में स्वर्णरेखा का दुःख हमारी माँ का दुःख हैं| स्वर्णरेखा हमारी माँ हैं और हम अपनी माँ पर आये संकट की अवहेलना नहीं कर सकते हैं|