आजाद हुए थे जिस दिन हम टुकड़ों में देश के हिस्से थे, हर टुकड़ा एक स्वघोषित देश था छिन्न-भिन्न भारत का वेश। तब तुम उठे भुज दंड उठा भाव तभी स्वदेश का जगा सही मायने पाए निज देश। थी गूढ़ पहे
डोरबेल की कर्कश आवाज से उन दोनों की नींद खुल गई। हड़बड़ाते हुए मिश्रा जी और उनकी पत्नी उठे। मिश्रा जी ने तुरंत लाइट जलाकर घड़ी पर नज़र डाली। “अरे! बाप रे बाप, पाँच बज गए, तुमने उठाया क्यों नहीं”, मिश्रा