एक वैभवशाली राज्य में,
"अरे,श्याम! आज तुम ठीक से मृदंग क्यों नहीं बजा रहे,एक भी थाप ठीक से नहीं लग रही,"कमलनयनी बोली।
"आज मेरा मन थोड़ा विचलित सा है राज नर्तकी जी! "श्याम बोला।
"परन्तु क्यों? श्याम! आज तुम्हारा मन इतना विचलित क्यों है? क्या कारण है?" कमलनयनी ने पूछा।
"कुछ नहीं,बस ऐसे ही,"श्याम ने उत्तर दिया।
"यदि नहीं बताना चाहते तो मत बताओं,परन्तु अभ्यास में विघ्न ना डालों,अभ्यास तो भलीभाँति कर लो",कमलनयनी बोली।
"ठीक है" और इतने कहकर श्याम,कमलनयनी के संग अभ्यास में लग गया।
कमलनयनी,पल्लव देश के राजा कर्णसेन की राजनर्तकी है,कर्णसेन हृदय से कमलनयनी को प्रेम करते हैं,उसे अपनी प्रेमिका मानते हैं,परन्तु कमलनयनी उनसे केवल प्रेम का अभिनय करती है,वो इसलिए कि उसका राजनर्तकी का पद बना रहे,उसे केवल धन और वैभव का लोभ है,इतना बड़ा महल और इतने सारे दास-दासियाँ वो त्यागना नहीं चाहती,राजा कर्णसेन उससे विवाह करना तो चाहते हैं किन्तु कमलनयनी ने उनसे कहा कि उनके दो रानियाँ और पाँच पुत्र तो पहले से ही हैं,यदि मैने आपसे विवाह कर लिया तो मैं तो सबसे छोटी और तीसरी रानी कहलाऊँगी और मेरी होने वाली सन्तान को भी उचित स्थान नहीं मिलेगा।
श्याम,कमलनयनी का नृत्य सहायक है और साथ में मृदंग भी बजाता है,वो भी कमलनयनी को हृदय की तलहटी से प्रेम करता है परन्तु कभी कह नहीं पाया,कमलनयनी उसके हृदय की बात ज्ञात होते हुए भी अज्ञात होने का अभिनय करती रहती है।मयूरी,कमलनयनी की सखी,दासी ,सौन्दर्य-चतुरा,नृत्य सहायिका ,बहुत कुछ है,वो कमलनयनी को सच्चे हृदय से अपनी स्वामिनी मानती है,परन्तु वो श्याम से प्रेम करती है।
आज पड़ोसी देश के राजा पधारे हैं,उनके सम्मान में आज रात्रि राजनर्तकी कमलनयनी का नृत्य है,इसलिए कमलनयनी नृत्य का अभ्यास कर रही है,उसके संग श्याम भी मृदंग बजाएगा,परन्तु श्याम का मन आज इसलिए विचलित है कि पुनः राजदरबार में कमलनयनी का नृत्य देखा जाएगा,कोई तो उसकी प्रसंशा करेगा, कोई तो अभद्रतापूर्ण टिप्पणियाँ देगा,इन सब से कमलनयनी को कोई अन्तर नहीं पड़ता ,परन्तु श्याम का हृदय द्रवित हो जाता है।
रात्रि के समय कमलनयनी का श्रृंगार मयूरी ने बड़ी निपुणता के संग किया,बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रही थी कमलनयनी लाल वर्ण के परिधान में,घने बालों का जूड़ा बनाकर पुष्प माला से सजा दिया गया था,दोनों गालों को बालों की लम्बी लम्बी अल्के छू रहीं थीं,माथे पर मोतियों की माँग टीका सजा था,सूरज के आकार वाली बिन्दिया माथे की शोभा बढ़ा रही थी,कमलनयनी की आँखें तो कमल के समान सुन्दर थी जो कि काजल लगाने से और भी सुन्दर दिख रहीं थीं,होंठ गुलाब की पंखुड़ियों के समान लग रहे थे,कानों में झुमके,गले में सात लड़ियों वाला मोतियों का हार था,बाजुओं में मोतियों के बाजूबन्द,कलाइयों में सोने की चूडियाँ,पतली कमर खुली हुई थी और नाभि को छूती हुई एक पतली सी सोने की कमरबंद उसने पहन रखी थी,महावर लगे पैंरों में घुँघरू बँधे थे और गोटेदार लाल लम्बी सी चूनर ओढ़ रखी थी,गजगामिनी सी चाल चलते हुए कमलनयनी जब दरबार में पहुँची तो सबकी आँखें चौंधिया गई।
इसके उपरांत कर्णसेन ने आदेश दिया कि नृत्य प्रारम्भ किया जाए,कर्णसेन के आदेश पर कमलनयनी ने अपना नृत्य प्रारम्भ किया___
कमलनयनी की भाव भंगिमा देखकर सब हतप्रभ रह गए,श्याम की मृदंग का और कमलनयनी के नृत्य का जादू सब पर ऐसा छाया कि कोई भी अपनी पलकें भी नहीं झपका पाया,कमलनयनी मोरनी की तरह थिरक रही थी,बिजली सी स्फूर्ति थी उसके भीतर और नृत्य करते समय जो तेज उसके मुँख पर चमक रहा था वो उसके भीतर की आत्मविश्वास को दर्शा रहा था,उसका एक एक अंग नृत्य कर रहा था,सारा पुरूष वर्ग उसे देखकर आहें भर रहा था और ये सोच रहा था कि बस कमलनयनी उसकी हो जाए।
कमलनयनी का नृत्य समाप्त हुआ,तालियों की गड़गड़ाहट से समूचा राजदरबार गूँज उठा,पड़ोसी भी अत्यधिक प्रसन्न हुए,उन्होंने अपने हाथों में पहनी हीरे की अँगूठी कमलनयनी को उपहार स्वरूप भेंट की,श्याम को ये सब ना भाया और वो दरबार छोड़कर वहाँ से चला गया,उसे ये ना भाता था कि कोई इस प्रकार भेंट देकर उसकी कला का अपमान करें,कोई भी अपने शरीर के उतारे हुए आभूषण उसकी ओर फेंके,उसकी कला उसके लिए बहुत अनमोल थी,परन्तु कमलनयनी को इन सबसे कोई अन्तर ना पड़ता था,वो तो बस इसी राग रंग से प्रसन्न थी।
कार्यक्रम समाप्त हुआ और कमलनयनी श्याम को ढूढ़ते हुए अपने महल में पहुँची,परन्तु उसे श्याम कहीं ना दिखा,तभी मयूरी ने कमलनयनी से पूछा____
"कदाचित! आप श्याम को खोज रहीं हैं,हैं ना कमलनयनी!"
"हाँ,ना जाने रूठकर कहाँ चला गया,"कमलनयनी बोली।
"वो यही तो करता है जब कभी किसी से रूठ जाता है तो नदी के किनारे जा बैठता है,वहीं गया होगा,आप चिन्ता ना करें,क्रोध शांत होते ही आ जाएगा,"मयूरी बोली।
"मयूरी! इतना अच्छा कार्यक्रम हुआ और ये महाशय रूठकर चले गए," कमलनयनी बोली।
"अरे,वो तो ऐसा ही है,क्या आप वर्षों से उसे नहीं जानतीं",मयूरी बोली।
"परन्तु,ऐसा व्यवहार! " कमलनयनी बोली।
"चलिए ! स्वामिनी जी ,अत्यधिक मस्तिष्क पर आघात मत कीजिए,वो आ ही जाएगें,आप और मैं चलकर भोजन करते हैं,"मयूरी बोली।
"कितनी बार कहा मैने कि स्वामिनी मत कहा करो,मैं केवल तुम्हारी सखी हूँ,"कमलनयनी बोली।
"अच्छा,ठीक है देवी! अब भोजन करें',मयूरी बोली।
" हाँ,चलो भोजन करते हैं "और इतना कहकर कमलनयनी मयूरी के संग भोजन करने चली गई।
राजा कर्णसेन के राजपुरोहित अब अत्यधिक वृद्ध हो चले थे,राजपुरोहित जी ने स्वयं ही राजा कर्णसेन से इस विषय पर कहा___
"महाराज! अब अवकाश चाहता हूँ,अब इस वृद्ध शरीर में मन्दिर का कार्यभार सम्भालने की क्षमता नहीं रह गई है,मेरी अपनी कोई सन्तान भी नहीं है ,नहीं तो ये पद मैं उसे सौंप देता,अब आप किसी नवयुवक को इस पद पर आसीन करें,"
"राजपुरोहित जी! ये तो आपने हमें दुविधा में डाल दिया,"राजा कर्णसेन बोले।
"परन्तु मैं भी विवश हूँ राजन!" राजपुरोहित जी बोले।
तभी कर्णसेन के पड़ोसी मित्र ने कहा___
"हे मित्र! आप चिन्तित ना हों,मैं एक बहुत अच्छे ज्ञाता युवक से परिचित हूँ,वो आपके राज्य के राज्यपुरोहित बनने के योग्य हैं,यदि आपका आदेश हो तो मैं उनसे इस विषय पर वार्तालाप करूँ।"
"मित्र!आपने तो मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी,आपका बहुत बहुत आभार",कर्णसेन ने अपने मित्र से कहा।
कुछ समय पश्चात उस राज्य में नए पुरोहित का आगमन हुआ,नए पुरोहित कम उम्र के हृष्ट पुष्ट नवयुवक थे ,महल की महिलाएं उन्हें देखकर आपस में वार्तालाप करतीं,कहती कि नए पुरोहित किसी राजकुमार से कम नहीं हैं,अत्यधिक सजीले नवयुवक हैं,संग में बहुत बड़े ज्ञाता भी हैं और किसी भी स्त्री की ओर आँख उठाकर नहीं देखते,अत्यधिक चरित्रवान भी हैं।
उड़ते उड़ते ये सूचना कमलनयनी तक पहुँची,मयूरी ने उसे सारी बात बताई,मैनें अच्छे अच्छो का मोहभंग किया है,इस पुरोहित को भी चुटकियों में वश में कर लूँगीं,कमलनयनी बोली।और कुछ दिनों पश्चात ही मंदिर के प्राँगण में बहुत बड़ा उत्सव होने वाला है और उसमे पुनः राजनर्तकी का नृत्य है,कमलनयनी भी इस ललायित है राजपुरोहित को देखने के लिए,इसलिए वो नृत्य का अत्यधिक अभ्यास कर रही है,पुरोहित को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु........
क्रमशः.....
सरोज वर्मा....