यूं रिश्तों में समझौते का पेवंद लगा कर उसे
कब तक जोड़ा जाए
क्यों ना ज़बरदस्ती वाले रिश्तों की
गांठों को आज़ाद किया जाए
घुटन में रहने से तो बेहतर है
आज़ाद फ़िज़ा में सांस ली जाए
क़समों , वादों में उलझी हुई दुनिया से
अब क्यों ना चलो किनारा किया जाए
अश्मीरा 8/8/19 11:30 am