
नीरजा और उसकी फॅमिली को आज पुरे आठ दिन हुआ था इस फ्लैट में आये, तक़रीबन सभी पड़ोसियों से बातचीत होने लगी थी।बस अब तक सामने वाले ग्राउंड एरिया के दामोदर जी और उनकी पत्नी से परिचय नहीं हुआ था,उनके घर अब तक किसी पड़ोसी को ना आते-जाते देखा ना बात करते बस हर रोज़ खिड़की से कभी किसी को दूध लाते या पेपर लाते देखा है
दस्तक होते ही रौद्र रूप, गुस्सैल आवाज़ सावंली रंगत वाला चेहरा लिए दामोदरजी पेपर और दूध लिए दिख जाते।
आज दामोदरजी की बहुत चीख़ने चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी पर काम के चलते नीरजा देख ना पाई की माजरा क्या है।शाम को वो किसी काम के चलते निकली तो छाया जो नीरजा के बाज़ू वाले फ्लैट में कई सालो से रहती है ने आवाज़ दी, नीरजा आओ तुम भी हमारे साथ शाम का मज़ा लो। वो भी उनके साथ गप्पे मारने लगी बातो बातो में छाया के मुँह से निकला"कीर्ति आज दामोदरजी को देखा था तुमने किस तरह चिल्ला रहे थे पत्नी पर,पौधों को पानी देते वक़्त थोड़ा पानी दामोदरजी के जूतों पर क्या गिरा भड़क पड़े ना जाने क्या क्या कह डाला "हाँ वो तो ऐसे ही गुस्से वाले है ना कभी ख़ुद पड़ोसियों से बात करते है ना पत्नी को करने देते है, कीर्ति ने बात को आगे बढ़ाया।
नीरजा सब की बातें सुन कुछ कुछ दामोदर जी को जान गई सूरज ढलने लगा था, अच्छा अब मैं चलती हूँ कह नीरजा उठ गई तो बाकी औरतें भी अपने घर चली गई।
अगली सुबह नीरजा बेटी को स्कूल बस तक छोड़ने आई बेटी को बिठा लौटने लगी तो उसे दामोदरजी के चीखने की आवाज़ आयी,
पिछली रात ज़ोरदार बारिश से दामोदर जी के आँगन में पानी जमा हो गया था उसकी सफाई तथा पानी के निकाल के लिए नाली बनवाने मज़दूर बुलाए थे पानी तो किसी तरह बाहर कर दिया था मज़दूरों ने, बस नाली के काम के लिए जो पत्थर मंगवाए थे दामोदर जी ने मज़दूर उसे उतारने में लगे थे की अचानक एक मज़दूर के हाथों से पत्थर छूट गया और ज़मीन पर गिरते ही पत्थर के दो टुकड़े हो गए दामोदरजी क्रोध में कहे रहे थे इतने महंगे पत्थर मंगवाए और तुने इसे तोड़ डाला, अब इसकी भरपाई भी तेरे पैसे से होगी
बेचारा बार बार माफ़ी मांग रहा था अगर रोज़ी ना दोगे तो मैं अपने बच्चों का पेट कैसे भरुँगा वो घर में भूखे मेरा इंतज़ार करते होंगे , नहीं मालिक ऐसा ना करो
तभी नीरजा आगे बढ़ी और दामोदर जी से कहा यह तो सिर्फ एक पत्थर है और इसने माफ़ी भी तो मांगी है इसके बच्चे भूखे है इसकी रोज़ी दे दीजिए उसने इतनी मेहनत से काम किया है पूरे ना सही थोड़े पैसे काट लीजिए मगर इसे रोज़ी तो दे दीजिए।
नीरजा को उनपर बहुत ही ग़ुस्सा आया उसने अपने पर्स से पैसे निकाल कर मज़दूर को दे दिए , मज़दूर ने उन्हें धन्यवाद कहा और दुआएं देते चला गया।
लेकिन नीरजा अब भी वही खड़ी थी उसने दामोदर जी को फिर कहा "यह तो केवल एक पत्थर ही टूटा है कोनसा आपका खजाना लूट लिया था उसने ।। इस पत्थर के टूटने से तो अच्छा होता के आपका पत्थर दिल टूट जाता "और वह से घर की ओर बढ़ गई।।दामोदर जी आश्चर्य से नीरजा को जाते देख रहे थे
पहली बार किसी ने उनके स्वाभिमान को सच का कड़वा जवाबी थप्पड़ मारा था ।
अश्मीरा 12/7/19 05:30 pm