एक रोज़ चले आए थे तुम
चुपके से ख़्वाब में मेरे
मेरे हाथों को थामे हुए
दूर फ़लक पर सजे
उस धनक के शामियाने तक
हमसफ़र बनाया था मुझे
सुनो
अपनी ज़िन्दगी के सियाह रंग
छोड़ आई थी मैं
उसी धनक के आख़िरी सिरे पर
जो ज़मीन में जज़्ब होने को थे
उसी धनक के रंगों से ख़ूबसूरत रंग
मेरे दामन में जो तुमने भर दिए थे
वो रंगों में लिपटा दामन
मेरी ज़िंदगी को रंगीन किए हुए है
एक चमक सी आ गई
ख़यालों में मेरे
उस सफ़र की वापसी के बाद
साथ रहते है अब मेरे
तुम्हारे वो मख़मली अहसास
सुनो
कभी फ़ुरसत से फिर एक बार आ जाना
चलेंगे साथ फिर हम
उसी धनक की ख़ूबसूरत सैर के लिए
भीगेंगे बारिश की फुहारों में
और चुरा लेंगें अंजुरी भर
इंद्रधनुषी धुप
अश्मीरा 29/7/19 01:30 pm