देर रात को मेरे घर में, आई है किसीकी अर्जी, दूर देश से मेरे घर को, लौट आई आज वर्दी! &
आसूंवो में भिगी हुंवी , आई एक मायूस शाम,बेबजह की नाराजगी,तेरी हुंवी थी सरेआम! किस बात से तू खफा,जो कभी ना मैं बेवफा,क्यू ही रिश्तों में तू रुठा, ना था प्यार मेरा झूठा!कितने कडवे थे तेर
भारत मां के मिट्टी पर, सदियों पुराने सभ्यता पर,वसुधैव कुटुंबकम के हमारी चली आई नीती पर,हिमालय पर्वतों जैसे कई खडे अविरत सैनिकों पर,हजारों साल से देवी कहके बहती आई नदियों पर!खुद भूखा रहके खिलाये अपने ह