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सच्चिदानंद तिवारी के बारे में

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सच्चिदानंद तिवारी की पुस्तकें

सच्चिदानंद तिवारी के लेख

समझ लेना कि होली है

13 मार्च 2017
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"समझ लेना कि होली है" करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है। हिलोरें खा रहा हो मन, समझ लेना कि होली है। दीदार को तरसती हों बेकरार तकती आंखें, उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है। कभी खोलो झुलस कर आप , अपने घर का दरवाजा खड़े

संन्यास

13 फरवरी 2015
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आज उनका सन्यास आज सपने में देखा किसी मकान को खण्डहर जैसा, ऊपर छत नहीं है, दरवाजे की चमक फीकी है, धूल से सनी दीवारें, सफेदी, धुल-सी गई है । संभवतः यह स्वप्न नहीं । मेरे जीवन की हकीकत है । पिता-तुल्य मातुल को ही मैंने मकान रूप में देखा है । आज उनका सन्यास, उनका कठोर निर्णय, हमें तन-मन

क्या फर्क पड़ता है ?

6 फरवरी 2015
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क्या फर्क पड़ता है ? नियमों का अनदेखा शर्त ताक में शासकीय कार्य कलाप चाहे जितने शिकंजे कसे जांए अनियमितताएं न हो पर इन सबकी धज्जियां उड़ रही हैं । सीनियर के होते अकारण जूनियर की पदोन्नति । क्रय प्रक्रिया सम्पन्न भुगतान दौरान आपूर्ति आदेश जारी । क्या फर्क पड़ता है ? आत्मा मर चुकी है । कलयुग का असर

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