संन्यास
आज उनका सन्यास
आज सपने में देखा
किसी मकान को
खण्डहर जैसा,
ऊपर छत नहीं है,
दरवाजे की चमक फीकी है,
धूल से सनी दीवारें,
सफेदी, धुल-सी गई है ।
संभवतः यह स्वप्न नहीं ।
मेरे जीवन की हकीकत है ।
पिता-तुल्य मातुल को ही
मैंने मकान रूप में देखा है ।
आज उनका सन्यास,
उनका कठोर निर्णय,
हमें तन-मन