आज उनका सन्यास
आज सपने में देखा
किसी मकान को
खण्डहर जैसा,
ऊपर छत नहीं है,
दरवाजे की चमक फीकी है,
धूल से सनी दीवारें,
सफेदी, धुल-सी गई है ।
संभवतः यह स्वप्न नहीं ।
मेरे जीवन की हकीकत है ।
पिता-तुल्य मातुल को ही
मैंने मकान रूप में देखा है ।
आज उनका सन्यास,
उनका कठोर निर्णय,
हमें तन-मन से झकझोर दिया है ।
घर-बार, धन-दौलत, रिश्ते-नाते
सब से विरक्त,
जीते-जी मोह त्याग,
परमार्थ, मोक्ष का यह निर्णय,
कहने-सुनने में मधुर है ।
पर हम-भौतिकता के लिए
दर्द असहनीय है ।
काशीनाथ की शरण है अब,
मेरे मातुल, अब उन्हीं से रक्षित हैं ।
हे प्रभू आप-से कर बद्ध विनती है ।
मेरे मातुल की रक्षा और कल्याण करना ।
इसी भाव से मेरे अश्रु आपको समर्पित है ।
एस-एन-तिवारी
दि. 11-07-2014