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संन्यास

13 फरवरी 2015

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आज उनका सन्यास आज सपने में देखा किसी मकान को खण्डहर जैसा, ऊपर छत नहीं है, दरवाजे की चमक फीकी है, धूल से सनी दीवारें, सफेदी, धुल-सी गई है । संभवतः यह स्वप्न नहीं । मेरे जीवन की हकीकत है । पिता-तुल्य मातुल को ही मैंने मकान रूप में देखा है । आज उनका सन्यास, उनका कठोर निर्णय, हमें तन-मन से झकझोर दिया है । घर-बार, धन-दौलत, रिश्ते-नाते सब से विरक्त, जीते-जी मोह त्याग, परमार्थ, मोक्ष का यह निर्णय, कहने-सुनने में मधुर है । पर हम-भौतिकता के लिए दर्द असहनीय है । काशीनाथ की शरण है अब, मेरे मातुल, अब उन्हीं से रक्षित हैं । हे प्रभू आप-से कर बद्ध विनती है । मेरे मातुल की रक्षा और कल्याण करना । इसी भाव से मेरे अश्रु आपको समर्पित है । एस-एन-तिवारी दि. 11-07-2014

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