^^^^^ साधना -
- दिनचर्या के कार्यों के साथ - साथ ^^^^^
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साधना, जिसके लिए अलग समय देने की आवश्यकता नहीं;
ऐसी साधना की बात करें।
साधना, जो दिन प्रतिदिन के कार्यों को करते हुए की जा सके;
ऐसी साधना की बात करें।।
स्वयं से जुड़े रहना;
होश में बने रहना;
बड़ी उपलब्धियां हैं;
उन्हें पाने की बात करें।।
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बात को स्पष्ट करने के लिए, कुछ उदाहरण लेकर चलते हैं;
फिर, साधना करने वाला व्यक्ति, जैसा चाहे, अपनी दिनचर्या से, कोई भी कार्य चुन सकते हैं;
और अपने चुने हुए कार्य के साथ, यह अभ्यास कर सकते हैं।
अपनी सुविधा अनुसार कोई सा भी कार्य चुन सकते हैं;
और जब सुविधा लगे, तो यह अभ्यास कर सकते हैं।।
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पहला उदाहरण, लिफ्ट ( Lift ) के सामने खड़े हैं;
तो उसके, ऊपर के - नीचे के, दोनों दिशा के, बटन दिखें;
जिस दिशा में जाना है, उसी दिशा का बटन दबे।
और लिफ्ट के अंदर जाकर;
जिस माला ( Floor ) पर उतरना है, उसी माला का बटन दबे।
जिस माला पर उतरना है, उसी माला पर उतरा करें;
कार्य को सचेत हो करने का अभ्यास करें।
जब लिफ्ट चलना शुरू करे, तो चलने का पता चले;
जब रुके, तो उसके रुकने का पता चले;
कम से कम, स्थूल परिवर्तनों का पूरा पूरा पता चले।।
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अगला उदाहरण, जब भोजन करते हैं, ग्रास ( कौर, निवाला ) मुंह में लेते हैं, पूरा पूरा पता चले;
लार बनने का पता चले, पूरे पूरे स्वाद, आदि आदि का पता चले।।
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भावना से जुड़ा उदाहरण, जब अनायास कोई प्रियजन मिल जाता है;
अंदर उठते भावों का पूरा पूरा पता चले;
जब कुछ प्रतिकूल घट जाता है, तब भी भावों का पूरा पूरा पता चले।।
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यह सब है होश बढ़ाने की, होश में बने रहने की साधना;
स्वयं से जोड़ स्थापित करने की, स्वयं से जुड़े रहने की साधना।।
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फिर से लेते हैं एक उदाहरण, जब पोंछा करने के लिए कपड़ा उठाया;
तो कपड़ा सूखा है, कितना गीला है, पता चले;
जब फर्श पर कपड़ा डाला, तो सीधा या उल्टा रखा, पता चले।।
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साधना का उचित दिशा में, इतना छोटा कदम उठाना है;
कि बोझा जैसा मालूम ना पड़े।
दिनचर्या, और जीवन ज्यों का त्यों चलता रहे;
यह साधना करने से, कुछ भी विघ्न या रुकावट ना पड़े।।
हमारी पांच वाह्य इंद्रियां हैं, और मन है;
हमें पता चलता रहे कि प्रत्येक में क्या-क्या होता है।
पर शुरुआत में, अभ्यास को सरल बनाने के लिए;
किसी एक इंद्रिय को चुन सकते हैं;
समय के साथ सभी इंद्रियां और मन को अभ्यास में जोड़ सकते हैं।।
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अभ्यास में गहराई बढ़ाते जाना है;
स्थूल स्तर पर, सूक्ष्म स्तर पर, गहनता लाते जाना है;
संवेदना का जितना विस्तृत अनुभव मिले, करते जाना है।।
कभी-कभी, बीच बीच में;
सिर्फ एक ही इंद्रिय पर पूरा पूरा ध्यान लगा देना है;
एक ही इंद्रिय की संवेदनों से पूरी तरह से, पूरी गहराई से, पूरी गहनता से जुड़ना है।।
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फिर वर्तमान में रहने का अभ्यास होने लगेगा;
फिर धीरे-धीरे मन स्थिर होने लगेगा।
अकारण ही अंदर प्रसन्नता जागने लगेगी;
सहजता, सरलता बढ़ने लगेगी।।
आगे बढ़ने की राह मिलने लगेगी;
आगे बढ़ने की राह खुलने लगेगी।।
इससे लाभ होगा, यह अभ्यास करें, शुरू करें;
धीरे-धीरे यह जम जाएगा;
स्वयं के स्वभाव में, प्रकृति में धीरे-धीरे आ जाएगा।।
हम भूत में चले जाते हैं या भविष्य में चले जाते हैं;
या किसी विचार की धारा में बहने लगते हैं।
इस अभ्यास के साथ हम वर्तमान में आ जाते हैं;
यह लाभ तुरंत ही मिल जाता है, हम होश में आ जाते हैं।।
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स्वयं से जुड़े रहना;
होश में बने रहना;
बड़ी उपलब्धियां हैं;
उन्हें पाने की बात करें।।
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हम यह साधना करते रहें;
हमारी कामना है, हम सफलता पाते रहें।।
उदय पूना,
९२८४७ ३७४३२,