" गुस्सा -- Balance Sheet दर्पण "
हम गुस्सा, करते रहते हैं;
और गुस्सा करने को, उचित भी ठहराते रहते हैं;
और साथ साथ, यह भी, मानते रहते हैं;
कि गुस्सा देता, सिर्फ घाटा;
. . . सिर्फ हानी;
और होते, कितने नुकसान हैं।
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इस उलझन को, हम देखते हैं।।1।।
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जब जब हमारा काम हो जाता है, गुस्सा करने से;
सफलता मिल जाती है, गुस्सा करने से;
जब जब हमारे मन का हो जाता है, गुस्सा करने से।
तब तब हम गुस्सा कर ने के पक्ष में, गुस्सा की आवश्यकता, महत्त्व को लेकर आश्वस्त हो जाते हैं;
और मानने लगते हैं कि गुस्सा करना अनिवार्य है, चिल्लाना, डांटना अनिवार्य है।
जब जब हमको, गुस्सा करने से, मिल जाती है सफलता;
तब तब हम गाने लगते हैं, गुस्सा गाथा।
और आदत ऐसी पड़ती, गुस्सा करने की;
स्वयं तो गुस्सा करते ही हैं; और वकालत करते, स्वजनों से इसकी;
श्रेय देते गुस्सा करने की आदत को, और विजय गाथा गाते स्वयं की।।2।।
आओ, हम;
इस जीत में, छिपी हार को देखते हैं;
इस फायदे में, छिपे नुकसान को देखते हैं;
इस तुरंत के फायदे में;
लम्बे समय में होने वाले नुकसान केलिए, छिपे आमंत्रण को देखते हैं।।3।।
गुस्सा करने से, कौनसा काम हो जाता है?
गुस्सैल व्यक्ति को, क्या लाभ मिल जाता है?
गुस्सा कहां काम कर पाता है?
जो काम बहुत कम समय केलिए, महत्वपूर्ण होता है;
जो कार्य, पूरे जीवान के उपयोग का नहीं है;
गुस्सा करने से, अधिक से अधिक, केवल इस प्रकार के क्षेत्र में सफलता मिल सकती है।
पर जो असीमित सम्भावनायें हैं, सही में बड़े काम हैं;
गुस्सा कर कर के हम, बड़े काम के रास्ते में और कठिनाइयां खड़ी कर देते हैं;
उनके रास्ते, लगभग लगभग बंद कर देते हैं।
जो कार्य पूरे जीवन केलिए, उपयोगी हैं;
जो कार्य लम्बे समय केलिए, आवश्कय हैं;
उनके रास्तों को, लगभग लगभग बंद कर देते हैं;
उनकी संभावनाओं को, लगभग लगभग समाप्त कर देते हैं।
इक्का दुक्का पेड़ों के चक्कर में, पूरा जंगल ठुकरा देते हैं;
इक्का दुक्का पेड़ों के चक्कर में, पूरा जंगल ठुकरा देते हैं।
तुरंत तुरंत के चक्कर में, पूरा जीवन बिसरा देते हैं;
तुरंत तुरंत के चक्कर में, पूरा जीवन बिसरा देते हैं।।4।।
गुस्से से जुड़े लाभ, हानी को देख ने की, समझने की हमारी क्षमता बढ़ती रहे;
जो हमारे लिए उचित है, हम वही करें, वही हमारे चरित्र में उतरा रहे।
गुस्सा करने के पहले ही सचेत हो जाएँ, ऐसी अंतर्दृष्टि जगी रहे;
गुस्से से जुड़े लाभ, हानी साफ दिखें, ऐसी दूरदृष्टि भी जगी रहे।।5।।
उदय चंद्र जैन, 9284737432