** यह मेरा जीवन कितना मेरा है ? **
यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, वो किस का है? वो किस किस का है? हम में से प्रत्येक यह प्रश्न, इस तरह के प्रश्न स्वयं से कर सकता है। यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, मैं उसको मेरा कहता हूं, समझता हूं। पर
यह मेरा जीवन कितना मेरा है?
हम कहते तो हैं कि यह मेरा जीवन है;
कौन नहीं कहता यह मेरा जीवन है;
पर यह जीवन, जो हम जी रहे हैं, कितना मेरा है?
हम इस पर चर्चा करते हैं, और हम इस सम्बन्ध में समझेंगे, और जानेगे। ... ... ... .....
यह मेरा जीवन कितना मेरा है?
हम कहते तो हैं कि यह मेरा जीवन मेरा है। .. ... हम इससे जुड़े कुछ पहलुओं को देखते हैं, समझते हैं. .. ... ...
यह मेरा शरीर है;
यह मेरा मकान है; आदि आदि में शब्द "मेरा" का कुछ औचित्य है, हो सकता है, हम यह मान लेते हैं।
पर,
जीवन एक एक का नहीं होता;
जीवन एक एक का अलग अलग नहीं होता;
प्रत्येक का जीवन अलग अलग या प्रथक प्रथक नहीं होता;
जीवन तेरा मेरा अलग अलग नहीं होता।
जीवन सामूहिक है;
जीवन साझा है;
हमारा जीवन अलग अलग नहीं है।
जीवन सृष्टि का हिस्सा है;
जीवन सृष्टि का हिस्सा है;
सृष्टि के साथ एक होकर जीने से ही जीवन जीवन होता है;
फिर, यह मेरा जीवन कितना मेरा है।
यह मेरा जीवन कितना मेरा है?
हम कहते तो हैं कि यह मेरा जीवन मेरा है। .. ... हम इससे जुड़े पहलुओं को देखते हैं, समझते हैं. .. ... ...
प्रकृति की कृपा से मेरा जीवन है;
प्रकृति की कृपा से मेरा जीवन चलता है;
धूप, हवा, पानी, भोजन आदि प्रकृति से ही मिलता है;
फिर, यह मेरा जीवन कितना मेरा है।
कितने जीवों की मृत्यु से मेरा जीवन चलता है;
कितने जीवों की मृत्यु से भोजन मिलता है;
कितने जीवों के सहयोग, योगदान, सहायता से मेरा जीवन चलता है;
फिर, यह मेरा जीवन कितना मेरा है।
हम आपस में जुड़े हैं, परस्पर निर्भर है;
इसी जोड़ से, इसी निर्भरता से, मेरा जीवन है;
यह मेरा जीवन सृष्टि का हिस्सा है;
फिर, यह मेरा जीवन कितना मेरा है।
यह मेरा जीवन कितना मेरा है?
हम कहते तो हैं कि यह मेरा जीवन मेरा है। .. ... हम नें कुछ चर्चा कर ली है। अब एक और पहलू को लेकर, हम देखते हैं, समझते हैं. .. ... ...
कहना तो है यह मेरा जीवन है;
पर हम स्वयं को कितना जानते हैं, पहचानते हैं;
स्वयं को कितना समय देते हैं, स्वयं के साथ कितना रहते हैं;
स्वयं की स्थिति को कितना अच्छा करते हैं;
स्वयं कितने अच्छे से जीवन जीते हैं;
स्वयं के जीवन का, स्वयं का कितना सम्मान करते हैं;
कितने समय सुख, शान्ति, उल्लास, हर्ष, प्रसन्नता, ऊर्जा और होश के साथ होते हैं;
यह मेरा जीवन कितना मेरा है।
स्वयं कहते तो हैं कि यह मेरा जीवन है;
पर इस केलिए हम ऐसा क्या करते हैं;
इस केलिए जो सबसे अच्छा है क्या वो करते हैं;
क्या वैसा ध्यान रखते हैं, जैसा रख सकते हैं;
जो इस के लिए आवश्यक है क्या वो करते हैं;
फिर, यह मेरा जीवन कितना मेरा है।
हम विचार करें, प्रत्येक चिंतन करे, और देखें। ... ..... ......
मैं बाहर बाहर ही रहता हूं;
कितना समय, ऊर्जा दूसरों पर देता हूं;
कितना ध्यान दूसरों पर, अन्य पर देता हूं;
क्या बाहर और दूसरों में उलझे रहना ही मेरा जीवन है?
मुझे स्वयं की, निज की कितनी सुध है?
फिर भी कहना तो वही है - यह मेरा जीवन है;
फिर, यह मेरा जीवन कितना मेरा है??
उदय पूना