II अनुभव :
एक निज सेतु II
हमारा निज अनुभव, मनोभाव के स्तर पर, हमें बतलाता है कि भविष्य में स्वयं के अंदर कैसे भाव उभरेंगे ? अंदर के भावों की द्रष्टि से, निज अनुभव हमारे स्वयं के लिए हमारे स्वयं के वर्तमान से निकलते हुये भविष्य की झलक दिखलाता है।
निज अनुभव;
भविष्य की झलक है;
इसी दिशा में स्वयं बढ़ते जाएं तो जो मिल सकता है, उसी की झलक है।
अनुभव में जो भाव अभी आ रहें हैं, उसी तरह के भाव आगे भी रहेंगे।
निज अनुभव;
जिस दिशा में स्वयं चलने से आया है;
जिस दिशा में स्वयं चलने से प्राप्त हुआ है।
उसी दिशा में स्वयं चलते जाएं, बढ़ते जाएं तो आगे क्या है;
उसको दिखलाना, बतलाना शुरूं करता है;
निज अनुभव।।1।।
यदि यही चाहिए तो आगे बढ़ते जाएं, यदि यही स्वीकृत है, यदि इसी में राजी हैं तो आगे बढ़ते जाएं;
अन्यथा, मुझे मेरे इच्छित भाव की प्राप्ति अन्य दिशा में मिलेगी;
यह स्पष्ट हो जाता है, यह स्पष्ट हो जाता है।
इस दिशा में किसी अन्य को क्या मिला, इस दिशा में किसी अन्य को क्या मिला;
उससे हमारे स्वयं केलिए कोई विशेष मतलब नहीं;
जो हम को स्वयं को मिल सकता है, निज अनुभव उसको बतलाता है।।2।।
प्राप्ति कहें, उत्थान कहें, या पहुंचना कहें;
वही प्रमुख है, प्रधान है, मुख्य है, या कहें प्रथम है;
हम वही दिशा पकड़ें जो सहाय हो, जो मेरे स्वयं केलिय सहाय हो।
किसी एक दिशा को;
किसी तथाकथित विशिष्ट दिशा को;
किसी अन्य, सफल व्यक्ति की दिशा को;
पकड़ ने की जिद न करें, हठ न करें;
निज अनुभव जो मार्ग-दर्शन करता है उसका सम्मान करें।।3।।
निज अनुभव सेतु है, निज अनुभव का सम्मान करना सेतु है;
जीवन में सफल होने केलिए, जीवन जीने केलिए;
स्वयं को पहचानने केलिए, समझने केलिए;
स्वयं से जुड़ ने केलिए, स्वयं को प्राप्त करने केलिए;
स्वयं के स्वभाव में स्थापित होने केलिए;
निज अनुभव सेतु है, निज अनुभव का सम्मान करना सेतु है।।4।।
अनुभव तभी पता चलता है, अनुभव का सही पता तभी चलता है;
जब हम स्वयं सहज होते हैं।
किसी दबाव में नहीं होते हैं, किसी के प्रभाव में नहीं होते हैं;
कुछ प्रमाणित करने के चक्कर में नहीं होते हैं, किसी को कुछ दिखाने के चक्कर में नहीं होते हैं;
किसी सिद्धांत के चक्कर में, प्रभाव में नहीं होते हैं;
किसी विश्वास, मान्यता के चक्कर में, प्रभाव में नहीं होते हैं।
किसी भी प्रकार की जल्दी में नहीं होते हैं;
किसी कार्य को पूरा करने, समाप्त करने, निपटाने के चक्कर में नहीं होते हैं;
किसी परेशानी से तुरंत मुक्ति पाने के चक्कर में नहीं होते हैं;
किसी Short-Cut के चक्कर में नहीं होते हैं।।5।।
निज अनुभव क्या है, समझते हैं। ........
निज अनुभव मतलब स्वयं को अंदर कैसा लगता है, अंदर क्या भाव आता है;
स्वयं को अंदर क्या अंतर पड़ता है, अच्छा लगता है, बुरा लगता है, या कोई अंतर नहीं पड़ता है।
अंदर शांति मिलती है या अशांति मिलती है;
मेरी ऊर्जा बढ़ती है या घटती है।
मेरा विस्तार होता है या मैं सिकुड़ जाता हूं;
मैं सहज रहता हूं या असहज हो जाता हूं।
मेरा मनोबल बढ़ता है या गिर जाता है;
मेरे अंदर जीवन खिलने लगता है या मुरझाने लगता है।।6।।
निज अनुभव;
भविष्य की झलक है;
इसी दिशा में स्वयं बढ़ते जाएं तो जो मिल सकता है, उसी की झलक है;
अनुभव, एक निज सेतु है, जो भविष्य से जुड़ा होने के कारण उसकी झलक दिखलाता है।
अनुभव, एक निज सेतु है।
उदय पूना