तुम्हारा रूठना
रूठना और मनानाजैसे ज्वार और भाठापूर्णिमा की रात में तड़प कर उठती हुईलहरों सी नाराजगी तुम्हारीसारे बन्धन तोड़ करबहा ले जाती मुझे तुम्हारे प्यार के सागर मेंउठाती गिराती भिगातीज्वार सी तीव्र बेलगामतुम्हारी बेबाक बातेंथपेड़ों जैसी लगती हैं।मैं शांत किनारे साअविचल तर बतरभीगता जाता हूँसब कुछ सुनते सहतेमुझे व