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सपना मेरा

1 फरवरी 2015

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featured image​सपनों की दुनिया में रह कर , फिर भी देखता हूँ एक स्वप्न। है एक अपना सपना मेरा, दूसरों के सपनो को सजाना। हो जाता हूँ स्तब्ध , जब सोंचता हूँ उनके बारे में... अरे वही ! जिनके पास अपने शरीर को खोने के सिवा और कुछ भी है नहीं !!!!! दिली ख्वाहिश है उनको दिखना राह मंज़िलों की , उन्हें बनाना इंसान जो करें मदद औरों की। है खलबली सी मेरे अंदर , उनके भूक की आग मिटाना। उनकी कमज़ोरी को उनकी मज़बूती बनाना। हो गया है मन बाँवला, परवाह नहीं रही परिस्थितियों की। बस गया है वो स्वप्न ऐसे , आत्मा की जगह ले लिया हो जैसे। By Rakesh Kumar For more poems please visit my website - www.motiharipatrika.in

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