सरस्वती नदी और उसकी सभ्यताहमें उस विदेशी धारणा को दूरकरना होगा जो सभ्यता के पूरे कालखण्ड को महज10 हजार साल के अन्दर समेट देती है।जबकि आज वो खुद सभ्यता के काल को लाखों वर्षपूर्व मानते हैं।वैदिक साहित्य हजारों वर्षों से मानव मस्तिष्क परमानों रिकार्ड किया जाता रहा होऔर इसे भारतीय मनीषा का चमत्कारही कहा जायेगा कि आज भी वैदिक साहित्यउसी रुप में सुरक्षित है।भारत का भू-गर्भिक इतिहास एशिया महाद्वीपकी संरचना से सम्बद्ध है जो अबसे लगभग 12 करोड वर्षपूर्व से प्रारम्भ होता है जब इस धरती पर मानवका अवतरणहुआ था और इसे मनवन्तर का सिद्धान्त कहा जाता हैजिसका विस्तृत वर्णन हमारे ग्रन्थों में मिलता है।‘‘हमारे पूर्वजों ने इतिहास की एक अक्षय निधि हमारेलिए विरासत में छोडी है जिसे विदेशी शासकों नेक्षुद्र स्वार्थवश नकारकर एक विकलांग इतिहास सबकेसमक्ष रखा।आइये हम अपने इतिहास को विश्व परिप्रेक्ष्य मेंप्रस्तुत करके एक इतनी बड़ी रेखाखींच दें कि पश्चिम का विकलांग इतिहासस्वतः प्रभावहीन हो जाय।’’अंग्रेजी पुस्तक ‘‘द लास्ट रिवर सरस्वती’’ का उदाहरणदेते हुए कहा कि हमें वामपंथी औरविदेशी मानसिकता वाले इतिहासकारों से जबाब-सवाल करने की बजाय अपना कार्य दृढ़ता से करते रहनेकी जरुरत है और यही कार्य उनके भ्रामक मान्यताओंको ध्वस्त कर देंगे।-----प्रो. टी. पी. वर्मा (सेवानिवृत्त उपाचार्य,प्रा.इ. एवं पुरातत्व विभाग, काशी हिन्दूविश्वविद्यालय, वाराणसी)।"वैदिक सरस्वती नदी शोध-अभियान"भारतीय-धर्मशास्त्रों और पुराणों में वर्णित विशालएवं पवित्र सरस्वती नदी कोसंसार के सभी प्रतिष्ठित विद्वान् स्वीकार करते हैं।इसी पवित्र सरस्वती नदी के तट परमंत्रद्रष्टा ऋषियों ने वेदमंत्रों का साक्षात्कारकिया था।कालान्तर में सरस्वती नदी अंतःसलिला हो गयी।ऋग्वेद के नदीसूक्त में भारत की दस नदियों का वर्णनहै जिसमें सरस्वती सबसे महत्त्वपूर्ण नदी के रूप मेंवर्णित है।ऋग्वेद के अतिरिक्त यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद,वाल्मीकीयरामायण, महाभारत, पुराण-ग्रन्थ,ब्राह्मण-ग्रन्थ, मनुस्मृति, मेघदूतम्,अवेस्ता आदि ग्रन्थों में सरस्वतीनदी का वर्णन प्राप्त होता है।महाभारत के शल्यपर्व में सरस्वती केतटवर्ती सभी तीर्थों का विस्तारपूर्वक वर्णन है।वस्तुतः महाभारत युद्ध के समय की गई बलरामजी की तीर्थयात्रा, सरस्वती के तटपर स्थिततीर्थों की ही यात्रा थी,जिसका विस्तार से वर्णनशल्यपर्व में उपलब्ध होता है।विगत कुछ वर्षों में हुए अनुसन्धानों से यह सिद्ध हुआ हैकि वेदों में वर्णित सरस्वतीनदी हरियाणा में यमुनानगर के ‘आदिबद्री’ नामकस्थान से निकलती थी जो शिवालिक पर्वत सेनिकलनेवाली सरस्वती नदी का मुखद्वार था।आज भी सरस्वती नदी के इस तीर्थ की विशेषमान्यता है।सरस्वती नदी का उद्गम स्थल बंदरपूंछ शिखर के पश्चिममें हर-की-दून ग्लेशियर है।सरस्वती नदी शिवालिक की आदिब्रदी से निकलकरहरियाणा, पंजाब, सिंध-प्रदेश, राजस्थान एवं गुजरातहोते हुए लगभग 1,600 किमी की दूरी तय करते हुए अरबसागर में गिरती थी।उपग्रह से लिए गए भूगर्भीय चित्रों के माध्यम सेवैज्ञानिकों ने सरस्वती के प्रवाह-मार्गका मानचित्रण किया है।ये मानचित्र दर्शाते हैं कि यह नदी 8 किमी तकचौड़ी थी और यह पूरे प्रवाह के साथबहती थी।उस समय सतलुज और यमुना इसकी सहायक नदी थी।इसके अतिरिक्त दो अन्य नदियाँ- दृष्द्वती (घाघरा)और हिरण्यवती भी सरस्वतीकी सहायक नदियाँ थीं।भूगर्भिक विद्वानों के अनुसन्धानों से यह बात सामनेआई कि लगभग 5 हज़ार वर्षपूर्व भूगर्भिक परिवर्तनों के कारण शिवालिक-श्रेणियाँ 20-30 मीटर ऊपर उठ गयीं,सरस्वती नदी का मुखद्वार अवरुद्ध हो गया और वहमार्ग बदलकर बहने लगी।विवर्तनिक परिवर्तन होते रहे और कालान्तर मेंइसका जल यमुना ने अपहरण कर लिया। सरस्वती वर्षा-जल से बहनेवाली एक नदी बनकर रह गयी।धीरे-धीरे राजस्थान-क्षेत्र में मौसम गर्महोता गया और वर्षा-जल भी न मिलने केकारण सरस्वती सूखकर लुप्त हो गयी।धीरे-धीरे यह क्षेत्र मरुस्थल में परिवर्तित हो गया।जोधपुर के सूदूर-संवेदी उपग्रह-केन्द्र के अध्यक्ष डा॰जे॰आर॰ शर्मा के अनुसारसरस्वती नदी सम्भवतः एक भीषण भूकम्प के कारणउत्पन्न हुए भूगर्भीयपहाड़ों के कारण सूख गयी।अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना ने लुप्तसरस्वती नदी का व्यापकसर्वेक्षण किया।यह सर्वेक्षण ‘वैदिक सरस्वती नदी-शोधअभियान’नामक प्रकल्प के अंतर्गत कियागया है।निम्नांकित लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से यहप्रकल्प प्रारम्भ किया गया-1. हमारे इतिहास की प्राचीनता की पुनस्र्थापना।2. आर्यों के मूलस्थान के संबंध में भ्रमों औरविवादों का निराकरण।3. सर्वेक्षण के द्वारा पुरातात्त्विक सामग्री,साहित्यिक साक्ष्य तथा प्रलेखों कोप्राप्त करना। विदेशी-आक्रान्ताओंद्वारा हमारी ज्ञानराशि को नष्ट करदिया गया है, फलस्वरूप हमारे इतिहास के प्राचीनअध्याय नहीं मिलते।उपर्युक्त सामग्री से हमारे इतिहास का पुनर्लेखनहो सकेगा।4. ‘सरस्वती कोश’का प्रकाशनउपर्युक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्तिकशुक्ल अष्टमी, मंगलवार,कलियुगाब्द 5087, तदनुसार 19 नवम्बर, 1985 सेमार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी, बृहस्पतिवार, कलियुगाब्द5087, तदनुसार 19 दिसम्बर, 1985 तक मा॰ मोरोपन्तपिंगळे एवं पद्मश्री डा॰ विष्णु श्रीधर वाकणकर केनेतृत्व में सरस्वती-नदी का व्यापक सर्वेक्षणकिया गया।सर्वेक्षण में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के 16विद्वान् थे।आदिबद्री से सोमनाथ तक लगभग 4 हज़ारकिमी की दूरी का सर्वेक्षण किया गया।सर्वेक्षण के दौरान महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विकसामग्री एकत्रित की गयी।सर्वेक्षण की वीडियो- फि़ल्म भी तैयार की गयी।इस सर्वेक्षण-यात्रा के उपरान्त डा॰ वाकणकर नेजो निष्कर्ष निकाले, उनमें से प्रमुख हैं-1. वैदिक सरस्वती नदी हिमालय से निकलती है, वहआदिबद्री के पास समतल प्रदेशमें प्रकट होती है जिसकी चैड़ाई 6 से 8 किमी थी।2. लगभग 10 हज़ार वर्ष पूर्व हिमालय के ऊपर उठने सेइसका मुख्य स्रोत खण्डितहो गया।3. सरस्वती घाटी कृषि के लिए विख्यात थी औरप्राक्-हड़प्पीय बस्तियाँ छा गई थीं। सारस्वत क्षेत्रघनी आबादीवाला क्षेत्र था।4. आद्यमानव ‘रामापिथिकस’का जन्म शिवालिककी श्रेणियों में सरस्वती की उपत्यिका में हुआ।5. महाभारत-युद्ध इसके ही किनारे पर हुआ।धीरे-धीरे सरस्वती नदी का मूल प्रवाह अवरुद्ध होने सेवह सूखने लगी और इसकाप्रवाह ओझल हो गया।6. वैदिक समाज के लोग इसी क्षेत्र में जन्मे औरसरस्वती के अन्त:सलिला होनेके कारण विश्वभर में फैल गये।विद्वानों की एक बड़ी शृंखला ने अपने शोध-कार्यों से प्राचीनसरस्वती नदी की प्रामाणिकता सिद्ध की है।प्राचीन जलधाराओं के उपग्रह-चित्रों, भूगर्भीयसर्वेक्षण और ज़मीन के ऊपर किए गए जल-सर्वेक्षणों नेइस नदी को प्रमाणित किया है।केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण के अध्यक्ष डा॰ डी॰के॰चड्ढा ने जुलाई, 1997 में राजस्थान के जैसलमेर जि़ले के8 क्षेत्रों में विस्तृत उपग्रहीय तथा अन्य सर्वेक्षणों परआधारित सरस्वती-परियोजना के बारे मेंबताया कि भूमि के नीचे 360 मीटर की गहराई मेंसरस्वती नदी का पुराना जलमार्गअभी भी विद्यमान है।राजस्थान राज्य भूमिगत जलबोर्ड के अध्यक्ष के॰एस॰श्रीवास्तव का मानना है कि राजस्थान के प्राचीनजलमार्गों में से एक सरस्वती नदी हो सकती है।उनका कहना है कि कार्बन डेटिंग से यह तथ्य सामनेआया है कि इस इलाके केप्राचीन जलमार्गों में उन्हें जो जल मिल रहा है, वहचार हज़ार वर्ष पुराना है।केन्द्रीय भू-जल बोर्ड के पूर्व महानिदेशक के॰आर॰श्रीनिवास ने अपनी एक रिपोर्टमें बताया है कि सरस्वती नदी के जलमार्गों पर लगभग10 लाख नलकूप खोदेजा सकते हैं।अभी तक हड़प्पा-सभ्यता को सिर्फ सिंधु-नदी की देनमाना जा रहा था, किन्तुअब नये शोधों से यह सिद्ध हो गया है कि यहसभ्यता सरस्वती नदी के तट पर अवस्थित थी।उल्लेखनीय है कि उत्खनन में प्राप्त हड़प्पा-सभ्यता की 2,600 बस्तियों में मात्र 265बस्तियाँ ही, जो वर्तमान पाकिस्तान में हैं, सिंधु-नदी के तट पर मिलती हैं।शेष सभी सरस्वती के तट पर हैं।उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में और इस विषय पर देश-विदेश में हुए अद्यतम अनुसन्धानों का समाहार करते हुएआधुनिक वैज्ञानिक-साधनों से और आगेअनुसन्धान करने का भगीरथ प्रयत्न डा॰ एस॰कल्याणरमण ने संभाला।वर्षों के अथक परिश्रम के फलस्वरूपअन्तःसलिला सरस्वती की वैज्ञानिक-प्रामाणिकता के साथ सरस्वती की सर्वांगीण अध्ययन-सामग्री को ‘सरस्वती’ शीर्षक से लगभगएक हज़ार पृष्ठों एवं 600 चित्रों सहित सन् 2000 मेंप्रकाशित किया और सन् 2003में इसके 7 खण्ड प्रकाशित किये गए।इसी दौरान अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ग्लेशियर-वैज्ञानिक डा॰ विजय मोहन कुमार पुरीने हिमालय के पावटा-दून ग्लेशियर-समूह में सरस्वती केस्रोत की खोज कर ली।इस महत्त्वपूर्ण शोध को योजना ने ‘डिस्कवरी आफ़सोर्स आफ़ वैदिक सरस्वती इनद हिमालयाज़’ शीर्षक पुस्तिका के रूप में कलियुगाब्द5102 (2000 ई॰) में प्रकाशित किया।योजना के वैदिक सरस्वती नदी शोध-अभियान केकारण भारतीय-इतिहास कीप्राचीनता सिद्ध हो चुकी है और आर्य-आक्रमणसिद्धान्त का भी पर्दाफ़ास हो चुका है।दूसरा चरण सरस्वती नदी को पुनर्प्रवाहित करनेका है।डा॰ एस॰ कल्याणरमण और डा॰ विजय मोहन कुमारपुरी ने सरस्वती को पुनःप्रवाहित करने की योजना के तहत अखिल भारतीयइतिहास-संकलन योजना के तत्कालीन संगठन-सचिवमा॰ हरिभाऊ वझे जी के साथ तत्कालीनराष्ट्रपति डा॰ ए॰पी॰जे॰ अब्दुल कलाम से भेंटकी थी।इन प्रयासों तथा डा॰ सुरेश चन्द्र वाजपेयी के सहयोगसे भारत के तत्कालीन पर्यटन-मंत्री श्री जगमोहन नेसरस्वती नदी को पुनर्प्रवाहित करनेकी योजना को स्वीकृति दी थी।प्रथम चरण में आदिब्रदी से हरियाणा के भगवानपुरगाँव तक के सरस्वती के मार्ग का उत्खनन होगा औरदूसरे चरण में उसके आगे का।सरस्वती के पुराने घाटों, तीर्थस्थलों औरमन्दिरों का जीर्णोद्धार प्रारम्भ हो गया है।अब इस नदी पर शोध-कार्य भी हो रहे हैं।सरस्वती नदी पर 14 भाषाओं में 1. प्राइमरी, 2.जूनियर, 3. हाईस्कूल$सीनियर सेकेण्ड्री और 4.डिग्री- इन चार स्तर पर क्रमशः 50, 100, 150 एवं 200पृष्ठों की लगभग 1.5 लाख पुस्तकें प्रकाशित करनेकी योजना है ।फिलहाल 9 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।इन्हें देश के सारे विद्यालयों में भेजा जा रहा है।साथ ही सरस्वती शोध-संस्थानों केद्वारा ओ॰एन्॰जी॰सी॰ के सहयोग से सैनिकों केलिए सरस्वती का जल कुओं के माध्यम से उपलब्ध करानेकी योजना है।योजना के इस प्रकल्प का ही परिणाम है कि आजसरस्वती नदी पर जितना शोध कार्य हो रहा है,उतना एक नदी पर संसार में कभी नहीं हुआ है।जयति सनातन संस्कृति,,जयति भारत,,,