इन आठ दिनों में कोई भी शुभ काम करना अशुभ होगा=========================होली के महज एक हफ्ते ही बचे हैं।और इन एक हफ्तों में कोई भी शुभ कामनहीं होंगे। क्यूंकि होलाष्टक २६-०२-२०१५ से प्रारंभहो रहे है | इन 8 दिनों तक शुभ काम न करें।इसका ज्योतिषीय कारण अधिक वैज्ञानिक, तर्क सम्मततथा ग्राह्य है। ज्योतिष के अनुसार, अष्टमी को चंद्रमा,नवमी को सूर्य, दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु,त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल,तथा पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव के हो जाते हैं।इन ग्रहों के निर्बल होने से मानव मस्तिष्क की निर्णयक्षमता क्षीण हो जाती है और इस दौरानगलत फैसले लिए जाने के कारण हानि होनेकी संभावना रहती है। विज्ञान के अनुसारभी पूर्णिमा के दिन ज्वारभाटा,सुनामी जैसी आपदाएंआती रहती हैंया मनोरोगी व्यक्ति और उग्र हो जाता है। ऐसे मेंसही निर्णय नहीं हो पाता।जिनकी कुंडली में नीच राशि केचंद्रमा, व वृृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैंउन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए। मानव मस्तिष्कपूर्णिमा से 8 दिन पहले कहीं नकहीं क्षीण, दुखद, अवसाद पूर्ण,आशंकित तथा निर्बल हो जाता है। ये अष्ट ग्रह, दैनिककार्यकलापों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।इस अवसाद को दूर रखने का उपाय भी ज्योतिष मेंबताया गया है। इन 8 दिनों में मन में उल्लास लाने और वातावरणको जीवंत बनाने के लिए लाल या गुलाबी रंगका प्रयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है। लाल परिधानमूड को गरमा देते हैं यानी लाल रंग मन में उत्साहउत्पन्न करता है। इसी लिए उत्तर प्रदेश में आजभी होली का पर्व एक दिननहीं अपितु 8 दिन मनाया जाता है। भगवान कृष्णभी इन 8 दिनों में गोपियों संग होली खेलते रहेऔर अंतत: होली में रंगे लालवस्त्रों को अग्नि को समर्पित कर दिया। इसलिएहोली मनोभावों की अभिव्यक्ति का पर्व हैजिसमें वैज्ञानिक महत्ता है, ज्योतिषीय गणना है,उल्लास है, पौराणिक इतिहास है, भारत की सुंदरसंस्कृति है जब सब अपने भेदभाव मिटा कर एक हो जाते हैं।शास्त्रों में कहा गया है कि फाल्गुन शुक्ल पक्षकी अष्टमी से लेकर होलिका दहन तकका समय अशुद्घ होता है, यह होलाष्टक कहलाता है।ज्योतिष के ग्रंथों में ‘होलाष्टक’ के आठ दिन समस्त मांगलिककार्यों में निषिद्ध कहे गए हैं। माना जाता है इस दौरान शुभ कार्यकरने पर अपशकुन होता है।चान्द्र मास के अनुसार फाल्गुन मासकी पूर्णिमा को होलिकादहन पर्व मनाया जाता है Iहोली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक सेप्राप्त होती है I “होलाष्टक” के शाब्दिक अर्थ परजायें, तो होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठदिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है I सामान्य रुप सेदेखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरेनौ दिनों का त्यौहार है I अंतिम दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्वका समापन होता है Iहोली की शुरुआत होली पर्वहोलाष्टक से प्रारम्भ होकर धुलेन्दी तकरहती है I इसके कारण प्रकृ्ति मेंखुशी और उत्सव का माहौल रहता है I वर्ष 2015 में26 फरवरी, 2015 से 5 मार्च, 2015 के मध्यका काल होलाष्टक पर्व रहेगा I होलाष्टक से होली केआने की सूचना मिलती है, साथही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथहोलिका दहन की तैयारियां भी शुरुहो जाती है Iहोलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता :-====================होलिका पूजन करने के लिये होली से आंठ दिन पहलेहोलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले,सूखी लकडी, सूखी घास वहोली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है I जिस दिन यहकार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिनभी कहा जाता है I जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले केचौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है,होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र मेंहोलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्ननहीं किया जाता है I होलाष्टक से लेकर होलिका दहन केदिन तक प्रतिदिन इसमें कुछलकडियां डाली जाती है I इस प्रकारहोलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बडा ढेर बन जाता है ,और इस दिन से होली का रंग वातावरण में बिखरनेलगता है I अर्थात होली की शुरुआतहो जाती है I बच्चे और बडे इस दिन सेहल्की फुलकी होली खेलना प्रारम्भकर देते है Iहोलाष्टक में कार्य निषेध :-=============================होलाष्टक सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है I होलाष्टक के दिन सेएक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है ,वहीं कुछ कार्य ऎसे भी है जिन्हें इस दिनसे नहीं किया जाता है I यह निषेध अवधि होलाष्टक केदिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है Iहोलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में सेकिसी भी संस्कारको नहीं किया जाता है I यहां तक की अंतिमसंस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है Iइन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभनहीं माना जाता है Iहोलाष्टक की पौराणिक मान्यता :–=============================फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थातपूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है I इस दिन से मौसमकी छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है I ठंढसमाप्त होने लगती है, और गर्मियों का आगमन होनेलगता है , साथ ही वसंत के आगमनकी सुगंध फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति मेंबिखरने लगती है Iकामदेव के इस काम से होलाष्टक अशुभ=========================इस मान्यता के पीछे यह कारण है कि, भगवान शिवकी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेवको शिव जी ने फाल्गुन शुक्लअष्टमी तिथि को भष्म कर दिया था।कामदेव प्रेम केदेवता माने जाते हैं, इनके भष्म होने पर संसार में शोककी लहर फैल गयी। कामदेवकी पत्नी रति द्वारा शिव सेक्षमा याचना करने पर शिव जी ने कामदेवको पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसकेबाद लोगों ने खुशी मनायी।होलाष्टक पर ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव==========================होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य वर्जित रहने के पीछेधार्मिक मान्यता के अलावा ज्योतिषीयमान्यता भी है। ज्योतिष के अनुसारअष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य,दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र,द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध,चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रुप लिएहुए रहते हैं।इससे पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखदव दुःखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप चैत्रकृष्ण प्रतिपदा को अष्ट ग्रहों की नकारात्मक शक्ति केक्षीण होने पर सहजमनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल आदि द्वारा प्रदर्शितकी जाती है।होलाष्टक में भगवान श्री कृष्णकी होली======================सामान्य रुप से देखा जाए तो होली एक दिन का पर्व नहोकर पूरे आठ दिन का त्योहार है। भगवान श्रीकृष्णआठ दिनों तक गोपियों के संग होली खेले।दुलहंडी के दिन अर्थात होली के दिन रंगों मेंसने कपड़ों को अग्नि के हवाले कर दिए, तब से आठ दिनों तक यहपर्व मनाया जाने लगा।होलाष्टक पूजन की विधि=====================होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पहलेहोलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले,सूखी लकड़ी, सूखी घास वहोली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है।जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारंभका दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्लेके चौराहे पर होली का डंडा स्थापित किया जाता हैवहां होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्ननहीं किया जाता है।