🌳🏵️🌳🏵️🌳🏵️🌳🏵️🌳🏵️🌳🏵️ *‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*🍀💥🍀💥🍀💥🍀💥🍀💥🍀💥*आत्मा के तीन स्वरूप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा | जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं | जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्म
*हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि जीव जब मां के गर्भ में होता है तो उसे बड़ा कष्ट प्राप्त होता है | मां के गर्भ में जीव परमात्मा से प्रार्थना करता है कि हे भगवान हमें इस नरक से बाहर निकालिए मैं आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए जीवन भर आपका भजन करूंगा , परंतु जन्म लेने के बाद वह ईश्वर को भूल ज
*परमात्मा ने सुंदर सृष्टि का निर्माण किया और इस समस्त सृष्टि को ज्ञान से परिपूर्ण कर दिया | उस ज्ञान को कण कण में पहुंचाने के लिए प्रकृति में अनेकों उदाहरण भी भर दिए | फिर मनुष्य की रचना करके इस धरती पर अनेकों महापुरुष तो भेजे ही साथ ही समय-समय पर स्वयं अवतार लेकर के उस ज्ञान का प्रसार मानव मात्र मे
*इस धरा धाम पर आने के बाद मनुष्य अनेकों कृत्य करता रहता है जिसके कारण वह इस संसार में किसी को अपना शत्रु तो किसी को अपना मित्र मानने लगता है | यदि हमारे सनातन शास्त्रों की बात की जाय तो मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु मनुष्य के मानसिक विकार हैं जिन्हें काम , क्रोध , मद , लोभ , मोह , अहंकार की उपमा दी गई ह
🔥⚜🔥⚜🔥⚜🔥⚜🌸⚜🔥 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻 *भगवान की शरण में जाने के लिए मनुष्य को अपना समस्त कामना , वासना एवं अहंकार का त्याग करना पड़ता है ! जब तक यह दुर्गुण मनुष्य के भीतर विद्यमान हैं तब तक वह कारुण्य
*इस धरा धाम पर जीव का जन्म उसके कर्मों के अनुसार होता है | जीवन के सारे क्रियाकलाप पूर्व जन्मों के कर्मों पर आधारित होते हैं , यदि कर्मानुसार जीव मनुष्य योनि में आता है तो उसका उद्देश्य होता है मोक्ष प्राप्त करना | अनेक जन्मों के भोगों को भोगता हुआ जीव जब मनुष्य योनि में आता है तो मोक्ष प्राप्त करने
*अपने कर्मानुसार अनेक योनियों में भ्रमण करता हुआ जीव मानवयोनि प्राप्त करता है | मानव योनि में आकर जीव का उद्देश्य होता है जन्म - जन्मातर के आवागमन से मुक्ति पाना अर्थात मोक्ष प्राप्त करना | जीव को मोक्ष बिना !! भगवत्कृपा !! के कदापि नहीं प्राप्त हो सकती | गर्भ में जिस
*ब्रह्मा जी के द्वारा बनाई गई इस सृष्टि में मानव मात्र के लिए सब कुछ सुलभ है | अपने कर्मों के अनुसार मनुष्य दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु को भी सुलभ कर सकता है | इस संसार में दुर्लभ क्या है ? जो मनुष्य प्राप्त करने का प्रयास करने के बाद भी नहीं प्राप्त कर पाता है | इसके विषय में
*इस मायामय संसार में कोई भी ऐसा प्राणी (विशेषकर मनुष्य) नहीं है जो कि सुख की इच्छा न रखता हो ! प्रत्येक प्राणी सुखी ही रहना चाहता है | कोई भी नहीं चाहता कि उसे दुख प्राप्त हो | परंतु इस संसार में यह जीव स्वतंत्र नहीं है | काल के अधीन रहकर कर्मानुसार सुख एवं दुख जीव भोगता रहता है | यदि जीव स्वतंत्र ह