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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
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*आत्मा के तीन स्वरूप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा | जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं | जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं |*
*आत्मा नित्यमुक्त होते हुए भी कर्मबन्धन से बंधी होती है इसीलिए उसे मुक्ति का उपाय करना पड़ता है !*
*मुक्त आत्मा की क्रिया को ध्यान से द्खना पड़ेगा कि :- शरीर छोड़ने के बाद मृतात्मा स्थूल शरीर से अलग होने पर सूक्ष्म शरीर में प्रविष्ट कर जाती है | यह सूक्ष्म शरीर ठीक स्थूल शरीर की ही बनावट का होता है, जो दिखाई नहीं देता | खुद मृतात्मा को भी इस शरीर के होने की बस अनुभूति होती है लेकिन कुछ आत्माएं ही इस शरीर को देख पाती हैं | इस दौरान मृतक को बड़ा आश्चर्य लगता है कि मेरा शरीर कितना हल्का हो गया है और मैं हवा में पक्षियों की तरह उड़ सकता हूं | स्थूल शरीर छोड़ने के बाद आत्मा अपने मृत शरीर के आसपास ही मंडराता रहता है | उसके शरीर के आसपास एकत्रित लोगों के वह कुछ कहना चाहता है लेकिन कोई उसकी सुनता नहीं है | मृत आत्मा स्वयं को मृत नहीं मानकर अजीब से व्यवहार भी करता है | वह अपने अंग-प्रत्यंगों को हिलाता-डुलाता है, हाथ-पैर को चलाता है, पर उसे ऐसा अनुभव नहीं होता कि वह मर गया है | उसे लगता है कि शायद यह स्वप्न चल रहा है लेकिन उसका भ्रम मिट जाता है तब वह पुन: मृत शरीर में घुसने का प्रयास करता है लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो पाता | जब तक मृत शरीर की अंत्येष्टि क्रिया होती है, तब तक जीव बार-बार उसके शरीर के पास मंडराता रहता है | जला देने पर वह उसी समय निराश होकर दूसरी ओर मन को लगाने लग जाता है, किंतु गाड़ देने पर वह उस शरीर का मोह नहीं छोड़ पाता और बहुत दिनों तक उसके इधर-उधर फिरा करता है | अधिक माया-मोह के बंधन में अधिक दृढ़ता से बंधे हुए मृतक प्राय: श्मशानों में बहुत दिनों तक चक्कर काटते रहते हैं | शरीर की ममता बार-बार उधर खींचती है और वे अपने को सम्भालने में असमर्थ होने के कारण उसी के आस-पास रुदन करते रहते हैं | कई ऐसे होते हैं जो शरीर की अपेक्षा प्रियजनों से अधिक मोह करते हैं | वे मरघटों के स्थान पर प्रिय व्यक्तियों के निकट रहने का प्रयत्न करते हैं |*
*पुराणों के अनुसार जब भी कोई मनुष्य मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं | उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। ये तीन मार्ग हैं- अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग | अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है | हालांकि सभी मार्ग से गई आत्माओं को कुछ काल भिन्न-भिन्न लोक में रहने के बाद पुन: मृत्युलोक में आना पड़ता है | अधिकतर आत्माओं को यहीं जन्म लेना और यहीं मरकर पुन: जन्म लेना होता है |*
*इस प्रकार नित्यमुक्त होते हुए भी आत्मा अपने शरीर के द्वारा किये गये कर्मों के बंधन में पड़ जाती ! इसी लिए उसकी मुक्ति के उपाय करने की आवश्यकता पड़ती है |*
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