*इस धरा धाम पर जीव का जन्म उसके कर्मों के अनुसार होता है | जीवन के सारे क्रियाकलाप पूर्व जन्मों के कर्मों पर आधारित होते हैं , यदि कर्मानुसार जीव मनुष्य योनि में आता है तो उसका उद्देश्य होता है मोक्ष प्राप्त करना | अनेक जन्मों के भोगों को भोगता हुआ जीव जब मनुष्य योनि में आता है तो मोक्ष प्राप्त करने का उद्देश्य लेकर ही आता है परंतु यह आवश्यक नहीं है कि उसको मोक्ष मिल ही जाय | सनातन धर्म प्रत्येक मनुष्य के लिए धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष आदि चार पुरुषार्थ बताये गये हैं जिसमें सबसे अंतिम मोक्ष ही कहा गया है | मृत्यु के बाद मनुष्य की गति उसके कर्मों के अनुसार होती है | मुख्यत: तीन प्रकार की गति का वर्णन मिलता है स्वर्ग नरक एवं मोक्ष | स्वर्ग एवं नर्क से जीव अपने कर्मों के अनुसार समय व्यतीत करके पुन: चौरासीलाख योनियों में भ्रमण करने लगता है परंतु मोक्ष की स्थिति इससे भिन्न है | जिस प्रकार बादल के माध्यम से बरसा हुआ पानी पृथ्वी के अनेक खंडों में भ्रमण करता हुआ नदी के माध्यम से समुद्र में पहुंच जाता है फिर उसे समुद्र से निकलना नहीं होता उसी प्रकार अनेक योनियों में जन्म लेकर मनुष्य योनि में पहुंचा हुआ जीव अपने कर्मों के अनुसार समुद्र अर्थात भगवान के चरणों में जाकर लीन हो सकता है | जिसे मोक्ष कहा गया है फिर वहां से उसको कहीं नहीं जाना होता | इस मानव शरीर को साधना का धाम एवं मोक्ष का द्वार कहा गया है परंतु मनुष्य धर्म अर्थ काम में इस प्रकार उलझ जाता है कि चौथा पुरुषार्थ मोक्ष की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता और वह आवागमन के चक्कर में घूमा करता है | मोक्ष प्राप्त कर लेने के बाद जीव का आवागमन समाप्त हो जाता है तथा वह मुक्त हो जाता है | यद्यपि मानव जीवन का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना ही होता है परंतु मोक्ष प्राप्त करने के लिए मनुष्य को भगवान की विकट माया के युद्ध करना होता है | जिस प्रकार लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अनेकों प्रकार के श्रम करने पड़ते हैं उसी प्रकार मोक्ष को प्राप्त करने के लिए भगवान की बनाई हुई विशाल माया से स्वयं को बचाते हुए आध्यात्मिक श्रम करने की आवश्यकता होती है | मोक्ष प्राप्त कर लेने के बाद जीव की गति सद्गति में बदल जाती है और वह अपने आराध्य के स्वरूप में विलीन हो जाता है | ऐसी हमारे शास्त्रों की मान्यता है कि जीव अपने कर्म के अनुसार ही स्वर्ग , नरक एवं मोक्ष प्राप्त करता है | गरुड़ पुराण , विष्णु पुराण , वायु पुराण एवं ब्रह्म पुराण में इसका विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है इन्हें अवलोकन करने की आवश्यकता है | जीव मानव शरीर पाकर के स्वयं का उद्देश्य भूल जाता है यही कारण कि वह बारंबार अनेक योनियों में जन्म लेता हुआ इस पृथ्वी पर विचरण किया करता है |*
*आज के भौतिकवादी युग में मोक्ष की परिकल्पना करना भी हास्यास्पद प्रतीत होता है | मनुष्य यौनि प्राप्त करने के बाद जीव माया के चक्रव्यूह में इस प्रकार फस जाता है कि वह उसी में घूमा करता है और मोक्ष प्राप्त करने की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता | धर्म अर्थ काम तक ही आज का मनुष्य सीमित रह गया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह नहीं कह रहा हूं कि आज मोक्ष प्राप्त करने वाला कोई रह ही नहीं गया परंतु यह भी सत्य है कि आज जिस प्रकार का वातावरण देखा जा रहा है इस वातावरण में मोक्ष प्राप्त करना दिवास्वप्न के अतिरिक्त और कुछ नहीं है क्योंकि जीव मोक्ष प्राप्त करने के लिए उपाय तो अनेक प्रकार के करता है परंतु उस पर दृढ़ नहीं रह पाता | कलियुग में मोक्ष प्राप्त करने का सबसे सरल साधन भगवन्नाम उच्चारण बताया गया है परंतु मनुष्य उसको भी नहीं कर पा रहा है तो भला मोक्ष कैसे प्राप्त होगा ? स्वर्ग एवं नर्क की प्राप्ति हो जाने के बाद जीव एक निश्चित समय का भोग भोग कर पुनः इस पृथ्वी पर कर्मानुसार योनियों में जन्म लेता है परंतु मोक्ष की स्थिति इससे भिन्न है | मोक्ष प्राप्त कर लेने के बाद जीव सदैव के लिए ब्रह्म में लीन हो जाता है | आज का परिदृश्य यह है कि लोग सत्कर्म करने के , स्वर्ग एवं मोक्ष प्राप्त करने के उपाय तो प्रतिदिन पूछा करते हैं परंतु उस मार्ग पर चलने वाला बिरला की दिखाई पड़ता है क्योंकि इस कलियुग में भगवान की माया इतनी प्रचंड हो गई है कि मनुष्य काम , क्रोध , मद , लोभ , अहंकार में जकड़ गया है | ऐसा नहीं है कि पूर्व काल काम , क्रोध , मद , लोभ , अहंकार था ही नहीं परंतु आज इसकी प्रबलता देखने को मिल रही है | कुछ लोगों का विचार यह भी होता है कि जब मोक्ष प्राप्त करने के बाद इस पृथ्वीलोक का आनंद भरा जीवन नहीं प्राप्त होना है तो मोक्ष प्राप्त करने से क्या लाभ है ? मोक्ष ना प्राप्त करने से कम से कम इस पृथ्वी के भोग को भोगने का अवसर मिलेगा ! परंतु जीव भूल जाता है कि मनुष्य का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना ही होता है मोक्ष प्राप्त कर लेने के बाद कुछ भी प्राप्त करना शेष नहीं रह जाता |*
*सनातन धर्म में बताए गए अनेकानेक उपायों का आश्रय लेकर के मनुष्य अपने कर्म को सकारात्मक रखते हुए आज भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है परंतु यह असंभव इसलिए हो रहा है क्योंकि मनुष्य की मानसिकता परिवर्तित हो चुकी है |*