*ब्रह्मा जी के द्वारा बनाई गई इस सृष्टि में मानव मात्र के लिए सब कुछ सुलभ है | अपने कर्मों के अनुसार मनुष्य दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु को भी सुलभ कर सकता है | इस संसार में दुर्लभ क्या है ? जो मनुष्य प्राप्त करने का प्रयास करने के बाद भी नहीं प्राप्त कर पाता है | इसके विषय में यदि विचार किया जाय और अपने शास्त्रों का अध्ययन किया जाय तो स्पष्ट लिखा मिलता है कि इस संसार में सब कुछ सुलभ है यदि सबसे दुर्लभ कुछ है तो वह है भगवान की भक्ति प्राप्त करना | श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास जी महाराज ने तो यहां तक लिख दिया है कि हजारों मनुष्यों में कोई एक धर्म के व्रत धारण करने वाला होता है और करोड़ों धर्मात्माओं में कोई एक विषयों से विमुख त्यागी एवं वैराग्य धारण करने वाला विरक्त मिल जाता है | करोड़ों की विरक्तों में कोई एक ज्ञानी व्यक्ति भी मिल जाता है और करोड़ों ज्ञानियों में कोई एक जीवन्मुक्त होता है | हजारों जीवन्मुक्तो में सब सुखों की खान ब्रह्मलीन विज्ञानी पुरुष और भी दुर्लभ है | धर्मात्मा , वैराग्यवान , ज्ञानी , जीवनमुक्त और ब्रह्मलीन वैसे तो यह स्वयं में हो पाना दुर्लभ है परंतु इन सब में भी सबसे दुर्लभ है कि अपने मन से तथा माया से रहित होकर भगवान श्री राम जी की भक्ति को प्राप्त करना , क्योंकि भक्ति के मार्ग में आने को बाधाएं मनुष्य के लिए अवरोध का कार्य करती हैं | जीवन के समस्त अवरोधों को पार करके ही भक्ति प्राप्त की जा सकती है | भक्ति प्राप्त करने के लिए धर्मात्मा , विज्ञानी ब्रह्मालीन , जीवन्मुक्त या बैरागी होने की आवश्यकता नहीं है बल्कि भगवान की भक्ति प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपना मन निर्मल करना होता है | मन उसी का निर्मल हो सकता है जिसके हृदय से काम , क्रोध , मद , लोभ आदि का विनाश हो गया हो | इस प्रकार सबसे दुर्लभ भगवान की भक्ति है इससे दुर्लभ और कुछ भी नहीं है |*
*आज संसार में अनेकों प्रकार के लोग दिखाई पड़ते हैं जो स्वयं के नाम के पीछे ब्रह्मालीन , बैरागी , विरक्त , सन्यासी आदि लिखते हैं परंतु इनको भगवान की भक्ति प्राप्ति ही हो गई है यह कहना थोड़ा असंभव है | भगवान का भक्त बन जाना या बनने का दिखावा करना अलग विषय है परंतु भगवान की भक्ति प्राप्त कर लेना एक भिन्न विषय है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज संसार में देख रहा हूं कि लोग स्वयं को भक्त दिखाने के लिए अनेकों प्रकार के धार्मिक आयोजन , जपादिक अनुष्ठान , यज्ञ आदि का आयोजन किया करते हैं परंतु इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि उनको भक्ति प्राप्त ही हो गई हो | जिसे भगवान की भक्ति प्राप्त हो जाएगी वह संसार में अपना नाम कमाने के लिए कोई कार्य करेगा ही नहीं क्योंकि भक्ति प्राप्त हो जाने के बाद भक्त भगवान के नाम में ही अपना नाम जोड़कर सारे क्रियाकलाप करता है | भक्ति प्राप्त करने के लिए न तो ब्रह्मालीन होने की आवश्यकता है , न ही बैरागी होने की आवश्यकता है और ना ही परिवार का त्याग करके सन्यासी बनने की ही आवश्यकता है क्योंकि भक्ति भगवान के प्रति श्रद्धा विश्वास एवं समर्पण का विषय है | आज के युग में बड़े बड़े भक्त देखने को मिलते हैं परंतु उनके हृदय में समर्पण की भावना तनिक भी नहीं दिखाई पड़ती | आज कलयुग में भक्ति दुर्लभ ही नहीं असंभव सी होती प्रतीत हो रही है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने जो भी लिख दिया है वह अकाट्य है | आज मनुष्य संसार की दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी प्राप्त करने हैं सफल हो रहा है परंतु सबसे दुर्लभ भगवान की भक्ति प्राप्त कर पाना दिवास्वप्न ही प्रतीत होता है क्योंकि आज मनुष्य काम , क्रोध , मद , लोभ , अहंकार के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की भांति फंसा हुआ है और सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि वह इस में से निकलने का प्रयास भी नहीं करता है तो सबसे दुर्लभ वस्तु भगवान की भक्ति की प्राप्ति भला कैसे हो सकती है |*
*ऐसा नहीं है कि आज भगवान के भक्त नहीं रह गए हैं या किसी को भक्ति की प्राप्ति नहीं हो रही है परंतु यह भी सत्य है कि ऐसा करने वाला संसार में कोई विरला ही होगा |*