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उम्‍मीदों का शहर

8 अप्रैल 2017

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करीब 20 साल पहले इलाहाबाद से जब दिल्‍ली आया था तो एक ही ख्‍वाब था कि पत्रकारिता में एक मुकाम बनाऊंगा। तारीख बदलती रही, दिन गुजरते रहे और उसी के साथ बहुत कुछ बदलता रहा। आज अप्रैल 2017 के दूसरे सप्ताह की शुरुआत है। हमारे एक मित्र सुनील वर्मा का आज घर आना हुआ। जनाब चाय उन्होंने छोड़ दी है नीबू-पानी के बीच गपशप शुरू हुई तो दिल्ली के बारे में क्या ख्याल है आकर बात रुकी। हमने कहा, उम्मीदों का शहर है किसी को निराश नहीं करता

अब आप पूछेंगे कि हमने जो ख्वाब देखा था उसका क्या हुआ तो फ‍िर कभी ...

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