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शिक्षक

26 जुलाई 2024

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        मैं छठी कक्षा में था साल था १९९८ । मैं हिंदी माध्यम का छात्र था ।हमारे आस पास के सभी बच्चे कॉन्वेंट और अच्छे स्कूल में पढ़ते थे और जब भी वे मिलते आपस में अच्छी अंग्रेज़ी में ही बात किया करते । और उनको ऐसे बात करता देख मेरे मन में एक अलग ही प्रकार का खेद होता और सोचता की काश मैं भी अंग्रेज़ी मीडियम में होता । मुझे अब किसी भी पार्टी या सामाजिक जमावड़े में जाने में शर्म महसूस होती । पर ये व्यथा मैं अपने तक ही रखता। सोचता की किसको कहूँ घर की माली हालत भी तो ठीक नहीं है । एक एक बात मैं बता दूँ की पढ़ने में मैं होनहार विद्यार्थी था । और स्कूल में सभी शिक्षकों का भी । पर उन दिनों हमारे पाठ्यक्रम में अंग्रेज़ी बड़ी निम्नतम स्तर की होती थी जिसकी वजह से मेरी अंग्रेज़ी काफ़ी कमजोर थी । अंग्रेज़ी के नाम पर फलों के नाम सब्ज़ियों के नाम। जानवरों और सब्जियों के नाम बस इतना ही । और थोड़ा बहुत “ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार “ यही आता था । एक बार की बात है मैं स्कूल के समय के बाद यही सोचता हुआ बैठा था तभी कहीं से आवाज़ आई “नीरज अभी तक क्यों बैठा है ?” मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो अजीत सर थे । बता दूँ अजीत सर हमारे स्कूल के वो हरफ़न मौला शिक्षक थे जो सभी विषयों के महारथी थे । मुख्यतः वे गणित और विज्ञान पढ़ाते पर अंग्रेज़ी,हिंदी इतिहास,भूगोल हर विषय में उत्कृष्ट थे ।मैंने उत्तर दिया “कुछ नहीं सर बस कुछ सोच रहा हूँ” “क्या सोच रहा है?” “यही की बस ये हिंदी माध्यम में पढ़ते हुए मैं क्या बन सकता हूँ ?” सर थोड़ा मुस्कुराए और कुछ बताया “IAS, IPS, वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर “ ये सब बन सकता है “ “मगर कैसे ?” हताश मन से मैंने पूछा ।

          सर ने “कहा कल से तू हर रोज़ स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे घर आयेगा, मैं तेरे पापा और मम्मी से बात कर लूंगा ।पर तेरा आना अनिवार्य है “ मैंने हामी भर दी और दूसरे दिन से ऐसा ही किया। प्रतिदिन सुबह ७ से १२ स्कूल और १२ से ३ अजीत सर के घर । वो मुझे सहजता से इंग्लिश ग्रामर के ग़ुर सिखाने लगे । और मैं भी बड़े जोश के साथ सीखने लग गया । शर्त थी की जैसी भी सही पर स्कूल के बात इंग्लिश में ही बात करनी होगी । मैंने ऐसा की किया रोज़ उल्टी सीधी इंग्लिश बोलता, सर सुधारते वो डायरी में मैं नोट कर लेता । देखते ही देखते पता ही ना चला की मैं फर्राटे दार अंग्रेजी बोलने लग गया । अब मुझे किसी सामाजिक मजलिस में जाने में कोई डर नहीं लगता, उल्टा उत्सुकता रहती । ये सब देख कर मेरे पिता जी ने सर को बहुत सारा धन्यवाद दिया । क्यूंकि मैं भले ही उनको कुछ ना बताता पर उनको सब कुछ पता था और इसी वजह से उन्होंने ही अजीत सर से बात की थी, जिस बात का पता मुझे कई साल के बात पता चला। तभी अचानक फ़ोन की रिंग बजी ।

       मैं कॉल ली , सामने से अनुज की आवाज़ आयी “सर आपको याद है ना आज ३ बजे की मीटिंग है “ मैंने कहा “हाँ, याद है “।दरअसल अनुज वही इंग्लिश मीडियम वाला मेरा बचपन का दोस्त था जिससे बात करने में मैं सकुचाता था बचपन में ।

आज मैं  जिस कंपनी में CEO हूँ वो उसी कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर है।

सच में कभी कभी गौर करता हूँ तो लगता है की मेरी ये दशा और दिशा  अजीत सर के वजह दोनों बदल गई ।

सर आपका उपकार मैं सारी ज़िंदगी नहीं बोल सकता ।


आपका एक तुच्छ शिष्य 

नीरज पांडेय 

अहमदाबाद, गुजरात

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