प्रेम के भूखे हैं भगवान
तुलसी दास कहते हैं- 'भाव-अभाव, अनख-आलसहुं, नाम जपत मंगल दिषी होहुं।' भाव से, अभाव से, बेमन से या आलस से, और तो और, यदि भूल से भी भगवान के नाम का स्मरण कर लो तो दसों दिशाओं में मंगल होता है। भगवान स्वयं कहते हैं, भाव का भूखा हूं मैं, और भाव ही इक सार है, भाव बिन सर्वस्व भी दें तो मुझे स्वीकार नहीं! ऐ