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बच्चों को कैसे सिखाएं रिश्तों की अहमियत

9 जुलाई 2019

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दादा-दादी, चाचा-चाची, भुआ, ताऊजी और मामा-मामी, मौसी ऐसे कई रिश्ते हैं जिनसे एक बड़ा परिवार बनता है. ये रिश्ते ही हमें अच्छे संस्कार सिखाते हैं. हमें परिवार के साथ जीना सिखाते हैं. पहले एक ज़माने में एक ही घर में कम से कम 12 से 15 लोग रहते थे मगर आज 2 से 4 ही लोग रह पाते हैं.

आज की व्यस्त लाइफ में लोगों को एक-दूसरे से बात करने का समय कम ही रहता है. फिर रिश्तों को संभालना तो दूर की बात है. आने वाली पीडियां दूर के रिश्तों को तो भूल जाएँगी, पास के रिश्तों में भी ज्यादा मेल-जौल नहीं कर पायँगी. आज के दौड़भाग वाली दिनचर्या में हम कई पुराने रिश्तों को दर-किनार कर दिया है. हम अब केवल माँ-बाप और बहन-भाई के रिश्ते तक ही सीमित है. रिश्तों की यही हालत रही तो केवल पति-पत्नी और एक बच्चा ही रिश्ता कहलायेगा.

ताऊजी-ताईजी, मामा-मामी. मौसी-फूफा का रिस्ता तो आने वाली पीढ़ी एक अलग घर समझेगी उनमे अपनापन न के बराबर होगा.

रिश्तों की अहमियत


रिश्ते क्या होता है ये हमारे आने वाले बच्चों को समझना मुश्किल है. उनके लिए ये केवल एक दूर की पहचान होगी.माँ-बाप ही अपने बच्चों को बतला सकते हैं. यदि माँ-बाप ही अपने रिश्तों को नहीं निभाएंगे तो उनके बच्चों को रिश्ता क्या है कैसे समझ आएगा.

आज पति-पत्नी एकल परिवार बना कर रहते हैं तो माँ-बाप के परिवार को मिलना कम ही होता है. आज के बच्चे खून के रिश्तों को ज्यादा अहमियत नहीं देते तो वो अन्य रिश्तों क्या सम्मान देगा. पहले एक परिवार का बच्चा जब सयुंक्त परिवार में रहता था तो वो अपने माँ-बाप के पास कम चाचा-ताऊ के पास ज्यादा रहता था. माँ को तो पता ही नहीं होता था कि उनके बेटा या बेटी कहाँ है.

पहले सयुंक्त परिवार में बच्चा कभी मामा का लाडला होता था तो कभी चाचा का सबसे प्यारा भतीजा या भतीजी होती थी. बच्चे के शरारत करने पर माँ भी बोलती थी कि ‘जा अपने चाचा के पास जा, दिनभर तो चाचा के कंधे पर टंगा रहता है अब यहाँ क्यों आया है’ लेकिन आज रिश्तों में बहुत परिवर्तन आ चुका है.

आज माँ-बाप अपने बच्चों को अपनी सभ्यता और संस्कृति के बारे में बता सकें.

रिश्तों में आइये कमी का कारण


व्यस्त लाइफ – आज व्यक्ति की जीवनशैली इतनी व्यस्त हो गई है कि माँ-बाप अपने रिश्तेदार को क्या बल्कि अपने बच्चों को भी पूरा समय नहीं दे पाते हैं. सबसे आगे निकले की होड़ में करीबी रिश्तों को भी अनदेखा कर रहे हैं.

एकल परिवार – पहले लोग सयुंक्त परिवार में रहते थे तो रिश्तों को समझ पाता था. मगर अब एकल परिवार होने की वजह से रिश्तों को अहमियत समझ पाना मुश्किल है.

अपनापन – आज मैं और मेरापन सभी घरों में चल रहा है. सब अपने बच्चों को ही ज्यादा अहमियत देते हैं जिससे भाई के बच्चों और खुद बच्चों में एक खटास पैदा होती है.

सोशल मीडिया – पहले जब हम स्कूल की पढ़ाई से फुर्सत होते थे तो अपने मामा-मामी के घर या मौसी के घर जाते थे मगर आज बच्चें अपने घर में मोबाइल में वीडियो गेम या चैटिंग करते पाए जाते हैं. जिससे बच्चें अपने चाचा या मामा पर भरोसा न कर पाते.

बच्चों को कैसे सिखाएं रिश्तों की अहमियत

  • बच्चों को अपने relatives से मिलवाएं
  • Relatives के घर आना-जाना बनाये रखें
  • एक-दूसरे का मददगार बनायें.
  • रिश्तों में सकारात्मक सोच रखें.
  • रिश्तों की बुराई न करें.
  • बच्चों को social media app की जगह सोशल होना सिखाएं
  • बच्चों को अपने काम में शामिल कर उनका अकेलापन दूर करेंहमारी ज़िंदगी में एक खास जगह बनाते हैं. यदि रिश्ते नहीं होंगे तो लोग एक दूसरे की मदद करने में आगे नहीं आएंगे. लोग एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करेंगे. मेलजोल होना जरुरी है. जितना हो सके अपने रिश्तेदारों से मिलते रहें. एक दूसरे की छोटी छोटी बातों की तारीफ करते रहें.

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